नयी दिल्ली, 14 अगस्त उच्चतम न्यायालय ने कथित आबकारी नीति घोटाले में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा दर्ज भ्रष्टाचार मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को अंतरिम जमानत देने से बुधवार को इनकार कर दिया और गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली उनकी याचिका पर जांच एजेंसी से जवाब मांगा।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्जल भूइयां की पीठ के समक्ष जैसे ही सुनवाई शुरू हुई, केजरीवाल की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने कहा कि उन्हें कथित घोटाले से जुड़े धनशोधन मामले में तीन बार अंतरिम जमानत मिली है और धन शोधन रोकथाम कानून (पीएमएलए) के तहत मामलों में जमानत दिए जाने के लिए कठोर शर्तें भी लगायी गयी हैं।
सिंघवी ने 20 जून को निचली अदालत द्वारा दी गयी नियमित जमानत के साथ ही 10 मई और 12 जुलाई को पारित उच्चतम न्यायालय के अंतरिम जमानत आदेशों का हवाला दिया।
उन्होंने पीठ को सूचित किया कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने ‘‘मौखिक रूप से’’ निचली अदालत के 20 जून के आदेश पर रोक लगा दी थी।
सिंघवी ने दलील दी कि जब केजरीवाल को पीएमएलए के तहत लगायी कड़ी शर्तों के बावजूद जमानत दी जा सकती है तो उन्हें सीबीआई के मामले में नियमित जमानत देने से इनकार नहीं किया जा सकता क्योंकि भ्रष्टाचार रोकथाम कानून में वैसे कठोर प्रावधान नहीं हैं जैसे कि धन शोधन रोधी कानून में हैं।
सिंघवी ने कहा, ‘‘मुझे यह कहना अच्छा नहीं लगता लेकिन मैंने यह बात हर जगह कही है। गिरफ्तारी के इस मामले को ‘इंश्योरेंस अरेस्ट’ कहा जा सकता है। आपने 23 अप्रैल को नौ घंटे तक मुझसे पूछताछ की थी, 24 मार्च को ईडी द्वारा मुझे गिरफ्तार करने तक आपने कोई कार्रवाई नहीं की। मुझे जमानत के तीन आदेश मिले और आदेश के बाद मुझे जून में गिरफ्तार कर लिया गया।’’
केजरीवाल की स्वास्थ्य चिंताओं के संदर्भ में सिंघवी ने अंतरिम जमानत का अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि जमानत का अनुरोध करने वाली एक याचिका पहले ही दायर की जा चुकी है।
शीर्ष अदालत ने सिंघवी से कहा, ‘‘हम कोई अंतरिम जमानत नहीं दे रहे हैं।’’
इसके बाद वरिष्ठ अधिवक्ता ने जल्दी सुनवाई करने का अनुरोध किया और पीठ ने अगली सुनवाई के लिए 23 अगस्त की तारीख तय कर दी।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने केजरीवाल की गिरफ्तारी को पांच अगस्त को बरकरार रखा था और कहा था कि सीबीआई के कदमों में कोई दुर्भावना नहीं है, जिसने दिखाया है कि आम आदमी पार्टी (आप) के प्रमुख कैसे उन गवाहों को प्रभावित कर सकते हैं, जो उनकी गिरफ्तारी के बाद ही गवाही देने का साहस जुटा सकते हैं।
उच्च न्यायालय ने उन्हें सीबीआई मामले में नियमित जमानत के लिए निचली अदालत का रुख करने को कहा था।
अदालत ने कहा था कि सीबीआई द्वारा केजरीवाल की गिरफ्तारी और प्रासंगिक साक्ष्य एकत्र करने के बाद उनके खिलाफ साक्ष्यों का चक्र बंद हो गया और यह नहीं कहा जा सकता कि यह बिना किसी उचित कारण के या अवैध था।
अदालत ने कहा कि केजरीवाल कोई साधारण नागरिक नहीं हैं, बल्कि मैगसायसाय पुरस्कार विजेता और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक हैं।
उच्च न्यायालय ने कहा था, ‘‘गवाहों पर उनका (केजरीवाल) नियंत्रण और प्रभाव प्रथम दृष्टया इस तथ्य से पता चलता है कि ये गवाह याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी के बाद ही गवाह बनने का साहस जुटा सके, जैसा कि विशेष अभियोजक ने उजागर किया है।”
उसने कहा कि प्रतिवादी (सीबीआई) के कृत्यों से किसी भी तरह की दुर्भावना का पता नहीं लगाया जा सकता है।
उच्च न्यायालय ने केजरीवाल की गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया और कहा था कि पर्याप्त साक्ष्य एकत्र किए जाने और अप्रैल, 2024 में मंजूरी मिलने के बाद ही एजेंसी उनके खिलाफ आगे की जांच में जुटी।
अदालत ने कहा था कि अपराध के तार पंजाब तक फैले हुए हैं, लेकिन केजरीवाल के पद के कारण उनके प्रभाव की वजह से महत्वपूर्ण गवाह सामने नहीं आ रहे थे। न्यायाधीश ने कहा कि उनकी गिरफ्तारी के बाद ही गवाह अपने बयान दर्ज कराने के लिए आगे आए।
मुख्यमंत्री को 21 मार्च को ईडी ने गिरफ्तार किया था और धन शोधन मामले में निचली अदालत ने 20 जून को उन्हें जमानत दे दी थी। हालांकि, उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के आदेश पर रोक लगा दी थी।
उच्चतम न्यायालय ने 12 जुलाई को उन्हें धन शोधन मामले में अंतरिम जमानत दे दी थी।
दिल्ली के उपराज्यपाल ने आबकारी नीति तैयार करने और इसके क्रियान्वयन में कथित अनियमितताओं और भ्रष्टाचार की सीबीआई से जांच कराने का आदेश दिया था जिसके बाद 2022 में इस नीति को रद्द कर दिया गया था।
सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के अनुसार, आबकारी नीति में संशोधन करते समय अनियमितताएं की गयीं और लाइसेंस धारकों को अनुचित लाभ पहुंचाए गए।
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)