फोर डे वीक में है इंसानों और पर्यावरण दोनों की खुशी?

कई परीक्षणों में पाया गया है कि दफ्तर जाने के दिन घटाकर उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है और लोगों की सेहत भी सुधरती है.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

कई परीक्षणों में पाया गया है कि दफ्तर जाने के दिन घटाकर उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है और लोगों की सेहत भी सुधरती है. इसके समर्थकों की यह भी दलील है कि इस व्यवस्था से पर्यावरण को भी फायदा हो सकता है.दुनिया के एक बड़े हिस्से, खासकर पश्चिमी देशों में हफ्ते में पांच दिन काम करना आम है. लेकिन हमेशा ऐसा नहीं था. औद्योगिक क्रांति के दौरान अक्सर कामगार कारखानों में हफ्ते में 70 घंटे से ज्यादा काम करते थे. मजदूर संगठनों के अस्तित्व में आने और शोषण से जुड़ी चिंताओं के कारण काम के घंटों की सीमा तय करने की मांग शुरू हुई.

यूके के बाद ऑस्ट्रेलिया में भी हफ्ते में 4 दिन काम की शुरुआत

1926 में हेनरी फोर्ड उन शुरुआती कारोबारियों में थे, जिन्होंने अपनी कार फैक्ट्रियों में हफ्ते में पांच दिन, 40 घंटे के काम की सीमा लागू की. उनका मानना था कि अगर उनके कामगारों को दो दिन का साप्ताहिक अवकाश मिले, तो काम के कम घंटों में भी वे उतने ही प्रोडक्टिव रहेंगे. उनका प्रयोग कामयाब रहा. उत्पादकता बढ़ गई. बाकी कंपनियों ने भी इसे लागू किया और इस तरह हफ्ते में पांच दिन काम करने की व्यवस्था चलन बन गई.

लेकिन एक सदी बाद अब हफ्ते में काम के घंटों को और कम करके चार दिन करने का अभियान जोर पकड़ रहा है. हालिया सालों में फोर-डे वीक से जुड़े प्रयोग कई जगहों पर हुए हैं. इनमें जापान, न्यूजीलैंड, आयरलैंड, स्पेन, ब्रिटेन, अमेरिका और आइसलैंड शामिल हैं. नतीजे बेहद सकारात्मक रहे. कर्मचारियों की सेहत में सुधार देखा गया. साथ ही, उत्पादकता भी बढ़ी. कई शोध बताते हैं कि इस व्यवस्था से पृथ्वी को भी फायदा हो सकता है.

जलवायु की बेहतरी के लिए कम काम?

जूलियेट शोअर, अमेरिका के बॉस्टन कॉलेज में अर्थशास्त्री और समाजविज्ञान की प्रोफेसर हैं. वह बताती हैं कि क्लाइमेट फुटप्रिंट और काम के घंटों के बीच स्पष्ट संबंध दिखता है, कम-से-कम ज्यादा आयवर्ग वाले देशों में. शोअर बताती हैं, "हम पाते हैं कि जिन देशों में काम के घंटे ज्यादा हैं, वहां कार्बन उत्सर्जन ज्यादा है. वहीं काम के कम घंटे वाले देशों में कार्बन उत्सर्जन भी कम है."

2012 में शोअर ने एक शोध पत्र लिखा था, जिसमें ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (ओईसीडी) में शामिल देशों की 1970 से 2007 के बीच की स्थितियों पर गौर किया गया था. निष्कर्ष निकला कि काम के घंटों में 10 फीसदी की कमी लाकर कार्बन फुटप्रिंट 14.6 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है.

2021 में ब्रिटिश पर्यावरणवादी समूह प्लेटफॉर्म के एक शोध में अनुमान लगाया गया 2025 तक फोर-डे वीक की व्यवस्था अपनाकर ब्रिटेन अपने कार्बन उत्सर्जन को 20 फीसदी या लगभग 12 करोड़ 70 लाख टन तक घटा सकता है. यह मात्रा बेल्जियम के समूचे कार्बन फुटप्रिंट से भी ज्यादा है.

फोर-डे वीक के अलावा भी, केवल घर से काम करने की व्यवस्था को बढ़ाने से भी यातायात और परिवहन कम करके कार्बन उत्सर्जन में कमी लाई जा सकती है. कोरोना महामारी के दौरान बड़ी संख्या में लोग घर से ही काम करने के आदी भी हुए.

फोर-डे वीक के असर की जांच

ब्रिटेन, अमेरिका और आयरलैंड में चार दिन के कामकाजी हफ्ते पर हुए दो हालिया परीक्षणों में शोअर ने शोध का नेतृत्व किया. अलग-अलग क्षेत्रों की लगभग 91 कंपनियों और 3,500 कर्मचारियों ने छह महीने लंबे परीक्षण में हिस्सा लिया. लंदन के संगठन फोर डे वीक ग्लोबल, ऑटोनॉमी थिंक टैंक, कैंब्रिज यूनिवर्सिटी और बॉस्टन कॉलेज ने इस पायलट की निगरानी की.

