नयी दिल्ली/दाहोद, 8 जनवरी: उच्चतम न्यायालय ने गुजरात सरकार पर अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करने का आरोप लगाते हुए 2002 के दंगों के दौरान बिलकीस बानो से सामूहिक दुष्कर्म और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में 11 दोषियों को सजा में छूट देने के राज्य सरकार के फैसले को सोमवार को रद्द कर दिया और दोषियों को दो सप्ताह के अंदर जेल भेजने का निर्देश दिया.
न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्ज्ल भुइयां की पीठ ने कहा कि सजा में छूट का गुजरात सरकार का आदेश बिना सोचे समझे पारित किया गया और पूछा कि क्या ‘‘महिलाओं के खिलाफ जघन्य अपराध के मामलों में सजा में छूट की अनुमति है’’, चाहे वह महिला किसी भी धर्म या पंथ को मानती हो. उच्चतम न्यायालय के आदेश पर बानो के कुछ रिश्तेदारों ने दाहोद जिले के देवगढ़ बारिया में पटाखे चलाए.
शीर्ष अदालत ने मामले पर अपने 251 पन्नों के फैसले में कहा कि बिना सोचे समझे सजा माफी का आदेश दिया गया. फैसले का पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, कांग्रेस नेता राहुल गांधी और एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी ने स्वागत किया. घटना के वक्त बिलकीस बानो 21 साल की थीं और पांच माह की गर्भवती थीं। बानो से गोधरा ट्रेन अग्निकांड के बाद 2002 में भड़के दंगों के दौरान दुष्कर्म किया गया था. दंगों में मारे गए उनके परिवार के सात सदस्यों में उनकी तीन साल की बेटी भी शामिल थी.
गुजरात सरकार ने इस मामले के सभी 11 दोषियों को सजा में छूट देकर 15 अगस्त, 2022 को रिहा कर दिया था.न्यायालय ने कहा कि गुजरात सरकार को छूट का आदेश पारित करने का अधिकार नहीं था. उसने स्पष्ट किया कि जिस राज्य में अपराधी पर मुकदमा चलता है और सजा सुनाई जाती है, उसे दोषियों की माफी की याचिका पर फैसले का अधिकार होता है। दोषियों पर महाराष्ट्र में मुकदमे की कार्यवाही संचालित हुई थी.
पीठ ने कहा, ‘‘कानून के शासन का उल्लंघन हुआ क्योंकि गुजरात सरकार ने अपने अधिकारों का दुरुपयोग किया। इस आधार पर भी माफी के आदेश को रद्द किया जाना चाहिए.’’ पीठ ने कहा, ‘‘शीर्ष अदालत के 13 मई, 2022 के आदेश का लाभ उठाते हुए अन्य दोषियों ने भी सजा में छूट के लिये अर्जी दायर की. गुजरात (सरकार) की इसमें मिलीभगत थी और उसने इस मामले में प्रतिवादी संख्या तीन (दोषियों में से एक) के साथ मिलकर काम किया। तथ्यों को छिपाकर अदालत को गुमराह किया गया.’’ शीर्ष अदालत ने यह भी माना कि संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत बिलकीस बानो द्वारा सजा में छूट को चुनौती देने के लिये दायर जनहित याचिका विचारणीय है.
अनुच्छेद 32 के अनुसार, ‘‘यह एक मौलिक अधिकार है, जिसमें कहा गया है कि व्यक्तियों को संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त अन्य मौलिक अधिकारों को लागू कराने के लिए उच्चतम न्यायालय (एससी) से संपर्क करने का अधिकार है.’’ न्यायमूर्ति नागरत्ना ने यूनानी दार्शनिक प्लेटो के कथन का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘दंड प्रतिशोध के लिए नहीं, बल्कि रोकथाम और सुधार के लिए दिया जाना चाहिए, क्योंकि जो हो चुका है, उसे पूर्ववत नहीं किया जा सकता है.’’ प्लेटो ने कहा है कि दंड देने वाले को, जहां तक हो सके उस चिकित्सक की तरह काम करना चाहिए, जो केवल दर्द के लिए नहीं, बल्कि रोगी का भला करने के लिए दवा देता है.
सजा के इस उपचारात्मक सिद्धांत में दंड की तुलना दंडित किए जाने वाले व्यक्ति की भलाई के लिए दी जाने वाली दवा से की गई है.
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि पीड़िता के अधिकार भी महत्वपूर्ण हैं. उन्होंने कहा, ‘‘एक महिला सम्मान की हकदार है, भले ही उसे समाज में कितना भी ऊंचा या नीचा माना जाए या वह किसी भी धर्म या पंथ को मानती हो.’’ उन्होंने कहा, ‘‘क्या महिलाओं के खिलाफ जघन्य अपराध के मामलों में सजा में छूट दी जा सकती है? ये ऐसे मुद्दे हैं, जो पैदा होते हैं.’’
फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए सेवानिवृत्त आईपीएस (भारतीय पुलिस सेवा) अधिकारी मीरान चड्ढा बोरवंकर और अन्य की ओर से पेश हुईं वरिष्ठ अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने इसे बहुत अच्छा फैसला बताया. ग्रोवर ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘...(इस फैसले ने) कानून के शासन और इस देश के लोगों विशेष रूप से महिलाओं की कानूनी प्रणाली, अदालतों में आस्था को बरकरार रखा है और न्याय का आश्वासन दिया है.’’
दाहोद के देवगढ़ बारिया में मामले के गवाहों में से एक अब्दुल रजाक मंसूरी ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘मैं इस मामले में एक गवाह हूं. इन 11 दोषियों को महाराष्ट्र की एक अदालत ने सजा सुनाई थी. उन्हें रिहा करने का गुजरात सरकार का फैसला गलत था. इसलिए हमने उसे अदालत में चुनौती दी थी.’’ उन्होंने कहा, ‘‘मुझे खुशी है कि उच्चतम न्यायालय ने गुजरात सरकार के फैसले को खारिज कर दिया है और दोषियों को आत्मसमर्पण करने को कहा है। मुझे लगता है कि हमें आज न्याय मिला है.’’ फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए भारत राष्ट्र समिति की नेता के. कविता, नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला और अन्य नेताओं ने भी इसका स्वागत किया.
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