देश की खबरें | बेटी का अता-पता जानने के बावजूद महिला ने दायर की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका, अदालत ने लगाया जुर्माना
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नयी दिल्ली, 24 दिसंबर दिल्ली उच्च न्यायालय ने उस महिला पर जुर्माना लगाया है जिसने अपनी बेटी के बारे में सभी जानकारियां होने के बावजूद बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की तथा अदालत से पूर्ण तथ्य छुपाए।
न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह और न्यायमूर्ति अमित शर्मा की खंडपीठ ने 10,000 रुपये के जुर्माने के साथ उसकी याचिका खारिज कर दी और कहा कि इस तरह का उपाय लापता बच्चों के वास्तविक मामलों या ऐसे मामलों में नागरिकों की सहायता के लिए है, जहां किसी व्यक्ति की सुरक्षा और संरक्षा खतरे में हो।
खंडपीठ ने 17 दिसंबर को कहा, ‘‘मौजूदा मामले के तथ्य ऐसी किसी स्थिति का खुलासा नहीं करते। याचिकाकर्ता जैसे वादियों द्वारा इस तरह की याचिका का दुरुपयोग किया जा रहा है, जो केवल बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के माध्यम से अपने वैवाहिक विवादों को अदालत में लाने की कोशिश कर रहे हैं, वह भी बिना सही तथ्यों का खुलासा किए।’’
महिला ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाते हुए दावा किया कि उसके पति के परिजनों ने उसे प्रताड़ित किया और उसने अपना ससुराल छोड़ दिया, लेकिन जब वह अक्टूबर में अपनी बेटी से मिलने (ससुराल) आई, तो उसे मिलने नहीं दिया गया।
हालांकि, पुलिस की स्थिति रिपोर्ट में एक अलग तस्वीर सामने आई, जिसमें दावा किया गया कि महिला 10 जनवरी को अपने ससुराल से चली गई और उसके पति ने गुमशुदगी की शिकायत दर्ज कराई।
शिकायत के बाद पुलिस अधिकारी उसके परिवार के सदस्यों और ससुराल वालों के साथ उसकी तलाश में मुंबई गए और उसे एक अन्य व्यक्ति के साथ एक होटल में पाया।
अदालत में महिला ने इन बातों का विरोध नहीं किया और उसके वकील ने कहा कि उन्हें स्थिति की पूरी जानकारी नहीं है।
पति के वकील ने कहा कि बच्चा पिता के पास सुरक्षित है और उसकी देखभाल उसके दादा-दादी कर रहे हैं।
महिला के वकील ने कहा कि वह अपनी बेटी से अगस्त में उसके जन्मदिन पर मिली थी, लेकिन इस तथ्य का उल्लेख उसकी याचिका में नहीं किया गया।
पीठ ने कहा, ‘‘इस तथ्य का भी याचिका में उल्लेख नहीं किया गया है और यह धारणा बनाने की कोशिश की गई है कि बेटी का अता-पता नहीं है। मौजूदा याचिका कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है और इसे खारिज किया जाता है तथा 10,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया जाता है। याचिकाकर्ता को दो सप्ताह के भीतर दिल्ली उच्च न्यायालय कानूनी सेवा समिति के पास (इस राशि को) जमा कराना होगा...।’’
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