देश की खबरें | न्यायालय ने मतदाता संख्या बढ़ाने पर निर्वाचन आयोग का रुख पूछा
Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को निर्वाचन आयोग से उस जनहित याचिका पर जवाब मांगा, जिसमें प्रत्येक मतदान केंद्र पर मतदाताओं की अधिकतम संख्या 1,200 से बढ़ाकर 1,500 करने के उसके फैसले को चुनौती दी गई है।
नयी दिल्ली, दो दिसंबर उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को निर्वाचन आयोग से उस जनहित याचिका पर जवाब मांगा, जिसमें प्रत्येक मतदान केंद्र पर मतदाताओं की अधिकतम संख्या 1,200 से बढ़ाकर 1,500 करने के उसके फैसले को चुनौती दी गई है।
प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने निर्वाचन आयोग से अपना रुख स्पष्ट करने को कहा। उन्होंने कहा, ‘‘हम चिंतित हैं। किसी भी मतदाता को वंचित नहीं किया जाना चाहिए।’’
पीठ ने आयोग की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह को प्रत्येक मतदान केंद्र पर मतदाताओं की अधिकतम संख्या बढ़ाने संबंधी फैसले का औचित्य स्पष्ट करते हुए एक संक्षिप्त हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया।
पीठ ने कहा, ‘‘निर्वाचन आयोग की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह ने कहा है कि वे एक संक्षिप्त हलफनामे के जरिये स्थिति स्पष्ट करेंगे। हलफनामा तीन हफ्ते के भीतर दाखिल किया जाए।’’
सिंह ने कहा कि पीठ ईवीएम को लेकर लगातार लगाए जा रहे आरोपों से वाकिफ है। उन्होंने कहा, ‘‘आरोप लगते रहेंगे। 2019 से मतदान ऐसे ही हो रहा है और मतदाता संख्या बढ़ाने से पहले हर निर्वाचन क्षेत्र में राजनीतिक दलों से परमार्श किया जा रहा है।’’
सिंह ने कहा कि मतदान केंद्रों पर कई मतदान बूथ हो सकते हैं और जब प्रति ईवीएम मतदाताओं की कुल संख्या बढ़ाई गई, तो प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में राजनीतिक दलों से परामर्श किया गया।
उन्होंने कहा कि मतदाताओं को निर्धारित समय के बाद भी हमेशा वोट डालने की अनुमति दी गई।
पीठ ने निर्वाचन आयोग को अगली सुनवाई से पहले याचिकाकर्ता को अपने हलफनामे की एक प्रति मुहैया कराने का निर्देश दिया। मामले की अगली सुनवाई 27 जनवरी 2025 को होगी।
इंदु प्रकाश सिंह की ओर से दायर जनहित याचिका में अगस्त में निर्वाचन आयोग द्वारा जारी दो विज्ञप्तियों को चुनौती दी गई है, जिसमें पूरे भारत में प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में प्रति मतदान केंद्र मतदाताओं की संख्या बढ़ाने की बात कही गई है।
याचिकाकर्ता ने कहा है कि प्रति मतदान केंद्र मतदाताओं की संख्या बढ़ाने का फैसला मनमाना है और यह किसी भी डेटा पर आधारित नहीं है।
शीर्ष अदालत ने 24 अक्टूबर को निर्वाचन आयोग को कोई भी नोटिस जारी करने से इनकार कर दिया था। हालांकि, उसने याचिकाकर्ता को आयोग के स्थायी वकील को याचिका की प्रति सौंपने की अनुमति दे दी थी, ताकि इस मुद्दे पर उसका रुख पता चल सके।
याचिकाकर्ता की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने दलील दी कि मतदाताओं की संख्या 1,200 से बढ़ाकर 1,500 करने से वंचित समूह चुनावी प्रक्रिया से बाहर हो जाएंगे, क्योंकि किसी व्यक्ति को अपने मताधिकार का इस्तेमाल करने के लिए अधिक समय खर्च करना होगा।
सिंघवी ने कहा कि मतदान केंद्रों पर लंबी कतारें और प्रतीक्षा समय मतदाताओं को वोट डालने से हतोत्साहित करेगा।
हालांकि, पीठ ने कहा कि निर्वाचन आयोग मतदान में अधिक भागीदारी चाहता है और ईवीएम के इस्तेमाल के साथ मतदान में मतपत्रों की तुलना में कम समय लगता है। उसने कहा कि आयोग का इरादा मतदान केंद्रों पर ईवीएम की संख्या बढ़ाकर वोट डालने में लगने वाले समय में कमी लाना है।
हालांकि, याचिकाकर्ता ने कहा कि निर्वाचन आयोग का फैसला महाराष्ट्र और झारखंड के बाद 2025 में बिहार और दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनावों के दौरान मतदाताओं को प्रभावित करेगा।
उसने कहा कि आम तौर पर मतदान 11 घंटे होता है और एक वोट डालने में लगभग 60 से 90 सेकंड का समय लगता है, इस लिहाज से एक ईवीएम के साथ एक मतदान केंद्र पर एक दिन में 660 से 990 मतदाता अपना वोट डाल सकते हैं।
याचिकाकर्ता ने कहा कि औसत मतदान प्रतिशत को 65.70 फीसदी मानते हुए यह अनुमान लगाया जा सकता है कि 1,000 मतदाताओं के लिए तैयार एक मतदान केंद्र पर लगभग 650 लोग वोट डालने के लिए पहुंचते हैं।
उसने कहा कि ऐसे भी कई केंद्र हैं, जहां 85 से 90 फीसदी मतदान दर्ज किया जाता है।
याचिकाकर्ता ने दलील दी, ‘‘ऐसी स्थिति में लगभग 20 फीसदी मतदाता या तो मतदान के समय के बाद भी कतार में खड़े रहेंगे या लंबी प्रतीक्षा अवधि के कारण मताधिकार का इस्तेमाल करना छोड़ देंगे। एक प्रगतिशील गणतंत्र या लोकतंत्र में इनमें से कुछ भी स्वीकार्य नहीं है।’’
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