Chandrayaan-2: डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की इन बातों को आज हर भारतीय को सुनना चाहिए, क्योंकि 'विक्रम' से संपर्क टूटा है, देश के सपने नहीं- Video

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की एक बात को आज देश को फिर से समझने की जरुरत है. उनके शब्द बेहद ही प्रेरणादायी हैं. महान वैज्ञानिक अब्दुल कलाम ने एक बार साल 1979 में लॉन्च किए गए एक अंतरिक्ष मिशन का जिक्र किया था. तब उन्होंने अपने अनुभव को साझा करते हुए बताया था कि एक बार असफलता मिलने के बाद वे कैसे आगे बढ़े.

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम (Photo Credit- Wikimedia Commons)

चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने से पहले चंद्रयान-2 (Chandrayaan-2) से संपर्क टूट गया, लेकिन भारत की उम्मीदें नहीं टूटी हैं. देश निरंतर स्पेस साइंस में अपने कदम बढ़ता रहेगा. देश का इतिहास गवाह रहा है कि भारत हर बार पहले से ज्यादा आगे बढ़ा है. शनिवार तड़के पूरा देश अपनी सांसे थाम कर बेसब्री से लैंडर विक्रम (Lander Vikram) के चांद की सतह को चूमने और खुशी में झूमने का इंतजार कर रहा था, लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हुआ. लैंडर विक्रम से चंद्रमा के सतह से महज दो किलोमीटर पहले इसरो का संपर्क टूट गया. चंद्रयान-2 से संपर्क टूटने से कुछ निराशा जरुर मिली है लेकिन असफलता नहीं. स्पेस साइंस में भारत ने चंद्रयान-2 के जरिए नया इतिहास रचा है. देश के लिए शनिवार का दिन बेहद भावुक कर देने वाला है, खास कर तब जब देश ने इसरो के चेयरमैन के सिवन (K Sivan) के आंसू देखे.

आज के भावुक दिन पर देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम (Dr APJ Abdul Kalam) की याद जरूर आती है. भारत के मिसाइल मैन कहे जाने वाले डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम आज भले ही हमारे बीच न हों, लेकिन उनकी कही हर बात आज भी भारत को राह दिखा रही है. खास कर के आज के दिन जब भारत स्पेस साइंस की दुनिया में इतनी लंबी छलांग लगाने के बाद महज छोटे से फासले से रह गया. भारत आज जिस चंद्रयान-2 मिशन से दुनिया भर में अपना लोहा मनवा रहा है उसकी राह भी डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने ही दिखाई थी. जिन्होंने हरदम आगे बढ़ने की ठानी, और वे आगे बढ़े भी.

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यहां देखें डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का वीडियो-

 प्रेरणादायी हैं डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के शब्द

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की एक बात को आज देश को फिर से समझने की जरुरत है. उनके शब्द बेहद ही प्रेरणादायी हैं. महान वैज्ञानिक अब्दुल कलाम ने एक बार साल 1979 में लॉन्च किए गए एक अंतरिक्ष मिशन का जिक्र किया था. भारत ने अपने पहले सैटेलाइट लांच व्हीकल (SLV-3) का प्रयोग किया था. तब एपीजे अब्दुल कलाम इसरो चेयरमैन होने के साथ ही इस प्रोजेक्ट के प्रमुख भी थे. भारत के लिए यह मिशन बहुत महत्वपूर्ण था. जैसा आज के समय पर चंद्रयान-2 है. आज की तरह देश और दुनिया की नजरें भारत के इस मिशन पर टिकी हुई थीं.

अपने अनुभव को किया था साझा

इस मिशन के बारे में बताते हुए डॉ.एपीजे अब्दुल ने कहा था, 'वो साल था 1979. मैं प्रोजेक्ट डायरेक्टर था. मेरा मिशन सैटेलाइट को ऑर्बिट में स्थापित करने का था. हजारों लोगों ने 10 साल तक इस पर काम किया. मैं श्रीहरिकोटा के लॉन्च पैड पर पहुंच चुका था. काउंटडाउन शुरू हो चुका था... माइनस 4 मिनट, माइनस 3 मिनट, माइनस 2 मिनट, माइनस 1 मिनट, माइनस 40 सेकंड... और कम्प्यूटर ने उसे होल्ड पर रख दिया... मतलब इसे लॉन्च मत करो. मैं मिशन डायरेक्टर था, मुझे निर्णय लेना था.'

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जब कठिन समय में लेना था फैसला

उस समय मेरे साथ 6 एक्सपर्ट्स भी थे.  एक्सपर्ट्स ने मुझसे कहा कि आप लॉन्च करिए क्योंकि वह अपने कैल्कुलेशन को लेकर आश्वस्त थे. अंतिम निर्णय मुझे ही लेना था. मैंने कम्प्यूटर की बात न मानकर रॉकेट लॉन्च करने का निर्णय लिया. सैटेलाइट लॉन्च करने से पहले चार चरण होते हैं. पहला स्टेज अच्छा गया. लॉचिंग के बाद उसने अपना पहला चरण पूरा किया तो इसरो कंट्रोल रूम में वैज्ञानिकों के चेहरे आत्मविश्वसास से खिल उठे, लेकिन दूसरे स्टेज में वह (रॉकेट) पागल जैसा हो गया. वह स्पिन हुआ. रॉकेट ने सैटेलाइट को ऑर्बिट में रखने के बजाए बंगाल की खाड़ी में फेंक दिया.'

 डॉ. कलाम रुके नहीं आगे बढ़े

उस समय वैज्ञानिकों के साथ-साथ पूरे देश के लिए यह बड़ा झटका था. लेकिन डॉ. कलाम ने न तो खुद हिम्मत हारी और न ही अपनी टीम की हिम्मत कम होने दी. एक साल के अंदर ही 18 जुलाई 1980 को इसरो ने दोबारा एसएलवी-3 रॉकेट को सफलापूर्वक लॉच करते हुए रोहिणी सैटेलाइट (RS-1) को चंद्रमा की कक्षा में स्थापित किया. इसके साथ ही भारत अंतरिक्ष मिशन पूरा करने वाला छठवां देश बन गया था. इसके बाद मई 1981 और अप्रैल 1983 में भी इस रॉकेट की सफल लॉचिंग की गई थी.

देश फिर लगाएगा अंतरिक्ष में लंबी छलांग 

डॉ. कलाम की इन बातों को आज सुनने की जरुरत इसलिए है कि यह चंद्रयान-2 पर देश को हताश होने की जरुरत नहीं हैं. भारत अंतरिक्ष में कई आगे पहुंच चुका है. चांद पर भी भारत तिरंगे की चाप छोड़ चुका है. देश का 'चंद्रयान-1' मिशन भी सफल रहा. चंद्रयान-2 चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिग से महज कुछ कदम दूर रह गया. इसरो के 2008 में लांच हुए ऑर्बिटर मिशन 'चंद्रयान-1' ने ही पहली बार चंद्रमा पर पानी की उपस्थिति का पता लगाया था.

चंद्रमा पर पानी की खोज भारत की एमआइपी (मून इंपैक्ट प्रोब) डिवाइस ने की थी और नासा ने भी इसकी पुष्टि की थी. 'चंद्रयान-1' की सफलता के बाद डॉ. कलाम ने वैज्ञानिकों को चंद्रयान-2 के लिए कई सुझाव दिए थे. चंद्रयान-2 भले ही थोड़ा चूक गया लेकिन भारत ने इतिहास रचा है, और आगे भी ऐसे कई इतिहास भारत को अपने नाम करने हैं.

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