ISRO का चंद्रयान-3 लॉन्चिंग के लिए तैयार, चंद्रमा पर कैसे उतरेगा लैंडर, जानें मिशन से जुड़ी सभी जानकारी

चंद्रयान-3 लैंडर को इसरो श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र में हेवी लॉन्च रॉकेट पर असेंबल किया गया. चंद्रयान-3 के लैंडर और रोवर को वही नाम देने का फैसला किया गया है, जो चंद्रयान-2 के लैंडर और रोवर के नाम थे.

Chandrayaan-3 (Photo Credit : ISRO)

ISRO Moon Mission Chandrayaan-3: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के बहुप्रतीक्षित मिशन चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग को लेकर तैयारियां अंतिम चरणों में हैं. चंद्रयान-3 के लैंडर और रोवर रॉकेट एलवीएम-3 के साथ 13 जुलाई को चंद्रमा पर रवाना होने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं.

हेवी लॉन्च रॉकेट पर असेंबल किया गया 'चंद्रयान-3 लैंडर'

चंद्रयान-3 लैंडर को आज (6 जुलाई 2023) इसरो श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र में हेवी लॉन्च रॉकेट पर असेंबल किया गया. चंद्रयान-3 के लैंडर और रोवर को वही नाम देने का फैसला किया गया है, जो चंद्रयान-2 के लैंडर और रोवर के नाम थे. Chandrayaan-3 लॉन्च के लिए ISRO ने कसी कमर, तैयारी का VIDEO आया सामने, GSLV Mark 3 रॉकेट रचेगा इतिहास!

मिशन में क्या होगा खास ?

चंद्रयान-2 के बाद इस मिशन को चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंडिंग की क्षमता की जांच के लिए भेजा जा रहा है. चंद्रयान-2 मिशन आखिरी चरण में विफल हो गया था. उसका लैंडर चंद्रमा की सतह से झटके के साथ टकराया था, जिसके बाद पृथ्वी के नियंत्रण कक्ष से उसका संपर्क टूट गया था. चंद्रयान-3 को उसी अधूरे मिशन को पूरा करने के लिए भेजा जा रहा है.

चंद्रमा की सतह पर उतरेगा लैंडर

इसमें लैंडर के चंद्रमा की सतह पर उतरने के बाद उसमें से रोवर निकलेगा और सतह पर चक्कर लगाएगा. लैंडर का नाम 'विक्रम' होगा जो भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है और रोवर का नाम 'प्रज्ञान' होगा. चंद्रयान-2 के लैंडर और रोवर के भी यही नाम रखे गए थे.

इसरो अधिकारियों के मुताबिक चंद्रयान-2 मिशन फेल होने के बाद का ही अगला प्रोजेक्ट चंद्रयान-3 है, जो चंद्रमा की सतह पर उतरेगा और परीक्षण करेगा. यह चंद्रयान-2 की तरह ही दिखेगा, लेकिन चंद्रयान-3 का फोकस चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंड करने पर है.

मिशन की सफलता के लिए बनाए गए नए उपकरण

मिशन की सफलता के लिए नए उपकरण बनाए गए हैं, एल्गोरिदम को बेहतर किया गया है. चंद्रयान-2 मिशन जिस वजह से असफल हुआ था, उन पर इस प्रोजेक्ट में फोकस किया गया है. चंद्रयान-3 को लॉन्च करने का ऐलान चंद्रयान-2 के लैंडर-रोवर के दुर्घटनाग्रस्त होने के चार साल बाद हुआ है.

डार्क साइड ऑफ मून

चंद्रयान-3 मिशन के जुलाई में श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से चंद्रमा के उस हिस्से तक लॉन्च होने की उम्मीद है, जिसे डार्क साइड ऑफ मून कहते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि यह हिस्सा पृथ्वी के सामने नहीं आता. चंद्रयान-3 का उद्देश्य चंद्र सतह पर एक सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग और रोविंग क्षमताओं का प्रदर्शन करना है. चंद्रयान-3 को एक लैंडर, एक रोवर और एक प्रणोदन मॉड्यूल को मिलाकर बनाया गया है, जिसका कुल वजन 3,900 किलोग्राम है. अकेले प्रणोदन मॉड्यूल का वजन 2,148 किलोग्राम है जो लैंडर और रोवर को 100 किलोमीटर की चंद्र कक्षा में ले जाएगा.

लैंडर पेलोड

- लैंडर पेलोड में रेडियो एनाटॉमी ऑफ मून बाउंड हाइपर सेंसिटिव आयनोस्फीयर एंड एटमॉस्फियर (रंभा)- लैंगमुइर जांच (एलपी) निकट सतह प्लाज्मा (आयनों और इलेक्ट्रॉनों) के घनत्व और समय के साथ इसके परिवर्तनों को मापने में मदद करेगा.

- यह चंद्र सतह थर्मो भौतिक प्रयोग (ChaSTE) के जरिए ध्रुवीय क्षेत्र के पास चंद्र सतह के तापीय गुणों का मापन करने में भी मदद करेगा.

- लैंडर पेलोड में चंद्र भूकंपीय गतिविधि के लिए उपकरण (आईएलएसए)- लैंडिंग स्थल के आसपास भूकंपीयता को मापने और चंद्र क्रस्ट और मेंटल की संरचना को चित्रित करने में मदद करेगा.

- लेजर रेट्रोरिफ्लेक्टर ऐरे (एलआरए) - को चंद्रमा प्रणाली की गतिशीलता को समझने के लिए एक निष्क्रिय प्रयोग में लिया जा सकेगा.

Chandrayaan-3 – Mission Profile (Photo Credit : ISRO)

रोवर पेलोड

  1. रोवर पेलोड में लेजर प्रेरित ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप (एलआईबीएस)- गुणात्मक और मात्रात्मक तात्विक विश्लेषण और चंद्रमा की सतह की हमारी समझ को आगे बढ़ाने के लिए रासायनिक संरचना प्राप्त करने और खनिज संरचना का अनुमान लगाने में मदद करेगा.
  2. रोवर पेलोड के जरिए अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (एपीएक्सएस) से चंद्र लैंडिंग स्थल के आसपास चंद्र मिट्टी और चट्टानों की मौलिक संरचना (एमजी, अल, सी, के, सीए, टीआई, फ़े) निर्धारित करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकेगा.

Chandrayaan-3 Rover (Photo Credit : ISRO)

प्रणोदन मॉड्यूल पेलोड

परावर्तित प्रकाश में छोटे ग्रहों की भविष्य की खोज हमें विभिन्न प्रकार के एक्सो-ग्रहों की जांच करने की अनुमति देगी जो रहने योग्य (या जीवन की उपस्थिति के लिए) होंगे. इसके लिए प्रणोदन मॉड्यूल पेलोड से रहने योग्य ग्रह पृथ्वी (आकार) की स्पेक्ट्रो-पोलरिमेट्री का इस्तेमाल किया जाएगा.

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