देश की खबरें | बंबई उच्च न्यायालय के ‘त्वचा से त्वचा संपर्क’ फैसले के खिलाफ अपील पर शीर्ष अदालत में सुनवाई पूरी, फैसला बाद में सुरक्षित रखा फैसला

नयी दिल्ली, 30 सितंबर उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को बंबई उच्च न्यायालय के उस फैसले के खिलाफ अपील पर सुनवाई पूरी कर ली जिसमें कहा गया था कि अगर आरोपी और पीड़िता के बीच कोई सीधा “त्वचा से त्वचा” संपर्क नहीं है, तो पोक्सो अधिनियम के तहत यौन उत्पीड़न का कोई अपराध नहीं बनता है।

न्यायमूर्ति यू यू ललित, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की तीन सदस्यीय पीठ ने दोनों पक्षों के वकीलों की दलीलों को सुना और उनसे कहा कि वे लिखित कथन भी दाखिल करें। इस मामले में न्यायालय फैसला बाद में सुनायेगा।

पीठ ने कहा, “पक्ष तीन दिनों के अंदर अपना लिखित प्रतिवेदन देने के लिये स्वतंत्र हैं। फैसला सुरक्षित रखा जाता है।”

महाराष्ट्र सरकार ने शीर्ष अदालत को बताया कि वह अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल द्वारा दिए जाने वाले कथन को अपनायेगी।

वेणुगोपाल ने पहले शीर्ष अदालत से कहा था कि बंबई हाईकोर्ट का विवादास्पद फैसला एक “खतरनाक और अपमानजनक मिसाल” स्थापित करेगा और इसे उलटने की जरूरत है।

अटॉर्नी जनरल और राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) की अलग-अलग अपीलों पर सुनवाई कर रहे उच्चतम न्यायालय ने 27 जनवरी को उस आदेश पर रोक लगा दी थी जिसमें एक व्यक्ति को यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम के तहत बरी करते हुए कहा गया था कि बिना ‘त्वचा से त्वचा के संपर्क’ के “नाबालिग के वक्ष को पकड़ने को यौन हमला नहीं कहा जा सकता है।”

बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ की न्यायमूर्ति पुष्पा गनेडीवाला न दो फैसले सुनो थे।

इससे पहले, शीर्ष अदालत ने फैसलों पर रोक लगाते हुए महाराष्ट्र सरकार को नोटिस भी जारी किया था और अटॉर्नी जनरल को फैसले के खिलाफ अपील दायर करने की अनुमति दी थी।

फैसले में कहा गया था कि “त्वचा से त्वचा के संपर्क” के बिना नाबालिग के वक्ष को छूना पोक्सो अधिनियम के तहत यौन हमला नहीं कहा जा सकता है।

अदालत ने कहा था कि आरोपी ने क्योंकि बिना कपड़े निकाले बच्चे के वक्ष को छुआ इसलिए इसे यौन हमला नहीं कहा जा सकता है, लेकिन यह भादंवि की धारा 354 के तहत एक महिला की गरिमा भंग करने का अपराध है।

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