देश की खबरें | दिल्ली आबकारी नीति: अदालत ने कारोबारी समीर महेंद्रू की अंतरिम जमानत छह सप्ताह बढ़ायी
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नयी दिल्ली, 24 जुलाई दिल्ली उच्च न्यायालय ने अब रद्द हो चुकी दिल्ली आबकारी नीति में कथित अनियमितताओं से संबंधित धनशोधन मामले में शराब कारोबारी समीर महेंद्रू की अंतरिम जमानत चिकित्सीय आधार पर सोमवार को छह सप्ताह के लिए बढ़ा दी।
न्यायमूर्ति दिनेश कुमार शर्मा ने महेंद्रू को 4 सितंबर को शाम 5 बजे तक निचली अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश देते हुए कहा कि तत्काल अर्जी में उल्लेख किये गए आधार पर उनकी अंतरिम जमानत में और कोई विस्तार नहीं किया जाएगा।
उच्च न्यायालय ने कहा कि अंतरिम जमानत को कभी भी "सदैव जारी रहने वाली प्रक्रिया" बनाने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘रीढ़ की हड्डी की चोटें और सर्जरी एक गंभीर मुद्दा है और उनसे उबरने में लंबा समय लगता है। 12 जून को पारित विस्तृत आदेश और याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत मेडिकल रिकॉर्ड के मद्देनजर, अंतरिम जमानत को और छह सप्ताह के लिए बढ़ाया जाता है।’’
अदालत ने स्पष्ट कर दिया कि आदेश कोई नजीर नहीं है और यह मामले के विशिष्ट तथ्यों को ध्यान में रखते हुए पारित किया गया है।
महेंद्रू को इससे पहले 12 जून को चिकित्सीय आधार पर उच्च न्यायालय ने छह सप्ताह की अंतरिम जमानत दी थी और उन्हें 25 जुलाई को उच्च न्यायालय के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया था।
सोमवार को, महेंद्रू की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता विकास पाहवा ने उच्च न्यायालय से आग्रह किया कि राहत की अवधि और छह सप्ताह के लिए बढ़ा दी जाए क्योंकि उनका स्वास्थ्य अच्छा नहीं है तथा उन्हें आराम करने की सलाह दी गई है। उन्होंने कहा कि कारोबारी हाल ही में बाथरूम में गिर गए थे और उनकी रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोट लग गयी थी।
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के वकील ने अंतरिम जमानत बढ़ाने की याचिका का कड़ा विरोध किया और कहा कि उच्च न्यायालय ने पहले उन्हें 25 जुलाई को आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया था।
उन्होंने कहा कि महेंद्रू 18, 21 और 22 जुलाई को खुद ही ईडी कार्यालय गए थे, जबकि उन्हें कोई समन जारी नहीं किया गया था, जिससे पता चलता है कि याचिकाकर्ता बगैर किसी सहारे के चल-फिर सकते हैं।
वकील ने दलील दी कि अंतरिम जमानत सदैव जारी रहने वाली प्रक्रिया और धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) की कठोरता से बचने का एक ‘शॉर्टकट’ तरीका नहीं हो सकती।
न्यायमूर्ति शर्मा ने कहा कि इस अदालत का हमेशा से मानना रहा है कि जीवन का अधिकार और गरिमा के साथ जीने का अधिकार मौलिक अधिकारों का महत्वपूर्ण हिस्सा है। अदालत ने कहा, ‘‘किसी भी व्यक्ति को चिकित्सा सलाह के अनुसार इलाज कराने और अपने स्वास्थ्य की देखभाल करने का अधिकार है। लेकिन चिकित्सीय आधार, पीएमएलए जैसे विशेष कानूनों की कठोरता को विफल नहीं कर सकते।’’
उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘विशेष अधिनियमों में, विधायिका ने अपने विवेक से जमानत देने के लिए कुछ शर्तें रखी हैं और इसलिए, अंतरिम जमानत को कभी भी सदैव जारी रहने वाली प्रक्रिया नहीं बनने दिया जा सकता।’’
जून में, उच्च न्यायालय की एक समन्वय पीठ ने महेंद्रू को छह सप्ताह की अंतरिम जमानत दी थी और कहा था कि वह गंभीर बीमारियों से पीड़ित हैं, जिसके लिए तत्काल चिकित्सा देखभाल और सर्जरी बाद की देखभाल की आवश्यकता है।
अदालत ने कई शर्तें लगाईं, जिनमें यह भी शामिल था कि वह अस्पताल और अपने घर से बाहर नहीं जाएंगे और देश से बाहर भी नहीं जाएंगे।
अभियोजन पक्ष ने महेंद्रू पर आबकारी नीति में उल्लंघन के प्रमुख लाभार्थियों में से एक होने का आरोप लगाया है क्योंकि वह न केवल एक अल्कोहल संबंधी पेय पदार्थ विनिर्माण कंपनी संचालित रहे थे, बल्कि उनके रिश्तेदारों के नाम पर कुछ खुदरा लाइसेंस के साथ ही थोक लाइसेंस भी दिया गया था।
अभियोजन पक्ष ने दावा किया है कि कथित अनियमितताओं और उल्लंघनों के जरिये, महेंद्रू ने लगभग 50 करोड़ रुपये अर्जित किये।
धनशोधन का यह मामला केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की प्राथमिकी से उपजा है।
सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय के अनुसार, आबकारी नीति को संशोधित करते समय अनियमितताएं की गईं और लाइसेंस धारकों को अनुचित लाभ पहुंचाया गया।
दिल्ली सरकार ने 17 नवंबर, 2021 को नीति लागू की, लेकिन भ्रष्टाचार के आरोपों के बीच सितंबर 2022 के अंत में इसे रद्द कर दिया। इस मामले में दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया भी आरोपी हैं।
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