VIDEO: इस्लाम में म्यूजिक हराम! फिर भी सऊदी अरब के स्कूलों में 9000 महिला म्यूजिक टीचर्स की होगी नियुक्ती

इस फैसले के लिए कई लोगों ने क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान को भी निशाना बनाया है. उनका मानना है कि यह फैसला देश के इस्लामी सिद्धांतों के खिलाफ है.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सऊदी अरब की शिक्षा प्रणाली में बड़ा बदलाव होने वाला है. सऊदी एजुकेशन मिनिस्ट्री ने हाल ही में घोषणा की है कि किंडरगार्टन और प्राइमरी स्कूल के सिलेबस में म्यूजिक एजुकेशन को शामिल किया जाएगा. इस फैसले के तहत देशभर के स्कूलों में 9,000 से ज्यादा महिला म्यूजिक टीचर्स की नियुक्ति की जाएगी. हालांकि, इस कदम के बाद सऊदी अरब में व्यापक विरोध हो रहा है, खासकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर.

सरकार का नया फैसला और उसका उद्देश्य 

रियाद में आयोजित लर्न कॉन्फ्रेंस के दौरान सऊदी संस्कृति मंत्रालय के नियोजन निदेशक, नूर अल-दब्बाग ने इस बात का खुलासा किया कि मंत्रालय 9,000 से अधिक महिला टीचर्स को म्यूजिक सिखाने के लिए ट्रेनिंग दे रहा है. सरकार का मानना है कि इस पहल से छात्रों की रचनात्मकता और उनकी मानसिक क्षमता को विकसित करने में मदद मिलेगी. यह कदम क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान द्वारा देश को अधिक उदार और प्रगतिशील बनाने की दिशा में एक और प्रयास के रूप में देखा जा रहा है.

सोशल मीडिया पर आलोचना 

इस फैसले के बाद सोशल मीडिया, विशेष रूप से "एक्स" (पूर्व में ट्विटर) पर, विरोध की लहर दौड़ गई है. "#WeRejectTeachingMusicInSchools" हैशटैग के तहत 25,000 से अधिक लोगों ने सरकार के इस कदम की आलोचना की है. सऊदी अरब के नागरिक इसे अपने धार्मिक और नैतिक मूल्यों के खिलाफ मान रहे हैं. उनकी चिंता है कि इस फैसले से सऊदी अरब की पारंपरिक पहचान खतरे में पड़ सकती है.

क्राउन प्रिंस की आलोचना

कई लोगों ने क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान को भी निशाना बनाया है. उनका मानना है कि यह फैसला देश के इस्लामी सिद्धांतों के खिलाफ है. आलोचकों का दावा है कि इस तरह के फैसले से सऊदी अरब की धार्मिक छवि कमजोर हो सकती है. सोशल मीडिया पर चल रहे अभियान में कई लोग सरकार से इस निर्णय पर पुनर्विचार करने की मांग कर रहे हैं.

इस्लाम में म्यूजिक हराम ? 

म्यूजिक को लेकर इस्लामिक मान्यताओं में भी विभाजन देखने को मिलता है. कई मुस्लिम देशों ने संगीत को हराम मानते हुए उस पर बैन लगा रखा है, लेकिन उलेमा इस पर एकमत नहीं हैं. मुफ्ती तारिक मसूद जैसे धार्मिक विद्वानों का कहना है कि इस्लाम में म्यूजिक हराम है, लेकिन इसे लेकर कठोरता बरतने की जरूरत नहीं है. उनके अनुसार, कुछ विशेष परिस्थितियों में संगीत का इस्तेमाल अनिवार्य हो सकता है, जैसे बैकग्राउंड म्यूजिक, जो कई गतिविधियों में सहायक होता है.

सऊदी अरब सरकार का यह फैसला एक तरफ जहां छात्रों की रचनात्मकता को बढ़ावा देने के लिए एक प्रगतिशील कदम माना जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ देश के बड़े वर्ग में इसका विरोध भी हो रहा है. म्यूजिक एजुकेशन पर यह बहस सऊदी अरब के भविष्य और उसकी पारंपरिक मान्यताओं के बीच संतुलन बनाए रखने की चुनौती को उजागर करती है.

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