राजशाही और गुलामों के कारोबार की जांच के लिए खुलेगा रॉयल अर्काइव्स

ब्रिटिश राजशाही के गुलामी से संबंध खोजने वाली स्वतंत्र रिसर्च को ब्रिटेन के राजा चार्ल्स थर्ड ने मंजूरी दी.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

ब्रिटिश राजशाही के गुलामी से संबंध खोजने वाली स्वतंत्र रिसर्च को ब्रिटेन के राजा चार्ल्स थर्ड ने मंजूरी दी. राज महल बकिंघम पैलेस ने इसकी पुष्टि की है.आधिकारिक राज्याभिषेक से एक महीने पहले पैलेस ने कहा कि अकादमिक शोधकर्ता रॉयल अर्काइव्स तक आसानी से पहुंच सकेंगे. बकिंघम पैलेस के मुताबिक इस मुद्दे को खुद राजा चार्ल्स ने "बेहद गंभीरता" से लिया है.

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बकिंघम पैलेस ने यह भी कहा कि राज परिवार, राजशाही और गुलामी के रिश्तों की पड़ताल करने वाले स्वतंत्र रिसर्च प्रोजेक्ट को सपोर्ट करेगा. ऐसी रिसर्च के लिए 17वीं शताब्दी के आखिर से 18वीं शताब्दी तक के दस्तावेज मुहैया कराए जाएंगे. राज परिवार के अधीन आने वाले ये दस्तावेज अब तक शोधकर्ताओं की पहुंच से दूर थे.

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पैलेस ने अपने बयान में कहा, "इन मुद्दों की जटिलताओं को देखते हुए, यह जरूरी है कि जितना संभव हो सके उतने विस्तृत तरीके से इनकी छानबीन की जाए." अनुमान है कि "रिसर्च सितंबर 2026 तक पूरी हो जाएगी."

नई खोजों से पैदा हुई बहस

ब्रिटेन के प्रतिष्ठित अखबार द गार्डियन की एक रिपोर्ट के मुताबिक अर्काइव दस्तावेजों से इतिहासकार ब्रूके न्यूमैन को पता चला कि 1689 में महाराज विलियम तृतीय ने रॉयल अफ्रीकन कंपनी (आरएसी) को 1,000 पाउंड के बराबर शेयर दिए थे. आरएसी अटलांटिक के आर पार गुलामों का कारोबार करने के लिए बदनाम थी.

हाल ही में सामने आए इस दस्तावेज में एडवर्ड कॉल्स्टन के दस्तखत हैं. कारोबारी कॉल्स्टन उस वक्त गुलामों के सौदे का बड़ा खिलाड़ी था. 2020 में ब्लैक लाइव्स मैटर प्रदर्शनों के दौरान प्रदर्शनकारियों ने ब्रिस्टल शहर में कॉल्स्टन की मूर्ति गिराकर समंदर में फेंक दी.

किंग विलियम तृतीय से पहले, महाराज जेम्स द्वितीय भी रॉयल अफ्रीकन कंपनी के सबसे बड़े निवेशक थे. गुलामी प्रथा या गुलामों के कारोबार को लेकर ब्रिटिश राजपरिवार के किसी सदस्य ने अभी तक माफी नहीं मांगी है.

हाल के बरसों में कैरेबियाई देशों में गुलामों के कारोबार के मुद्दे पर ब्रिटिश राजघराने और सरकार से मुआवजे की मांग जोर पकड़ रही है. कई कैरेबियाई देश कॉमनवेल्थ से बाहर निकल रहे हैं. जमैका और बहमाज अब भी ब्रिटिश राजगद्दी पर बैठे शख्स को अपना राष्ट्र प्रमुख मानते हैं. इन देशों में भी अतीत के जख्मों के लिए मुआवजे की मांग सुनाई दे रही है.

ओएसजे/सीके (एएफपी, रॉयटर्स)

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