देश की खबरें | बिलकीस बानो मामला: कुछ दोषियों को अधिक विशेषाधिकार प्राप्त हैं- उच्चतम न्यायालय ने कहा
Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. वर्ष 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकीस बानो से सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में 11 दोषियों की समय-पूर्व रिहाई के फैसले को चुनौती देने संबंधी याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि कुछ दोषी ऐसे हैं जिन्हें ‘‘अधिक विशेषाधिकार प्राप्त’’ हैं।
नयी दिल्ली, 14 सितंबर वर्ष 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकीस बानो से सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में 11 दोषियों की समय-पूर्व रिहाई के फैसले को चुनौती देने संबंधी याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि कुछ दोषी ऐसे हैं जिन्हें ‘‘अधिक विशेषाधिकार प्राप्त’’ हैं।
दोषियों में से एक ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि दोषियों के सुधार और पुनर्वास के लिए सजा में छूट देना ‘‘अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक तय स्थिति’’ है और बिलकीस बानो तथा अन्य की यह दलील कि अपराध की जघन्य प्रकृति के कारण उसे राहत नहीं दी जा सकती, अब कार्यपालिका के फैसले के बाद मान्य नहीं हो सकती।
न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने दोषी रमेश रूपाभाई चंदना की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा से कहा, ‘‘हम छूट की अवधारणा को समझते हैं। यह सर्वमान्य है। लेकिन यहां, वे (पीड़ित और अन्य) वर्तमान मामले में इस पर सवाल उठा रहे हैं।’’
पीठ ने वकील से सजा में छूट देने को चुनौती देने संबंधी याचिकाओं पर दिए गए फैसले उपलब्ध कराकर सहायता करने के लिए कहा। पीठ ने कहा कि आमतौर पर राज्यों द्वारा इस तरह की छूट से इनकार किए जाने के खिलाफ मामले दायर किए जाते हैं।
पीठ ने कहा, ‘‘कुछ दोषी ऐसे हैं जिन्हें इस तरह की छूट प्राप्त करने में अधिक विशेषाधिकार प्राप्त हैं।’’
लूथरा ने कहा कि लेकिन कानूनी स्थिति और नीति वही बनी हुई है। उन्होंने कहा, ‘‘आजीवन कारावास की सजा के दोषियों का पुनर्वास और सुधार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक स्थापित स्थिति है।’’
न्यायालय 20 सितंबर को याचिकाओं पर सुनवाई फिर से शुरू करेगा।
इससे पहले, पीठ ने चंदना से उस पर लगाए गए जुर्माने को ऐसे समय जमा करने पर सवाल उठाया था, जब उसकी सजा में छूट को चुनौती देने संबंधी याचिकाओं पर सुनवाई जारी है।
उच्चतम न्यायालय ने 17 अगस्त को गुजरात सरकार से कहा था कि राज्य सरकारों को दोषियों को सजा में छूट देने में चयनात्मक रवैया नहीं अपनाना चाहिए और प्रत्येक कैदी को सुधार तथा समाज के साथ फिर से जुड़ने का अवसर दिया जाना चाहिए।
गुजरात सरकार ने मामले के सभी 11 दोषियों की समय-पूर्व रिहाई के अपने फैसले का बचाव किया था।
तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की सांसद महुआ मोइत्रा ने उच्चतम न्यायालय से कहा था कि बिलकीस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या ‘‘मानवता के खिलाफ अपराध’’ था। उन्होंने गुजरात सरकार पर आरोप लगाया था कि वह इस मामले में 11 दोषियों को सजा में छूट देकर महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की रक्षा के अपने संवैधानिक दायित्व का पालन करने में विफल रही है।
इस मामले में बिलकीस की याचिका के साथ ही मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की नेता सुभाषिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार रेवती लाल और लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूपरेखा वर्मा समेत अन्य ने जनहित याचिकाएं दायर कर सजा में छूट को चुनौती दी है। टीएमसी सांसद मोइत्रा ने भी जनहित याचिका दायर की थी।
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