इसमें शामिल कर्मचारियों को पहले जितना ही वेतन दिया गया. उनसे कहा गया कि काम के कम घंटों में भी वे पहले जैसी उत्पादकता बनाए रखें. पाया गया कि कर्मचारियों की उत्पादकता पहले जितनी ही रही. उन्होंने बीमारी की छुट्टी भी कम ली. वे ज्यादा स्वस्थ और खुश पाए गए. परीक्षण खत्म होने के बाद 90 फीसदी से ज्यादा कंपनियों ने यही व्यवस्था बनाए रखने का विकल्प चुना. बस चार प्रतिशत ने ही इसे खारिज किया.

शोअर कहती हैं कि फोर डे वीक से जुड़े पायलट प्रोजेक्टों के दौरान कुल कार्बन उत्सर्जन पर कितना असर पड़ा, इसकी गणना मुश्किल है. शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि भविष्य में होने वाले परीक्षणों में इस पक्ष को और करीब से जाना जा सकेगा. हालांकि उन्होंने यह जरूर पाया कि आने जाने में लगने वाले समय में प्रति सप्ताह आधे घंटे की कमी आई, जिससे कार्बन उत्सर्जन भी कम हुआ. अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी परिवहन की है, करीब एक चौथाई.

लेकिन लोग छुट्टी के दिन क्या करते हैं?

अगर कर्मचारियों का दफ्तर आना जाना कम हो जाए और दफ्तर ऊर्जा की बचत करें, तब भी जलवायु को होने वाला कोई भी फायदा इस बात पर निर्भर करेगा कि लोग छुट्टी वाले दिन क्या करते हैं. अगर वे कार से घूमने निकल जाएं, विमान यात्रा करें तो उत्सर्जन और ज्यादा बढ़ेगा.

शोअर बताती हैं, "हमने लोगों से पूछा कि वो अपनी अतिरिक्त साप्ताहिक छुट्टी कैसे बिता रहे हैं और वो कार्बन बढ़ाने वाले तरीके नहीं लगे. हमने पूछा कि क्या लोग विमान से कहीं जा रहे हैं, खासतौर पर आयरलैंड और ब्रिटेन जैसे देशों में जहां सस्ती यूरोपीय फ्लाइट उपलब्ध हैं. हमें लगा कि ऐसा नहीं हो रहा था.” अब तक के शोध बताते हैं कि अधिकतर लोग घर के पास ही रहते हैं और अपनी रुचि, घर के काम या अपनी देखभाल में समय बिताते हैं. शोअर यह भी बताती हैं कि लोग अधिक टिकाऊ जीवनशैली की ओर बढ़ते दिखे.

लेकिन कितना यर्थाथवादी है फोर डे वीक?

हालिया परीक्षणों में उत्पादन संयंत्रों, डिजाइन कंपनियों, स्वास्थ्य सेवाओं और गैर सरकारी संगठनों जैसे कामकाज के कई क्षेत्रों को शामिल किया गया. हालांकि कई ने कर्मचारियों को शुक्रवार की छुट्टी देने का विकल्प चुना, वहीं बाकियों ने ऐसी व्यवस्था अपनाई जिसमें हर दिन दफ्तर में कर्मचारियों की उपस्थिति सुनिश्चित की जा सके. लेकिन काम के घंटे कम करना हर किसी के लिए अनुकूल नहीं रहा.

मार्क रोड्रिक की इंजीनियरिंग और औद्योगिक आपूर्ति करने वाली कंपनी ऑलकैप के 40 कर्मचारियों ने पिछले साल ब्रिटेन में हुए ट्रायल में हिस्सा लिया. लेकिन उनके कारोबार की प्रकृति के कारण इस व्यवस्था में उन्हें परेशानियां आईं. मार्क बताते हैं, "अक्सर लोग हमारे पास इसलिए आते हैं कि उन्हें उस दिन जिस चीज की जरूरत होती है, वो हमारे पास स्टॉक में होता है. हम एक दुकान की तरह हैं. हम यह नहीं कह सकते कि हम शुक्रवार को बंद रहते हैं.”

परीक्षण अवधि के दौरान कंपनी ने अपने कर्मचारियों को हर पखवाड़े में एक दिन की छुट्टी दी. लेकिन मार्क बताते हैं कि कर्मचारी अक्सर ज्यादा तनाव में रहते थे क्योंकि उन्हें अपने उन सहकर्मियों के हिस्से का भी काम करना पड़ता था, जो उस दिन छुट्टी पर होते थे. नतीजतन मार्क ने अपने तीन प्रमुख ट्रेड साइट पर यह योजना रोक दी. उन्होंने अपने इंजीनियरिंग केंद्र पर फोर डे वीक लागू किया, जहां कर्मचारी अलग तरह की समयसीमा में उत्पाद बनाते हैं.

मार्क बताते हैं, "इसका मतलब था कि कर्मचारियों को बेहतर आराम मिला, वे तनाव में नहीं थे और उन्होंने कम गलतियां कीं.” मार्क यह भी जोड़ते हैं कि वे ज्यादा ऊर्जा भी बचा पाए. वह बताते हैं, "यह ऊर्जा की काफी खपत वाला काम है. तो मेरे लिए यह कहना आसान था कि शुक्रवार को कोई नहीं आएगा और हम कुछ भी स्विच ऑन नहीं करेंगे.”

आने वाले महीनों में दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील, यूरोप और उत्तरी अमेरिका में ऐसे और परीक्षणों की योजना है. अभी इस विषय में और शोध की आवश्यकता है. शोअर कहती हैं कि उन्हें भरोसा है, किसी न किसी रूप में फोर डे वीक ही भविष्य है.

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