विदेश की खबरें | संयुक्त राष्ट्र के शीर्ष न्यायालय में जलवायु परिवर्तन से संबंधित महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई शुरू

Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on world at LatestLY हिन्दी. मामले की सुनवाई दो सप्ताह तक चलेगी और इसे अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा मामला बताया जा रहा है।

श्रीलंका के प्रधानमंत्री दिनेश गुणवर्धने

मामले की सुनवाई दो सप्ताह तक चलेगी और इसे अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा मामला बताया जा रहा है।

समुद्र के बढ़ते जल स्तर के कारण विलुप्त हो सकने के खतरे का सामना कर रहे द्वीपीय राष्ट्रों के अपना अस्तित्व बचाने की वर्षों की कवायद के बाद, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने पिछले साल अंतरराष्ट्रीय न्यायालय से ‘‘जलवायु परिवर्तन के संबंध में देशों के दायित्व’’ पर विचार मांगा था।

अदालत का कोई भी फैसला गैर-बाध्यकारी परामर्श हो सकता है और अमीर देशों को जलवायु परिवर्तन के खतरे का अत्यधिक सामना कर रहे राष्ट्रों को सीधे तौर पर मदद करने के लिए मजबूर कर सकता है।

प्रशांत महासागर में स्थित द्वीपीय देश वनुआतु की कानूनी टीम का नेतृत्व कर रही मार्गरेटा वेवरींके सिंह ने कहा, ‘‘हम चाहते हैं कि अदालत इस बात की पुष्टि करे कि जलवायु को प्रभावित करने वाली गतिविधियां गैर कानूनी हैं।’’

मौजूदा दशक में, 2023 तक समुद्र स्तर वैश्विक स्तर पर 4.3 सेंटीमीटर बढ़ा है। प्रशांत महासागर के कुछ हिस्सों में जल स्तर कहीं अधिक बढ़ रहा है। जीवाश्म ईंधन के दहन के कारण विश्व पूर्व औद्योगिक काल से 1.3 डिग्री सेल्सियस गर्म हुआ है।

जलवायु परिवर्तन पर वनुआतु के प्रतिनिधि राल्फ रेगेनवानु ने सुनवाई से पहले संवाददाताओं से कहा,‘‘हम जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक पीड़ित हैं। हम अपनी भूमि, अपनी आजीविका, अपनी संस्कृति और अपने मानवाधिकारों के छीनने के गवाह हैं।’’

हेग स्थित अदालत मामले में दो सप्ताह में 99 देशों और एक दर्जन से अधिक अंतर-सरकारी संगठनों की सुनवाई करेगी।

मामले में दुनिया भर के 15 न्यायाधीश दो सवालों के जवाब देने की कोशिश करेंगे। पहला यह कि जलवायु और पर्यावरण को मानव-जनित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन से बचाने के लिए अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत देशों को क्या करना चाहिए? और उन सरकारों के लिए कानूनी परिणाम क्या हैं, जिनकी ओर से कार्रवाई की कमी ने जलवायु और पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचाया है?

दूसरे सवाल में विशेष रूप से उन ‘‘छोटे द्वीपीय विकासशील देशों’’ का उल्लेख किया गया है, जिनके जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित होने की संभावना है, तथा जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से प्रभावित होने वाले ‘‘वर्तमान और भावी पीढ़ियों के सदस्यों’’ का भी उल्लेख किया गया है।

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