देश की खबरें | अडाणी-हिंडनबर्ग मामले में न्यायालय ने कहा : नियामकीय विफलता के लिए सेबी जिम्मेदार नहीं

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नयी दिल्ली, तीन जनवरी उच्चतम न्यायालय ने अडाणी-हिंडनबर्ग विवाद से संबंधित दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए बुधवार को कहा कि अदालत के समक्ष रखी गई सामग्री के आधार पर स्पष्ट रूप से किसी भी नियामकीय विफलता के लिए सेबी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।

अडाणी समूह द्वारा स्टॉक मूल्य में हेराफेरी के आरोपों से संबंधित मामले में शीर्ष अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) द्वारा जांच में ‘‘जानबूझकर कोई निष्क्रियता नहीं दिखाई गई।’’

प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने सेबी की ओर से कथित नियामकीय विफलता के बारे में याचिकाकर्ताओं द्वारा दी गई दलीलों पर सुनवाई की।

पीठ ने कहा, ‘‘याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि दो नियमों में संशोधन सेबी की ओर से नियामकीय विफलता के समान है। इस तरह, उन्होंने अनुरोध किया है कि सेबी को एफपीआई (विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक) विनियम और एलओडीआर (सूचीबद्धता दायित्व और प्रकटीकरण आवश्यकताएं) विनियम में संशोधन को रद्द करने का निर्देश दिया जाए या उपयुक्त परिवर्तन किया जाए।’’

शीर्ष अदालत ने कहा कि ये तर्क और प्रार्थनाएं प्रारंभिक याचिकाओं में मौजूद नहीं थीं और वे 6 मई, 2023 को अदालत द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ समिति की एक रिपोर्ट के बाद सामने आईं।

पीठ ने कहा, ‘‘रिपोर्ट में कहा गया है कि नियमों में संशोधन के मद्देनजर, यह सेबी द्वारा नियामक विफलता के निष्कर्ष को उचित नहीं ठहराता है। इसके बाद, याचिकाकर्ताओं ने विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट के निष्कर्षों को झुठलाने के लिए तर्क दिए।’’

पीठ ने कहा कि अदालत को सेबी की दलीलों में दम नजर आता है और उसे विधायी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए बाजार नियामक द्वारा बनाए गए नियमों में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं दिखता है।

पीठ ने कहा कि सेबी ने अपने नियामकीय ढांचे के विकास का पता लगाया और अपने नियमों में बदलाव के कारणों की व्याख्या की है। पीठ ने कहा, ‘‘नियमों के वर्तमान स्वरूप पर पहुंचने के लिए अपनाई गई प्रक्रिया में कुछ भी गैर कानूनी नहीं है। न ही यह तर्क दिया गया है कि नियम अनुचित, मनमाने या संविधान का उल्लंघन करने वाले हैं।’’

शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘इसके अतिरिक्त, हमें इस तर्क में कोई दम नहीं दिखता कि शरारत को बढ़ावा देने के लिए एफपीआई विनियम, 2014 को कमजोर कर दिया गया। संशोधनों ने कमजोर करने की बजाय, प्रकटीकरण आवश्यकताओं को अनिवार्य बनाकर और केवल मांगे जाने पर ही इसका खुलासा करने की आवश्यकता को हटाकर नियामकीय ढांचे को कड़ा कर दिया है। इसलिए प्रकटीकरण की आवश्यकता अब पीएमएलए (धन शोधन निवारण अधिनियम) की तर्ज पर है।’’

पीठ ने कहा, ‘‘हमें नहीं लगता कि सेबी को उसके नियमों में संशोधनों को रद्द करने का निर्देश देकर हस्तक्षेप करने के लिए कोई वैध आधार उठाया गया है।’’

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