सिडनी के ओपेरा हाउस में होगी क्वॉड की बैठक

24 मई को ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में क्वॉड देशों के नेताओं की बैठक होगी.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

24 मई को ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में क्वॉड देशों के नेताओं की बैठक होगी. इस बैठक में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी हिस्सा लेंगे. क्या हासिल करना चाहता है क्वॉड?24 मई को ऑस्ट्रेलिया में होने वाली क्वॉड देशों की बैठक सिडनी के ओपेरा हाउस में होगी. इस बैठक में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, जापान के प्रधानमंत्री फूमियो किशिदा और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीजी के साथ भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी हिस्सा लेंगे.

2020 में राष्ट्रपति बनने के बाद जो बाइडेन की यह पहली ऑस्ट्रेलिया यात्रा होगी. क्वॉड यानी क्वॉड्रिलेटरल सिक्योरिटी डायलॉग इन चार देशों का संगठन है जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता, सुरक्षा और उन्नति के लक्ष्यों के लिए मिलकर काम करने के वास्ते बनाया गया है. इन देशों के नेता हर साल मिलने पर सहमत हुए हैं और पिछले साल यह बैठक जापान के टोक्यो में हुई थी.

ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीजी ने बुधवार को बैठक की जानकारियां साझा कीं. उन्होंने कहा, "जब हम अपने करीबी सहयोगियों और दोस्तों के साथ मिलकर काम करते हैं तो हमेशा हमारे लिए बेहतर होता है. क्वॉड एक ऐसा हिंद-प्रशांत क्षेत्र बनाने को प्रतिबद्ध है जो खुला, स्थिर और प्रगतिशील हो, जहां राष्ट्रीय संप्रभुता का सम्मान किया जाए और सभी की सुरक्षा व विकास सुनिश्चित हो.”

भारत की भूमिका

क्वॉड देशों में भारत की भूमिका के कई पहलू हैं. चार में तीन देश अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया का रूस-यूक्रेन युद्ध पर एक जैसा मत है और वे रूस की तीखी आलोचना व विरोध करते रहे हैं. लेकिन रूस को लेकर भारत का रवैया इन देशों के लिए कुछ हद तक निराशाजनक रहा है. भारत रूस की सीधी आलोचना करने से बचता रहा है और उसने संयुक्त राष्ट्र में भी रूस के खिलाफ मतदान में हिस्सा नहीं लिया था.

यूक्रेन जैसा हाल हिंद-प्रशांत में नहीं होने देंगेः क्वॉड

हालांकि डॉ. डेविड ब्रूअस्टर को लगता है कि इस बात का क्वॉड के समीकरणों पर ज्यादा असर नहीं होना चाहिए. ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी (एएनयू) में सीनियर रिसर्च फेलो और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ डॉ. ब्रूअस्टर कहते हैं, "क्वॉड देशों का मकसद इंडो-पैसिफिक में साझेदारी है. यह कोई वैश्विक संगठन नहीं है और ना इसने ऐसी कोई दावेदारी की है. इसलिए, विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर इसके सदस्यों की अलग-अलग राय हो सकती है, जिसका इस संगठन के मकसद से कोई संबंध नहीं होना चाहिए.”

एशिया पैसिफिक डेवेलपमेंट, डिप्लोमेसी एंड डिफेंस डायलॉग की एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर मेलिसा कॉनली टेलर भी डॉ. ब्रूअस्टर की इस बात से सहमत हैं कि क्वॉड देशों का साथ आने का मकसद विकास से जुड़े मुद्दे हैं. डॉयचे वेले को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, "अब तक क्वॉड का केंद्र बिंदु वैक्सीन की सब तक पहुंच, ढांचागत विकास, जलवायु परिवर्तन, साइबर सिक्यॉरिटी, आपदा राहत और जलसीमा के बारे में जारूकता जैसे मुद्दे रहे हैं. ये ऐसे मुद्दे पर जिन पर क्वॉड देश मानते हैं कि संसाधन साझा करने से लाभ पहुंचेगा. क्वॉड ग्रुप क्षेत्र को यह दिखाना चाहता है कि ये देश ‘अच्छाई के लिए काम करने वाली ताकत' हो सकते हैं, जो इस क्षेत्र के लिए ठोस लाभों के वास्ते प्रतिबद्ध हैं.”

मतभेदों से ऊपर सहयोग

फिर भी यूक्रेन जैसे मुद्दों पर मतभेद का असर क्या क्वॉड देशों की बातचीत पर नहीं होगा? अमेरिका और जापान के नेता कई बार भारत के रूस के प्रति रूख पर निराशा जाहिर कर चुके हैं. डॉ. टेलर मानती हैं कि सदस्यों के बीच मतभेद है लेकिन फिर भी उनका साथ आना लाभदायक हो सकता है.

उन्होंने कहा, "क्वॉड देशों का एक साझा दृष्टिकोण नहीं है. मसलन, यूक्रेन या अन्य रणनीतिक हितों के मुद्दों पर. फिर भी, उनके लिए एक ऐसी जगह साथ आना लाभदायक होगा, जहां वे मिलकर कुछ काम कर सकें. इसका अर्थ है कि क्वॉड के उद्देश्यों को लेकर यथार्थवादी उम्मीदें रखनी चाहिए. सबसे अच्छा नजरिया इस संगठन को एक ऐसे समूह के रूप में देखना होगा, जो मिलकर कुछ उपयोगी काम करे और लंबे समय तक कामय रहने वाले रिश्ते बनाए जिससे इनके सदस्यों के बीच सहयोग की आदत पनपे.”

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