जरुरी जानकारी | कच्चे तेल की नरमी, घटते आयात से चालू खाते में 0.4 प्रतिशत अधिशेष का अनुमान: रिपोर्ट
Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on Information at LatestLY हिन्दी. कच्चे तेल में नरमी और गिरते आयात से 2003- 04 के बाद पहली बार ऐसी परिस्थिति बनती दिख रही है कि निर्यात बढ़े बिना ही चालू वित्त वर्ष में चालू खाते में जीडीपी के 0.4 प्रतिशत का अधिशेष रह सकता है।यह अनुमान यूबीएस की एक अर्थशास्त्री कहा है जिसने ने रिजर्व बैंक के पहली तिमाही के आंकड़ों के आधार पर पूर्वानुमान किया है।
मुंबई, 27 जुलाई कच्चे तेल में नरमी और गिरते आयात से 2003- 04 के बाद पहली बार ऐसी परिस्थिति बनती दिख रही है कि निर्यात बढ़े बिना ही चालू वित्त वर्ष में चालू खाते में जीडीपी के 0.4 प्रतिशत का अधिशेष रह सकता है।यह अनुमान यूबीएस की एक अर्थशास्त्री कहा है जिसने ने रिजर्व बैंक के पहली तिमाही के आंकड़ों के आधार पर पूर्वानुमान किया है।
कई तिमाहियों के बाद जून 2020 की तिमाही में चालू खाते में 0.1 प्रतिशत यानी 60 करोड़ डालर का अधिशेष रहा। पिछले साल इसी तिमाही में चालू खाते में 4.6 अरब डालर (जीडीपी के 0.7 प्रतिशत) के बराबर घाटा दर्ज किया गया था। रिजर्व बैंक के ताजा आंकड़ों में यह कहा गया है।
वित्त वर्ष 2019- 20 में चालू खाते का घाटा (कैड) कफी कम हो कर 0.9 प्रतिशत रहा। जबकि इससे पिछले वर्ष 2018- 19 में यह 2.1 प्रतिशत रहा था।
रिजर्व बैंक का कहना है कि व्यापार घाटा कम होने की वजह से चालू खाते में अधिशेष की स्थिति बनी है। इस दौरान व्यापार घाटा कम होकर 35 अरब डालर रह गया । इस दौरानाअदृश्य प्राप्तियां तीव्र वृद्धि के साथ यह 35.6 अरब डालर पर पहुंच गई। तिमाही के दौरान कंपयूटर और यात्रा सेवाओं से शुद्ध प्राप्तियां बढ़ने से सेवा क्षेत्र की शुद्ध प्राप्ति 22 अरब डालर रही। वहीं निजी हस्तांतरण, प्रेषण 14.8 प्रतिशत बढ़कर 20.6 अरब डालर पर पहुंच गया।
यूबीएस सिक्युरिटी इंडिया की अर्थशास्त्री तन्वी गुप्ता जैन ने एक नोट में कहा है, ‘‘2003- 04 के बाद पहली बार 2020- 21 में चालू खाते में जीडीपी के 0.4 प्रतिशत के बराबर अधिशेष रहने की उम्मीद है .. यह अधिशेष निर्यात बढ़ने के बजाय कमजोर मांग और कच्चे तेल नरमी से आयात खर्च घटने की वजह से होगा।’’
रिजर्व बैंक के आंकड़े बताते हैं कि इससे पहले 2003- 04 में देश का चालू खाते का अधिशेष 10.6 अरब डालर (जीडीपी का 1.8 प्रतिशत) था।
हालांकि, तान्वी का कहना है कि अधिशेष का यह रुझान लंबे समय तक नहीं चल सकता है क्योंकि कच्चे तेल के दाम बढ़ने, घरेलू मांग में होने वाली वृद्धि और निर्यात में होने वाली थोड़ी बहुत वृद्धि से यह रुख पलट सकता है।
उन्होंने विदेशों में काम करने वाले भारतीयों द्वारा विदेशों प्राप्त होने वाले मनीआर्डर (प्रेषित धन) में गिरावट को लेकर भी सतर्क किया है। पिछले वित्त वर्ष में भारत को इस स्रोत से 76 अरब उालर मिले थे। यह राशि जीडीपी की 2.7 प्रतिशत थी। लेकिन इस साल इसमें अब तक के रूझान में 25 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है।
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