न्यायालय ने सूरजगढ़ खदान आगजनी मामले में सुरेंद्र गाडलिंग की जमानत अर्जी पर पुलिस से जवाब मांगा

उच्चतम न्यायालय ने 2016 के सूरजगढ़ लौह अयस्क खदान आगजनी मामले के सिलसिले में अधिवक्ता सुरेंद्र गाडलिंग की जमानत अर्जी पर महाराष्ट्र सरकार से मंगलवार को जवाब तलब किया.

Bombay High Court (Photo Credit: Wikimedia Commons )

नयी दिल्ली, 10 अक्टूबर: उच्चतम न्यायालय ने 2016 के सूरजगढ़ लौह अयस्क खदान आगजनी मामले के सिलसिले में अधिवक्ता सुरेंद्र गाडलिंग की जमानत अर्जी पर महाराष्ट्र सरकार से मंगलवार को जवाब तलब किया. न्यायमूर्ति अनिरूद्ध बोस और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने राज्य सरकार को नोटिस जारी किया तथा अर्जी पर चार हफ्तों के अंदर उसे जवाब देने को कहा. बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने 31 जनवरी को यह उल्लेख करते हुए गाडलिंग को जमानत देने से इनकार कर दिया था कि उनके खिलाफ आरोप प्रथम दृष्टया सही प्रतीत होते हैं.

माओवादियों ने 25 दिसंबर 2016 को कथित तौर पर 76 वाहनों को आग के हवाले कर दिया था, जिनका उपयोग महाराष्ट्र में गडचिरौली स्थित सूरजगढ़ खदानों से लौह अयस्क की ढुलाई के लिए किया जा रहा था. गाडलिंग पर आरोप है कि उन्होंने जमीनी स्तर पर काम करने वाले माओवादियों को मदद प्रदान की. उनके खिलाफ गैर कानूनी गतिविधियां (निवारण) अधिनियम (यूएपीए) के विभिन्न प्रावधानों, और भारतीय दंड संहिता के तहत मामला दर्ज किया गया है. अभियोजन ने दावा किया था कि गाडलिंग ने सरकार की गतिविधियों के बारे में गोपनीय सूचना और कछ खास नक्शे भूमिगत माओवादियों को मुहैया किये.

गाडलिंग पर सूरजगढ़ खदानों के संचालन का विरोध करने के लिए माओवादियों को कहने, और कई स्थानीय लोगों को इस प्रदर्शन में शामिल होने के लिए उकसाने का भी आरोप है. वह एल्गार परिषद-माओवादी संपर्क मामले में भी आरोपी हैं. यह मामला 31 दिसंबर 2017 को पुणे में हुए एल्गार परिषद में दिये गये कथित भड़काऊ भाषणों से संबद्ध है. पुलिस का दावा है कि इन भाषणों के चलते इसके अगले दिन पुणे जिले में कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के नजदीक हिंसा भड़की थी.

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