देश की खबरें | अदालत ने छेड़छाड़ मामले में प्राथमिकी के आठ वर्ष बाद पॉक्सो की धाराएं लगाने पर अभियोजन को फटकार लगाई

Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. गुजरात उच्च न्यायालय ने छेड़छाड़ के एक मामले में प्राथमिकी दर्ज होने के आठ साल बाद और मुकदमे की सुनवाई लगभग पूरी होने पर चार लोगों के खिलाफ यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम की धाराएं लगाने के लिए पुलिस और अभियोजन पक्ष को फटकार लगाई।

अहमदाबाद, एक जनवरी गुजरात उच्च न्यायालय ने छेड़छाड़ के एक मामले में प्राथमिकी दर्ज होने के आठ साल बाद और मुकदमे की सुनवाई लगभग पूरी होने पर चार लोगों के खिलाफ यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम की धाराएं लगाने के लिए पुलिस और अभियोजन पक्ष को फटकार लगाई।

न्यायमूर्ति संदीप भट्ट की अदालत ने पिछले सप्ताह पारित आदेश में कहा कि पीड़िता ने 2018 में अपने बयान में स्पष्ट रूप से कहा था कि घटना के समय उसकी उम्र 15 वर्ष थी, इसके बावजूद न तो सहायक लोक अभियोजक और न ही सुनवाई कर रहे पीठासीन अधिकारी ने कोई कदम उठाया।

अदालत ने कहा कि जांच एजेंसी और अभियोजन पक्ष प्रथम दृष्टया उचित तरीके से अपना कर्तव्य निभाने में विफल रहे और उन्होंने ‘‘उचित तरीके से विचार नहीं किया’’ जिससे समय की बर्बादी हुई।

पीड़िता ने 2016 में राज्य के मेहसाणा शहर में चार लोगों के खिलाफ उस साल जनवरी में उसकी गरिमा को ठेस पहुंचाने की शिकायत दर्ज कराई थी।

आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की अन्य धाराओं के अलावा शील भंग करने और जानबूझकर अपमान करने के आरोप लगाए गए थे, लेकिन पॉक्सो अधिनियम के तहत आरोप नहीं लगाए गए, जबकि अपराध के समय पीड़िता की आयु 15 वर्ष थी।

आरोपी व्यक्तियों ने प्राथमिकी से उत्पन्न कार्यवाही को रद्द करने और दरकिनार करने का अनुरोध करते हुए उच्च न्यायालय का रुख किया। साथ ही आरोपियों ने न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी (जेएमएफसी) अदालत के 19 जुलाई, 2024 के आदेश को भी खारिज करने का अनुरोध किया, जिसमें पॉक्सो अधिनियम की धारा 11 और 12 को शामिल करने के लिए आरोपों में संशोधन किया गया था।

हालांकि, अदालत ने मामले को खारिज करने से इनकार कर दिया, लेकिन याचिकाकर्ताओं को आगे की कार्यवाही के समय मामले को पॉक्सो अदालत के समक्ष आगे बढ़ाने की अनुमति दी।

अदालत ने कहा कि जब जांच की गई थी, तो इस तथ्य का कहीं भी उल्लेख नहीं किया गया था कि घटना के समय लड़की की उम्र 15 वर्ष थी।

उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘प्रथम दृष्टया, यह पता चलता है कि जांच एजेंसी के साथ-साथ अभियोजन पक्ष और कुछ हद तक पीठासीन अधिकारी उचित तरीके से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में विफल रहे।’’

अदालत ने ‘‘संबंधित उच्च प्राधिकारियों’’ को मामले की पड़ताल करने तथा ‘‘ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति से बचने के लिए आवश्यक कार्रवाई करने तथा यह पता लगाने के लिए आवश्यक कार्रवाई का निर्देश दिया कि क्या राज्य में कहीं और भी ऐसी कोई घटना हो रही है।’’

अदालत ने निर्देश दिया कि आदेश की प्रति पुलिस महानिदेशक (डीजीपी), गृह सचिव, विधि सचिव तथा उच्च न्यायालय के महापंजीयक को ‘‘आवश्यक विचार के लिए’’ भेजी जाए।

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