फ्रांस में अगला प्रधानमंत्री कौन होगा, इसपर राजनीतिक गतिरोध जारी है. इस बीच हार्ड-लेफ्ट पार्टी 'फ्रांस अनबाउड' ने राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी है.राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों 23 अगस्त से राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ बैठक शुरू करेंगे. माक्रों के दफ्तर ने एक बयान जारी कर बताया कि इन बैठकों का मकसद एक विस्तृत और स्थिर बहुमत बनाना है. बयान के मुताबिक, इन बैठकों के आधार पर नए प्रधानमंत्री को नियुक्त किया जाएगा.
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दूसरी तरफ, फ्रांस में वामपंथी समूह की पार्टी 'फ्रांस अनबाउड' (एलएफआई) के नेताओं ने चेतावनी दी है कि अगर माक्रों उनके उम्मीदवार को प्रधानमंत्री नहीं बनाते हैं, तो वे राष्ट्रपति पर कानूनी कार्रवाई करेंगे. एलएफआई, फ्रांस की चार प्रमुख लेफ्ट पार्टियों में से एक है. ब्रिटिश अखबार 'दी टेलिग्राफ' के मुताबिक, एलएफआई के वरिष्ठ सदस्यों ने माक्रों को चेताया है कि उनका सब्र अब टूट रहा है और वे महाअभियोग की कार्रवाई शुरू कर सकते हैं. अखबार के मुताबिक, एलएफआई ने कहा है कि अगर माक्रों ने उनके उम्मीदवार को नियुक्त नहीं किया, तो इस स्थिति में वे कानूनी कार्रवाई कर सकते हैं.
फ्रेंच संविधान में क्या है महाभियोग कानून
फ्रांस में संविधान के अनुच्छेद 68 में प्रावधान है कि राष्ट्रपति को उनके कार्यकाल के दौरान सिर्फ इसी आधार पर पद से हटाया जा सकता है अगर वह अपने कर्तव्यों का उल्लंघन कर रहे हों. यह स्पष्ट हो कि पद पर बने रहने के लिए वह स्पष्ट तौर पर अयोग्य हैं. यह प्रक्रिया संसद की निगरानी में होती है.
जुलाई में फ्रांस में मध्यावधि चुनाव हुए थे. तीनों राजनीतिक धड़ों (सेंटर, लेफ्ट और फार-राइट) में से किसी को भी स्पष्ट बहुमत नहीं मिला. 577 सीटों की नेशनल असेंबली में बहुमत के लिए कम-से-कम 289 सीटें चाहिए. चार पार्टियों के लेफ्ट-ग्रीन गठबंधन 'न्यू पॉपुलर फ्रंट' को सबसे ज्यादा 188 सीटें मिलीं. माक्रों के बनाए इन्सैंबल (ईएनएस) गठबंधन को 161 सीटें और धुर-दक्षिणपंथी नेशनल रैली अलायंस (आरएन) को 142 सीटें मिलीं.
तब से ही फ्रांस में अगली सरकार के गठन और नए प्रधानमंत्री की नियुक्ति पर ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है. फ्रेंच संविधान के अनुच्छेद आठ के मुताबिक, प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं. फिर प्रधानमंत्री की अनुशंसा पर वह सरकार के अन्य सदस्यों/मंत्रियों को नियुक्त करते हैं. चुनाव में हार के बाद पीएम गैब्रिएल अताल ने इस्तीफा दे दिया था, लेकिन अगली सरकार के कार्यभार संभालने तक वह कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने हुए हैं.
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न्यू पॉपुलर फ्रंट के चार घटक दल हैं, एलएफआई, सोशलिस्ट पार्टी (पीएस), फ्रेंच ग्रीन पार्टी (एलई-ईईएलवी) और फ्रेंच कम्युनिस्ट पार्टी (पीएसएफ). इस गठबंधन में एलएफआई सबसे बड़ा दल है. न्यू पॉपुलर फ्रंट ने पिछले महीने लूसी कैस्ते को प्रधानमंत्री पद का अपना उम्मीदवार बनाया. कैस्ते, पेरिस सिटी हॉल की एक वरिष्ठ वित्तीय अधिकारी और फाइनैंशल क्राइम के मामलों की विशेषज्ञ हैं. हालांकि, सार्वजनिक और राजनीतिक जीवन में वह बहुत जानी-मानी नहीं थीं.
माक्रों ने उन्हें नियुक्त करने से इनकार कर दिया. पेरिस ओलंपिक 2024 के संदर्भ में उन्होंने कहा कि पूर्ववर्ती सरकार अगस्त के मध्य तक बनी रहेगी. माक्रों ने कहा, "मध्य अगस्त तक हम चीजें बदलने की स्थिति में नहीं हैं क्योंकि यह अव्यवस्था पैदा करेगा." माक्रों पहले भी कह चुके थे कि वह ऐसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री नियुक्त करेंगे, जिसके पास ठोस और मिश्रित बहुमत हो. यानी, न्यू पॉपुलर फ्रंट को माक्रों गठबंधन के साथ सहमति पर पहुंचना होगा.
कैस्ते की उम्मीदवारी को भले ही नामंजूर किया जा चुका हो, लेकिन 23 अगस्त से हो रहे विमर्श में उनके भी शामिल होने की खबर है. राष्ट्रपति की टीम के एक सदस्य ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा कि माक्रों बैठक के दौरान कैस्ते की मौजूदगी के लिए तैयार हैं.
किन उम्मीदवारों के नाम की चर्चा
पॉलिटिको मैगजीन के मुताबिक, कैस्ते के अलावा जिन अन्य संभावित उम्मीदवारों के नाम पर चर्चा होने की उम्मीद है उनमें लेफ्ट विंग के बेरना केजनोव और जेवियर बेरथॉं प्रमुख हैं. केजनोव, सोशलिस्ट पार्टी के नेता हैं और पहले भी (2016-2017) में प्रधानमंत्री रह चुके हैं. वहीं बेरथॉं सेंटर-राइट विचारधारा की 'दी रिपब्लिकन्स' पार्टी के नेता हैं. फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति निकोला सरकोजी भी इसी दल के थे.
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चुनाव में हार के बावजूद गैब्रिएल अताल की सरकार को बनाए रखने और नई सरकार चुनने की प्रक्रिया आगे खिसकाने के लिए वाम दलों ने माक्रों की आलोचना की. माक्रों की ओर से हो रही देरी पर उन्होंने आरोप लगाया कि वह चुनाव के नतीजों को रद्द करने की कोशिश कर रहे हैं. एलएफआई के नेता जॉं लुक मेलॉंशों ने माक्रों से कहा कि या तो वह चुनावी नतीजे स्वीकार करें या इस्तीफा दे दें.
हालांकि, अब जबकि एलएफआई ने माक्रों को महाभियोग कार्रवाई की चेतावनी दी है, तब गठबंधन के बाकी घटक दलों में इसपर सहमति नहीं दिख रही है. खबरों के मुताबिक, वामपंथी खेमे की एकता भी दरकती दिख रही है. सोशलिस्ट पार्टी (पीएस) ने एलएफआई की चेतावनी से खुद को अलग कर लिया है.
एसएम/एए (एपी, एएफपी)