देश की खबरें | न्यायालय ने विदेशी नस्ल के सांडों के जरिए कृत्रिम गर्भाधान के खिलाफ याचिका पर सुनवाई से इनकार किया

नयी दिल्ली, चार मई उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को उस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया जिसमें केंद्र और राज्यों को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश देने का अनुरोध किया गया था कि देशी गायों का कृत्रिम गर्भाधान विदेशी नस्ल के सांडों से नहीं बल्कि देशी सांडों से किया जाए।

प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला की पीठ ने कहा कि इस मुद्दे पर संबंधित सरकारी विभागों को गौर करना चाहिए और याचिकाकर्ता को उपयुक्त मंत्रालय का रुख करने की स्वतंत्रता दी।

पीठ ने कहा, ‘‘याचिकाकर्ता की चिंता जायज है। पशुपालन और मत्स्य पालन विभाग को इस मुद्दे पर गौर करना चाहिए। हम याचिकाकर्ता को उपयुक्त मंत्रालय के समक्ष आवेदन करने की अनुमति देते हैं।’’

पशु अधिकार कार्यकर्ता ए दिव्या रेड्डी द्वारा दायर जनहित याचिका पर शीर्ष अदालत ने पिछले साल छह मई को केंद्र और राज्यों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था।

याचिका में कहा गया है कि विदेशी नस्ल के सांडों के जरिए देशी गायों के कृत्रिम गर्भाधान को बढ़ावा देना मनमाना है और भारत के संविधान के अनुच्छेद 48 के अनुरूप नहीं है। अनुच्छेद 48 कहता है कि सरकार कृषि और पशुपालन को आधुनिक और वैज्ञानिक तरीके से व्यवस्थित करने का प्रयास करेगी और विशेष रूप से गायों और बछड़ों तथा अन्य दुधारू मवेशियों की नस्लों के संरक्षण और संवर्धन के लिए वध पर रोक को लेकर कदम उठाएगी।

अधिवक्ता कृष्ण देव जगरलामुदी के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया कि केवल दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए देशी गायों को विदेशी नस्ल के मवेशियों की कीमत पर हाशिए पर पहुंचाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।

जनहित याचिका में केंद्र और राज्यों को ‘‘विदेशी नस्लों के विपरीत देशी नस्लों के सांडों के वीर्य का इस्तेमाल करके देशी गायों के कृत्रिम गर्भाधान के संबंध में कदम उठाने के लिए निर्देश देने का अनुरोध किया गया था।

याचिका में केंद्र और राज्यों को यह निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया था कि किसानों और पशुपालकों को देशी मवेशियों के लाभ और विदेशी सांडों के जरिए संकर नस्ल के पशु के संबंध में दीर्घकालिक हानिकारक प्रभावों के बारे में जागरुक किया जाए।

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