देश की खबरें | छत्तीसगढ़ : जहां नक्सलियों से मुठभेड़ हुई, वहां अब पसरा है सन्नाटा
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(तस्वीरों के साथ)
कांकेर, 17 अप्रैल छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित कांकेर जिले के हिदुर और कल्पर गांवों के जंगल में सुरक्षा बलों तथा नक्सलियों के बीच मंगलवार को मुठभेड़ के बाद अब सन्नाटा पसरा हुआ है। घटना के बाद ग्रामीण अपनी दिनचर्या में व्यस्त हैं लेकिन अनजान लोगों को देखकर कुछ भी बोलने से हिचक रहे हैं।
राज्य के नक्सल प्रभावित इस जिले के छोटे बेठिया थाना क्षेत्र के अंतर्गत हिदुर और कल्पर गांवों के करीब जंगल में मंगलवार को सुरक्षा बलों ने चार घंटे तक चली मुठभेड़ में 29 नक्सलियों को मार गिराया था।
गांवों के करीब बांस की झाड़ियों से घिरी पहाड़ियों पर सन्नाटा पसरा हुआ है, लेकिन यहां पेड़ों पर खून के धब्बे और गोलियों के निशान इस बात को बयां कर रहे हैं कि मुठभेड़ कितनी भीषण थी।
मुठभेड़ वाली जगह के नजदीक के गांवों में ज्यादातर स्थानीय आदिवासी महिलाएं देखी गईं। वे अपनी रोजमर्रा के कामों में व्यस्त दिखीं। लेकिन, मंगलवार की दोपहर पहाड़ी पर क्या हुआ, यह पूछने पर वे कुछ भी बोलने से हिचक रही थीं।
इस बीच खुद को क्षेत्र के अकामेटा गांव का निवासी बताने वाले लिंगाराम ने बताया कि उनका चचेरा भाई एवं सक्रिय नक्सली सुक्कू मुठभेड़ में मारा गया।
लिंगाराम ने बताया कि वह घटना के बारे में अनभिज्ञ थे और बुधवार को उन्हें इसकी जानकारी मिली।
उन्होंने कल्पर गांव में संवाददाताओं से कहा कि सुक्कू बचपन से ही प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी- माओवादी (भाकपा-माओवादी) संगठन में शामिल हो गया था। लिंगाराम के मुताबिक परिवार के सदस्यों ने उसे संगठन को छोड़ने के लिए मनाने की कोशिश की थी, लेकिन वह नहीं माना।
लिंगाराम ने बताया कि परिवार के सदस्यों ने अभी तक उसके शव पर दावा करने के लिए पुलिस से संपर्क नहीं किया है।
मुठभेड़ स्थल तक पहुंचने वाला कच्चा रास्ता कई जगह खुदा हुआ दिखा। यहां लोकसभा चुनाव के बहिष्कार के संदेश वाले नक्सलियों के पोस्टर लगे हुए थे।
नक्सलियों की ‘उत्तर बस्तर डिवीजन कमेटी’ का गढ़ माने जाने वाले इस क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए कोटरी नदी को पार करना पड़ता है, जो गर्मियों में सूख जाती है। स्थानीय प्रशासन यहां लंबे समय से पुल बनाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन ग्रामीणों के विरोध के कारण सफलता नहीं मिल पा रही है।
मुठभेड़ स्थल बेचाघाट से करीब 15 किलोमीटर दूर कांकेर, नारायणपुर (छत्तीसगढ़) और गढ़चिरौली (महाराष्ट्र) जिले के त्रिकोण पर स्थित है।
ग्रामीण आयतू ने बताया कि उसने दोपहर में गोलियों की आवाज सुनी थी जो कल्पर गांव से सटी एक पहाड़ी से आ रही थी। आयतू ने इससे आगे कुछ भी कहने से इनकार कर दिया।
पहाड़ी पर चढ़ने पर कई स्थानों पर खून के धब्बे और पेड़ों पर गोलियों के निशान देखे जा सकते हैं। खाली सिरिंज और शीतल पेय की बोतलें इलाके में एक सूखे नाले के किनारे बिखरी हुई दिखीं। एक स्ट्रेचर भी पड़ा हुआ था जिसका इस्तेमाल सुरक्षाकर्मी अपने घायल सहकर्मियों को ले जाने के लिए करते हैं।
पुलिस के अनुसार लगभग दो सौ की संख्या में जिला रिजर्व गार्ड (डीआरजी) और सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के जवानों ने 15 अप्रैल की देर शाम विभिन्न स्थानों से नक्सल विरोधी अभियान शुरू किया था। वे मेहरा गांव में एकत्र हुए थे।
उन्होंने बताया कि सुरक्षा बलों ने खैरीपदर गांव में कोटरी नदी पार की और फिर अन्य गांवों से होते हुए उस पहाड़ी को घेर लिया जहां माओवादियों के वरिष्ठ कैडरों की आवाजाही की सूचना मिली थी।
पुलिस ने बताया कि दोनों पक्षों के बीच मुठभेड़ मंगलवार दोपहर करीब 12.30 बजे शुरू हुई और लगभग चार घंटे तक चली। गोलीबारी बंद होने के बाद घटनास्थल से 15 महिलाओं समेत 29 नक्सलियों के शव बरामद किए गए। गोलीबारी में तीन सुरक्षाकर्मी भी घायल हुए हैं।
पिछले तीन दशक से अधिक समय से माओवाद की समस्या से जूझ रहे छत्तीसगढ़ में यह पहली बार है जब सुरक्षा बलों ने मुठभेड़ में इतनी बड़ी संख्या में नक्सलियों को मार गिराया है।
साल 2024 की शुरुआत के बाद से बस्तर क्षेत्र में सुरक्षा बलों के साथ अलग-अलग मुठभेड़ में 79 नक्सली मारे गए हैं।
पुलिस अधिकारियों ने बताया कि मंगलवार को सुरक्षा बलों ने मौके से भारी मात्रा में हथियार बरामद किये।
उपमुख्यमंत्री एवं राज्य का गृह विभाग भी संभाल रहे विजय शर्मा ने मुठभेड़ को ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ करार देते हुए बड़ी सफलता बताया और कहा कि इसका श्रेय सुरक्षा बलों के बहादुर जवानों को जाता है।
संजीव धीरज
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