मानवाधिकार को अलग मुद्दा न माने, ‘आहत’ मातृ प्रकृति पर समान ध्यान दें: राष्ट्रपति

राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने बुधवार को मनावाधिकार को एक अलग मुद्दा न मानने का आग्रह करते हुए प्राकृतिक पर्यावरण की देखभाल पर "समान ध्यान" देने पर जोर दिया और इस बात पर अफसोस जताया कि मानव के अविवेकपूर्ण कार्यों से मातृ प्रकृति बुरी तरह से आहत है।

नयी दिल्ली, 20 सितंबर: राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने बुधवार को मनावाधिकार को एक अलग मुद्दा न मानने का आग्रह करते हुए प्राकृतिक पर्यावरण की देखभाल पर "समान ध्यान" देने पर जोर दिया और इस बात पर अफसोस जताया कि मानव के अविवेकपूर्ण कार्यों से मातृ प्रकृति बुरी तरह से आहत है. विज्ञान भवन में एशिया प्रशांत के राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थानों के द्विवार्षिक सम्मेलन को संबोधित करते हुए मुर्मू ने यह भी कहा कि "इससे पहले कि बहुत देर हो जाए" प्रकृति के संरक्षण और समृद्धि के लिए इसके (प्रकृति के) प्रति प्रेम को फिर से जागृत किया जाना चाहिए.

कार्यक्रम का आयोजन भारत के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) एशिया प्रशांत मंच (एपीएफ) के सहयोग से 20-21 सितंबर को किया जा रहा है. मुर्मू ने कहा कि उन्होंने मंच के पहले हुए सम्मेलनों की सूची देखी और इस बात पर खुशी जताई की कोविड के बाद भौतिक रूप से आयोजित यह पहला सम्मेलन है. उन्होंने कहा, “ मुझे बताया गया है कि सम्मेलन में करीब 100 विदेशी प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं.” मुर्मू ने प्राकृतिक पर्यावरण में आ रही गिरावट को भी रेखांकित किया.

राष्ट्रपति ने कहा, “ मानव जितना अच्छा निर्माता है उतना ही विध्वंसक भी है. वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार, यह ग्रह विलुप्त होने के छठे चरण में प्रवेश कर चुका है, जिसमें मानव निर्मित विनाश को अगर रोका नहीं गया, तो न केवल मानव जाति, बल्कि इस पृथ्वी पर अन्य जीवन भी नष्ट हो जाएगा.'' उन्होंने कहा, “ इस संदर्भ में, मैं आपसे आग्रह करती हूं कि आप मानवाधिकारों के मुद्दे को अलग न माने और मातृ प्रकृति की देखभाल पर भी समान ध्यान दें, जो मानव के अविवेकपूर्ण कार्यों से बुरी तरह से आहत है.”

राष्ट्रपति ने कहा, “ भारत में हम यह मानते हैं कि ब्रह्मांड का प्रत्येक कण दिव्यता की अभिव्यक्ति है. इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, हमें प्रकृति के संरक्षण और समृद्धि के लिए अपने प्रेम को फिर से जगाना चाहिए.” ग्लोबल अलांयस ऑफ नेशनल ह्यूमन राइट्स इंस्ट्टीयूशन की सचिव अमीना बौयाच, एपीएफ के अध्यक्ष डू-ह्वान सॉन्ग और एनएचआरसी के प्रमुख न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) अरूण कुमार मिश्रा ने राष्ट्रपति के साथ मंच साझा किया. एपीएफ बुधवार को विज्ञान भवन में अपनी 28वीं वार्षिक आम बैठक भी आयोजित कर रहा है जिसमें सदस्य देशों के साझा हित के मुद्दों पर चर्चा की जा रही है.

सम्मेलन में नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, फिलीपीन, जॉर्डन और ऑस्ट्रेलिया सहित अन्य देशों के राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थानों के प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं. मुर्मू ने कहा, “ हमें एक पल के लिए अपने चारों ओर महामारी और प्राकृतिक आपदाओं के कारणों पर विचार करना चाहिए। हमें जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों पर भी विचार करना चाहिए जो पृथ्वी के अस्तित्व को खतरे में डाल रही हैं." राष्ट्रपति ने कहा, “मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा के मसौदे को आकार देने में (महात्मा) गांधी का जीवन और विचार भी महत्वपूर्ण थे. उन्होंने मानवाधिकार विमर्श को प्रभावित किया.”

मुर्मू ने कहा कि गांधीजी के प्रभाव की वजह से ही मानव अधिकारों की धारणा का विस्तार हुआ और यह जीवन की बुनियादी आवश्यकताओं से लेकर जीवन की गरिमा तक विस्तारित हुआ. उन्होंने कहा कि इसी तरह, डॉ. बीआर आंबेडकर मानवाधिकारों के प्रबल समर्थक थे. राष्ट्रपति के मुताबिक, डॉ आंबेडकर ने कमजोर वर्गों को अपने अधिकारों के लिए खड़ा होना और सम्मान के साथ जीना सिखाया.

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