नयी दिल्ली, 31 अक्टूबर जेएनयू के छात्र शरजील इमाम की याचिका को खारिज करते हुए, उच्च न्यायालय ने सोमवार को कहा कि 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों के मामले में उसके खिलाफ देशद्रोह के आरोपों को लेकर अपनी कार्यवाही पर रोक लगाने से इनकार करने का निचली अदालत का आदेश “उचित” था।
इमाम ने उच्चतम न्यायालय द्वारा भादंवि की धारा 124ए (राजद्रोह) को उसकी संवैधानिकता की जांच होने तक के लिए स्थगित रखने के कारण अपनी रिहाई की मांग की थी। उन्होंने मामले में चल रही कार्यवाही पर रोक लगाने से इनकार करने वाले निचली अदालत के आदेश को भी चुनौती दी थी।
न्यायमूर्ति मुक्ता गुप्ता की अध्यक्षता वाली दिल्ली उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने इमाम की अपील पर रोक लगा दी और निचली अदालत से गवाहों का परीक्षण जल्द समाप्त करने का अनुरोध किया, जिस पर पक्षों के बीच कोई विवाद नहीं है।
अदालत ने अंतरिम जमानत के लिए अनुरोध करने वाली इमाम की याचिका पर सुनवाई जनवरी तक के लिये टाल दी। उसे कथित रूप से भड़काऊ भाषण देने के आरोप में जनवरी 2020 में गिरफ्तार किया गया था और फिर उसी साल अगस्त में दंगों के मामले में भी उसे गिरफ्तार किया गया था।
अदालत ने स्पष्ट किया कि अपने कथित भड़काऊ भाषणों के लिए कार्यवाही का सामना कर रहे इमाम को यूएपीए की मंजूरी से संबंधित गवाह से आगे जिरह करने की स्वतंत्रता होगी यदि 124ए आईपीसी के तहत मुकदमे को बाद में आगे बढ़ाने की अनुमति दी जाती है।
इमाम के वकील ने इस स्तर पर जिरह पर आपत्ति जताते हुए कहा कि गैरकानूनी गतिविधि निरोधक अधिनियम (यूएपीए) और राजद्रोह के तहत अपराधों में अतिव्यापी तत्व हैं।
अदालत ने कहा, “निचली अदालत का आदेश काफी उचित है क्योंकि इसमें कहा गया है कि जब तक पूर्वाग्रह प्रभावित न हो, इसे (मुकदमा) चलने दें और एकमात्र मुद्दा गवाह के बारे में है जिसने मंजूरी दी थी।”
पीठ में न्यायमूर्ति अनीश दयाल भी शामिल हैं। पीठ ने कहा कि निचली अदालत ने कहा था कि अभियोजन पक्ष के 43 गवाहों में से 18 से पहले ही पूछताछ हो चुकी है।
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