देश की खबरें | मणिपुर हिंसा मामले में न्यायालय ने कहा: भावनाओं में नहीं बह सकते

Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि वह भावनाओं के साथ सुनवाई नहीं कर सकता और कानून के तहत ही कार्यवाही करेगा। अदालत ने इसी के साथ उस याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया जिसमें मणिपुर हिंसा के दौरान विस्थापित हुए लोगों की संपत्ति की रक्षा करने के शीर्ष अदालत के आदेश का कथित तौर पर अनुपालन नहीं करने पर अवमानना की कार्यवाही शुरू करने का अनुरोध किया गया था।

नयी दिल्ली, 24 मई उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि वह भावनाओं के साथ सुनवाई नहीं कर सकता और कानून के तहत ही कार्यवाही करेगा। अदालत ने इसी के साथ उस याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया जिसमें मणिपुर हिंसा के दौरान विस्थापित हुए लोगों की संपत्ति की रक्षा करने के शीर्ष अदालत के आदेश का कथित तौर पर अनुपालन नहीं करने पर अवमानना की कार्यवाही शुरू करने का अनुरोध किया गया था।

न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने कहा कि वह इस दलील से संतुष्ट नहीं है कि मणिपुर के मुख्य सचिव सहित प्रतिवादियों के खिलाफ अवमानना का मामला बनाया गया है और याचिकाकर्ता कानून के तहत उपलब्ध उपाय का सहारा ले सकते हैं।

मणिपुर की ओर से पेश हुईं अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने पीठ से कहा कि अवमानना का कोई मामला नहीं बनता एवं राज्य और केंद्र सरकार लोगों की चिंताओं को दूर करने के लिए जमीन पर हरसंभव प्रयास कर रही हैं।

भाटी ने कहा, ‘‘मामले को हमेशा चर्चा में रखने की कोशिश की जा रही है जो बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है।’’ उन्होंने कहा कि राज्य सरकार का कर्तव्य है कि वह सभी की रक्षा करे और इस मामले में अद्यतन स्थिति रिपोर्ट दाखिल की जा सकती है।

शीर्ष अदालत उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें आरोप लगाया था कि प्रतिवादियों ने जातीय हिंसा में विस्थापित हुए लोगों की संपत्तियों की रक्षा करने के पिछले साल 25 सितंबर को न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश की अवमानना की है।

पीठ ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील से सवाल किया, ‘‘आपके अनुसार किसने अवमानना की है?’’ इसपर वकील ने कहा कि मुख्य सचिव और अन्य ने। इसपर पीठ ने कहा, ‘‘वे अतिक्रमणकर्ता नहीं हैं।’’

जब वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता मणिपुर से बाहर रह रहे हैं और वे इंफाल के नजदीक भी जाने की स्थिति में नहीं है। इसपर पीठ ने कहा, ‘‘इसका अभिप्राय यह नहीं है कि मुख्य सचिव के खिलाफ नोटिस जारी किया जाए।’’

भाटी ने पिछले साल 25 सितंबर के आदेश का संदर्भ दिया, जिसमें कहा गया था कि मणिपुर सरकार और केंद्र को विस्थापित व्यक्तियों की संपत्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने तथा उनका अतिक्रमण रोकने सहित निर्देशों का जवाब देने के लिए एक सप्ताह का समय दिया जाता है।

उन्होंने कहा, ‘‘हमने स्थिति रिपोर्ट दाखिल की थी। हम अद्यतन स्थिति रिपोर्ट दाखिल कर सकते हैं।’’ भाटी ने यह भी कहा कि यह सरकार का कर्तव्य है कि वह अपने नागरिकों और उनकी संपत्ति की रक्षा करे।

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने कहा, ‘‘जैसा कि हम बोल रहे हैं, मणिपुर अब भी असहज शांति की स्थिति में है। परस्पर-विरोधी विचार हैं और राज्य एवं केंद्र सरकार सभी को समझाने-बुझाने की कोशिश कर रही हैं।’’

जब याचिकाकर्ताओं के वकील ने दावा किया कि पुलिस की मौजूदगी में संपत्ति लूटी गई है और वे ऐसी घटनाओं के वीडियो अदालत में जमा कर सकते हैं तो भाटी ने इसपर आपत्ति जताई और कहा कि बेबुनियाद आरोप लगाए जा रहे हैं।

पीठ ने कहा, ‘‘वे (अधिकारी) संपत्तियों की रक्षा करने के कर्तव्य से बंधे हैं। वे इस अदालत और सरकार के आदेशों को पूरा करने के कर्तव्य से बंधे हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है।’’

पीठ ने टिप्पणी की कि मुख्य सचिव और अन्य प्रतिवादियों के खिलाफ अवमानना का कोई मामला नहीं बनता। अदालत ने कहा, ‘‘अधिकारियों पर इस तरह का दबाव न डालें।’’

शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘आपके प्रति पूरी सहानुभूति है। आपकी संपत्तियों की रक्षा की जानी चाहिए, लेकिन इसका अभिप्राय यह नहीं है कि हमें प्रतिवादियों को अवमानना नोटिस जारी करना होगा।’’

याचिकाकर्ताओं के वकील ने जब कहा, ‘‘महोदय कृपया उस संदेश को समझें जो आज (यहां से बाहर) जाएगा...।’’ इसपर पीठ ने कहा, ‘‘हमें कानून के तहत काम करना होगा। हम भावनाओं में नहीं बह सकते।’’

मणिपुर में पिछले साल मई में मेइती समुदाय को अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में डालने को लेकर जातीय हिंसा फैल गई थी और इसमें 170 लोगों की जान चली गई और सैकड़ों लोग घायल हुए हैं।

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