पाकिस्तान का पर्यावरण बिगाड़ता अफगानियों का निर्वासन
अफगान शरणार्थियों के निर्वासन से पाकिस्तान की रिसाइक्लिंग और प्लास्टिक इंडस्ट्री पर बड़ी मार पड़ी है.
अफगान शरणार्थियों के निर्वासन से पाकिस्तान की रिसाइक्लिंग और प्लास्टिक इंडस्ट्री पर बड़ी मार पड़ी है. अफगान श्रमिकों के दम पर ही ये उद्योग चल रहे हैं. .48 साल के रजा मोहम्मद अख्तर खान का रिसाइक्लिंग का अच्छा-खासा बिजनेस कुछ सप्ताह पहले ठप हो गया. महीने में वो दस लाख पाकिस्तानी रुपये कमा लेते थे लेकिन अफगान शरणार्थियों के देश छोड़ कर जाने से उनकी बिजनेस को गहरी चोट पहुंची है. अधिकांश शरणार्थी कचरा और कबाड़ जमा करने के पेशे से जुड़े थे.
पूर्वी पाकिस्तान में लाहौर के निवासी खान 22 साल से रिसाइक्लिंग बिजनेस में हैं. उनका कहना है कि अफगान शरणार्थी बहुत मेहनतकश लोग हैं. बहुतों ने उनके शहर में अपना बिजनेस भी शुरू कर दिया था. खान ने डीडब्ल्यू को बताया, "मेरे इलाके में अफगान शरणार्थी रोजाना करीब 200 किलोग्राम प्लास्टिक जमा कर मेरी दुकान पर पहुंचाते थे." खान ने बताया कि वे अपने काम का पैसा भी कम लेते थे.
खान ने कहा, "अब रोज सिर्फ 35 किलो प्लास्टिक ही मेरे पास आता है. हर महीने करीब सात लाख रुपये का नुकसान हो रहा है. सिर्फ मेरी हालत ही खराब नहीं, मेरे इलाके की करीब 200 दुकानों का भी यही हाल है."
रिसाइक्लिंग उद्योग में अफरातफरी
इस साल मध्य सितंबर से, पाकिस्तानी अधिकारियों ने करीब 20,000 अफगानियों को युद्ध से तबाह अपने देश वापस भेज दिया है. ह्युमन राइट्स वॉच के मुताबिक धमकियों, हिरासतों और निर्वासनों की वजह से और 3,55,000 अफगानी पाकिस्तान छोड़ने पर विवश हुए हैं.
इस घटनाक्रम से बड़े पैमाने पर चल रहे प्लास्टिक रिसाइक्लिंग उद्योगों पर गाज गिरी है जो अफगानी मजदूरों पर बहुत ज्यादा निर्भर हैं.
अमेरिका के वाणिज्य विभाग के मुताबिक, पाकिस्तान साल में अंदाजन करीब 4 करोड़ 96 लाख टन ठोस कचरा पैदा करता है और ये सालाना करीब 2.4 फीसदी की दर से बढ़ रहा है. इसमें से करीब 9 फीसदी प्लास्टिक है.
वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड के मुताबिक, पाकिस्तान में करीब 25 करोड़ टन कचरा प्लास्टिक की थैलियों, पीईटी बोतलों और बचेखुचे खाने का है. इसमें से कुछ कचरा देश भर में फैले 19 प्लांटों की मार्फत रिसाइकिल किया जा रहा है.
लाहौर स्थित एक रिसाइक्लिंग फैक्ट्री, फाइव स्टार पॉलीमर प्राइवेट लिमिटेड में कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी के निदेशक वलीद हमीद ने डीडब्ल्यू को बताया कि बहुत सारे रिसाइक्लिंग प्लांट अफगान मजदूरों पर निर्भर हैं.
उनका कहना है कि जबसे सरकार ने अफगान शरणार्थियों को डिपोर्ट करने का फैसला किया है, प्लास्टिक कलेक्शन 43 फीसदी और पॉलिस्टर का उत्पादन 50 फीसदी गिर गया है. मजदूरी भी बढ़ गई है, जिस वजह से रिसाइक्लिंग इंडस्ट्री का टिका रह पाना मुश्किल हो रहा है. हमीद कहते हैं, "अगर यही हालात रहे तो इंडस्ट्री को बड़ा भारी वित्तीय नुकसान उठाना पड़ सकता है."
