नयी दिल्ली, 16 अक्टूबर उच्चतम न्यायालय ने अंतरिम रोक के बावजूद और उसकी पूर्व अनुमति के बिना गुजरात में आवासीय और धार्मिक संरचनाओं को कथित तौर पर अवैध रूप से ध्वस्त करने के लिए राज्य प्राधिकारियों के खिलाफ दायर अवमानना याचिका पर सुनवाई बुधवार को स्थगित कर दी।
न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति पी के मिश्रा और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने याचिका को तीन सप्ताह बाद के लिए सूचीबद्ध किया।
याचिका में शीर्ष अदालत के 17 सितंबर के आदेश के कथित उल्लंघन को लेकर राज्य प्राधिकारियों के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने का अनुरोध किया गया है।
आदेश में कहा गया था कि देश भर में न्यायालय की अनुमति के बिना आरोपियों सहित किसी की संपत्ति को नहीं तोड़ा जाएगा।
सुनवाई की शुरुआत में, राज्य प्राधिकारियों का प्रतिनिधित्व कर रहे महाधिवक्ता की ओर से एक वकील ने सुनवाई स्थगित करने का अनुरोध किया।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े ने कहा कि राज्य ने याचिका पर जवाब दाखिल कर दिया है और वह प्रत्युत्तर दाखिल करना चाहते हैं।
वरिष्ठ वकील ने कहा, ‘‘उन्होंने बचाव में कहा है कि (ध्वस्त किया गया ढांचा) अरब सागर के पास था। उन्हें आपसे अनुमति लेने से किसने रोका था।’’
न्यायालय ने चार अक्टूबर को कहा था कि यदि उसने पाया कि गुजरात के प्राधिकारियों ने संपत्ति के ध्वस्तीकरण संबंधी उसके हालिया आदेश की अवमानना करने वाला कृत्य किया है तो वह उन्हें तोड़े गए ढांचों को फिर से बहाल करने के लिए कहेगा।
बहरहाल, पीठ ने गुजरात में सोमनाथ मंदिर के पास ध्वस्तीकरण पर यथास्थिति का आदेश पारित करने से इनकार कर दिया।
गुजरात में प्राधिकारियों ने 28 सितंबर को गिर सोमनाथ जिले में सोमनाथ मंदिर के पास सरकारी भूमि पर अतिक्रमण हटाने के लिए अभियान चलाया था।
प्रशासन ने कहा था कि इस अभियान के दौरान धार्मिक संरचनाओं और कंक्रीट के मकानों को ध्वस्त कर दिया गया और 60 करोड़ रुपये मूल्य की लगभग 15 हेक्टेयर सरकारी भूमि को खाली कराया गया।
न्यायालय ने एक अक्टूबर को उन याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था जिनमें आरोप लगाया गया है कि कई राज्यों में आरोपियों की संपत्ति समेत अन्य संपत्तियां ध्वस्त की जा रही हैं।
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