चीन अपने बुरे बर्ताव से बाज नहीं आ रहा है: अमेरिकी राजनयिक
दक्षिण एवं मध्य एशिया मामलों के लिये वरिष्ठ अमेरिकी राजनयिक एलिस जी वेल्स ने कहा कि भारत-चीन सीमा पर तनाव और विवादित दक्षिण चीन सागर में बीजिंग के बढ़ते आक्रामक व्यवहार का कुछ-न-कुछ संबंध जरूर है।
वाशिंगटन, 21 मई चीन से लगी भारत की सीमा पर तनाव के बीच अमेरिका ने नयी दिल्ली का समर्थन किया है। एक शीर्ष अमेरिकी राजनयिक ने बीजिंग पर आरोप लगाया कि वह अपने अतिसक्रिय और परेशान करने वाले व्यवहार से यथास्थिति को बदलने की कोशिश कर रहा है।
दक्षिण एवं मध्य एशिया मामलों के लिये वरिष्ठ अमेरिकी राजनयिक एलिस जी वेल्स ने कहा कि भारत-चीन सीमा पर तनाव और विवादित दक्षिण चीन सागर में बीजिंग के बढ़ते आक्रामक व्यवहार का कुछ-न-कुछ संबंध जरूर है।
अमेरिकी विदेश विभाग में दक्षिण एवं मध्य एशिया ब्यूरो की निवर्तमान प्रमुख वेल्स ने बुधवार को संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘मुझे लगता है कि सीमा पर जो तनाव है वह इस बात को याद दिलाता है कि चीन आक्रामक रुख जारी रखे हुए है। चाहे वह दक्षिण चीन सागर हो, या भारत से लगी सीमा, हम चीन द्वारा उकसाने वाला और परेशान करने वाला व्यवहार लगातार देख रहे हैं। यह इस बारे में सवाल खड़े करता है कि चीन अपनी बढ़ती शक्ति का इस्तेमाल किस तरह से करना चाहता है।’’
वरिष्ठ अमेरिकी राजनयिक ने एक अलग कार्यक्रम में अटलांटिक काउंसिल थिंक टैंक से बुधवार को कहा, ‘‘चीनी गतिविधियों की एक पद्धति है और यह निरंतर ही आक्रामक रही है, नियमों को धता बताने की निरंतर कोशिश, यथास्थिति को बदलने की कोशिश की जाती रही है। इसका प्रतिरोध करना होगा।’’
उन्होंने भारत-चीन सीमा पर हालिया तनाव के बारे में पूछे गये एक सवाल के जवाब में यह बात कही।
वेल्स 31 साल के लंबे करियर के बाद विदेश विभाग से 22 मई को सेवानिवृत्त हो रही हैं।
उन्होंने रणनीतिक महत्व के दक्षिण चीन सागर में चीन के आक्रामक व्यवहार के बारे में भी बातें की।
उल्लेखनीय है कि चीन समूचे दक्षिण चीन सागर में अपनी संप्रभुता का दावा करता है। वहीं, वियतनाम, मलेशिया, फिलीपीन, ब्रूनेई और ताईवान भी इस समुद्री क्षेत्र पर अपना-अपना दावा करते हैं।
दक्षिण चीन सागर और पूर्वी चीन सागर, दोनों क्षेत्रों में चीन क्षेत्रीय विवाद में शामिल है। चीन ने क्षेत्र में कई द्वीपों पर अपना सैन्य अड्डा बनाया है। ये दोनों क्षेत्र खनिज, तेल और अन्य प्राकृतिक संसाधनों से संपन्न हैं और वैश्विक व्यापार का अहम समुद्री मार्ग भी हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘यही कारण है आपने देखा कि समान विचारों वाले देशों को लामबंद किया जा रहा है... आसियान या अन्य कूटनीतिक समूहों के जरिये, अमेरिका, जापान और भागीदारी वाले त्रिपक्षीय समूह, या आस्ट्रेलिया की भी भागीदारी वाले चतुष्कोणीय समूह के जरिये...वैश्विक रूप से इस बारे में बातचीत हो रही है कि किस तरह से हम द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की आर्थिक व्यवस्था के सिद्धांतों को लागू कर सकते हैं, जो मुक्त एवं खुले व्यापारिक मार्ग का समर्थन करते है।’’
शीर्ष अमेरिकी राजनयिक ने कहा, ‘‘हम एक ऐसी अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था देखना चाहते हैं जो हर किसी को फायदा पहुंचाए और कोई ऐसी प्रणाली नहीं हो जिसमें चीन का अधिपत्य हो। मुझे लगता है कि इस दृष्टांत में, सीमा विवाद चीन द्वारा पेश किये गये खतरे की याद दिलाता है।’’
गौरतलब है कि पांच मई को पूर्वी लद्दाख के पेंगोंग त्सो झील इलाके में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच सरिये, डंडे और पत्थरों से झड़प हुई थी। इसमें दोनों ओर के सैनिकों को चोटें आई थीं।
सूत्रों के मुताबिक नौ मई को एक अन्य घटना के तहत सिक्किम सेक्टर में नाकु ला पास के पास दोनों देशों के सैनिकों के बीच झड़प हुई थी। इस घटना में दोनों ओर के कम से कम 10 सैनिकों को चोटें आई थीं।
उल्लेखनीय है कि चीन अरूणाचल प्रदेश के दक्षिण तिब्बत का हिस्सा होने का दावा करता है जबकि भारत उसके दावे का विरोध करता रहा है।
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