कराची शहर के कचरा डीलर नसीर खान कहते हैं कि प्लास्टिक और दूसरी चीजों के कलेक्शन में बड़ी गिरावट आई है. खान ने डीडब्ल्यू को बताया कि प्लास्टिक और कचरा इकट्ठा करने का काम अफगानी शरणार्थी ही करते थे, इसके लिए वो 16 से 18 घंटे काम करते थे.
नाम न जाहिर करने की शर्त पर इस्लामाबाद में विकास प्राधिकरण के एक इंस्पेक्टर ने बताया कि पाकिस्तान में कचरे की रिसाइक्लिंग, अफगानी शरणार्थियों के निर्वासन के बाद से बहुत ज्यादा मुश्किल हो चुकी है. बहुत सीमित मानव संसाधन के साथ इतने बड़े पैमाने पर कचरा इकट्ठा करना और फिर उसकी छंटाई कर पाना हमारे लिए मुमकिन नहीं."
पर्यावरणीय नुकसान की चेतावनी
पर्यावरणविदों ने आगाह किया है कि पाकिस्तान की कमजोर पड़ती रिसाइक्लिंग इंडस्ट्री की वजह से पर्यावरण को आगे और नुकसान पहुंच सकता है.
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के मुताबिक, दक्षिण एशिया में प्लास्टिक की सही ढंग से ठिकाने न लगा पाने के मामलों की दर पाकिस्तान में काफी ज्यादा है. वहां हर साल 30 लाख टन से ज्यादा प्लास्टिक बेकार चला जाता है. अधिकांश प्लास्टिक कचरा ठिकानों या कूड़े के ढेरों में या जहां तहां जमीन पर या पानी में फिंकवा दिया जाता है.
पर्यावरणविद् आफिया सलाम ने डीडब्ल्यू को बताया कि प्लास्टिक रिसाइक्लिग ने व्यापारिक गतिविधियों के बीच अपनी जगह बना ली थी लेकिन अफगान शरणार्थियों की देश वापसी ने उद्योग पर नकारात्मक असर पड़ रहा है.
वो कहती हैं कि तत्काल प्रभाव दिखने भी लगे हैं. प्लास्टिक बोतलों का उत्पादन गिर रहा है, सप्लाई में कमी आ रही है. उनके मुताबिक आगे भी कुछ समय तक ये स्थिति बनी रह सकती है जब तक कि अफगानियों से खाली हुई जगहें पाकिस्तानी मजदूरों से नहीं भर दी जातीं.
मजदूरों की गंभीर किल्लत से जूझेगा पाकिस्तान
लेकिन इस्लामाबाद में टिकाऊ विकास के जानकार मुहम्मद साद सलीम मानते हैं कि पाकिस्तानी मजदूरों का इस वैक्यूम को भर पाना बहुत ज्यादा मुश्किल है.
वो कहते हैं, "ये बहुत ही ज्यादा कड़े श्रम वाला रोजगार है. और पाकिस्तानी मजदूर, खासकर पंजाब में, ये काम करने को तैयार नहीं होंगे." उनका कहना है कि इस वजह से आने वाले महीनों में मजदूरों की भारी किल्लत हो सकती है.
हमीद कहते हैं कि प्लास्टिक बोतलों से 32 उत्पाद तैयार करने वाली उनकी कंपनी ने पिछले साल 18000 मीट्रिक टन से ज्यादा बोतलें रिसाइकिल की थी.
"लेकिन सैकड़ों हजारों अफगान मजदूरों के देश छोड़ने के बाद, अगले साल इस मात्रा में रिसाइकिल कर पाएंगे, ये मैं पक्के तौर पर नहीं कह सकता."
सलीन ने ये भी गौर किया कि शीतल पेय उद्योग के लिए उनकी कंपनी ने सालाना करीब 1,70000 बोतलों का उत्पादन किया था. "समय रहते उन बोतलों समेत प्लास्टिक कचरे को, अफगान मजदूरों के बिना, जमा कर पाना टेढ़ी खीर साबित होगा."