देश की खबरें | कोविड-19 महामारी के दौरान 1,675 बच्चों को 'उत्पीड़न के हालात' से बाहर निकाला गया: बीबीए
Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी के एनजीओ 'बचपन बचाओ आंदोलन' ने कहा है कि बीते आठ महीनों के दौरान तस्करी के शिकार 1,600 से अधिक बच्चों को ''उत्पीड़न के हालात'' से निकाला गया है। एनजीओ ने साथ ही यह भी कहा कि कोविड-19 महामारी तथा लॉकडाउन के चलते परिजन के आजीविका खोने से बाल तस्करी के मामलों में इजाफा हुआ है।
नयी दिल्ली, छह दिसंबर नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी के एनजीओ 'बचपन बचाओ आंदोलन' ने कहा है कि बीते आठ महीनों के दौरान तस्करी के शिकार 1,600 से अधिक बच्चों को ''उत्पीड़न के हालात'' से निकाला गया है। एनजीओ ने साथ ही यह भी कहा कि कोविड-19 महामारी तथा लॉकडाउन के चलते परिजन के आजीविका खोने से बाल तस्करी के मामलों में इजाफा हुआ है।
केन्द्र सरकार ने कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिये 25 मार्च को राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन लागू किया था। हालांकि केन्द्र सरकार ने आठ जून से 'अनलॉक' प्रक्रिया के तहत पाबंदियों में धीरे-धीरे ढील देनी शुरू कर दी थी।
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बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) के कार्यकारी निदेशक धनंजय टिंगल ने कहा, ''लॉकडाउन के दौरान सबसे बड़ी चिंताओं में एक यह थी कि वित्तीय संकट के चलते परिवार अनैतिक तरीके से कर्ज लेने लगेंगे। ऐसे में यह आशंका भी बढ़ गई थी कि बाल तस्कर बच्चों और उनके परिवारों को बेहतर आजीविका का अवसर देने का वादा कर उन्हें लालच देना शुरू कर देंगे। ''
तेरह वर्षीय कृष्णा (बदला हुआ नाम) उन 1,675 बच्चों में से एक है, जिसे बीबीए ने अप्रैल तथा नवंबर के बीच बचाया था।
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बीबीए के अधिकारियों ने कहा कि गुजरात के गांधीनगर में एक कपड़ा फैक्टरी में काम कराने के लिये कृष्णा की बिहार में उसके गांव से तस्करी की गई थी। वह फैक्टरी में हर दिन 12 घंटे तक काम करता था। वह एक छोटे कमरे में रहता था, जिसमें उसके जैसे ही छह अन्य बच्चे भी रहते थे।
अधिकारियों ने कहा कि उन्हें जितना मेहनताना देने का वादा किया गया था, उतना कभी नहीं दिया जाता था। इसके अलावा उन्हें हफ्ते में सिर्फ आधा दिन आराम करने के लिये मिलता था। साथ ही उन पर काम का दवाब भी डाला जा रहा था।
बीबीए ने कहा कि खेतों में मजदूरी करने वाले उसके माता-पिता का कोरोना वायरस महामारी के चलते काम छूट गया। कृष्णा के माता-पिता ने घर की छत ठीक कराने के लिये लॉकडाउन से पहले 20,000 रुपये का कर्ज लिया था, लेकिन बेरोजगारी के चलते वे कर्ज नहीं चुका पा रहे थे।
उन्होंने कहा कि कृष्णा के माता-पिता के लिये परिवार के 11 लोगों का पेट भरना मुश्किल हो गया था। हालात का फायदा उठाकर तस्करों ने उन्हें 20 हजार रुपये दिये और कृष्णा को काम के लिये गुजरात ले गए।
जुलाई में बीबीए द्वारा मुक्त कराए जाने से पहले उसके मालिक ने उसका शोषण किया।
चौदह साल के साद खान (बदला हुआ नाम) की कहानी भी इससे अलग नहीं है।
बीबीए के अधिकारियों ने कहा कि उसके परिवार में तीन लोग कमाने वाले थे, लेकिन महामारी से पैदा हुई गरीबी ने उसे काम तलाशने के लिये मजबूर कर दिया।
खान और उसके परिवार को तस्करों ने लालच में फंसाकर 5,000 रुपये दिये और उसे काम दिलाने का वादा किया।
टिंगल ने कहा, ''किसी तस्कर द्वारा पहले ही पैसे दिये जाने से मामला बंधुआ मजदूरी का बन जाता है, जिससे यह और पेचीदा हो जाता है।''
खान तथा 15 अन्य बच्चों को सितंबर में बचाया गया था जब उन्हें चूड़ी बनाने की फैक्टरी में काम कराने के लिये बस में बिठाकर राजस्थान में जयपुर ले जाया जा रहा था। बीबीए ने मानव तस्करी रोधी इकाई तथा स्थानीय पुलिस की मदद से उन्हें बचा लिया।
एनजीओ ने कहा कि अप्रैल से नवंबर के बीच 1,675 बच्चों को ''उत्पीड़न के हालात'' से मुक्त कराया गया है तथा 107 तस्करों को गिरफ्तार कर लिया गया।
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