क्रिकेट का पूरी तरीके से 'नवीनीकरण' हो चुका है. टेस्ट, वनडे और टी20 इंटरनेशनल क्रिकेट के बाद अब फ्रेंचाइजी लीग का बोलबाला है, लेकिन इससे कहीं न कहीं लंबे फॉर्मेट के खेल की खासियत खोती जा रही है. किसी जमाने में जो खेल जुनून, देश प्रेम और जेंटलमैन गेम के लिए मशहूर था अब वह सिर्फ 'कैश करो, ऐश करो' तक काफी हद तक सीमित हो गया है! टी20 में कैश भी खूब है और ऐश भी। भारत में अभी भी खेलों के मामले में लोकप्रियता में क्रिकेटरों की कोई टक्कर नहीं है। उन्हें मोटे पैकेज के साथ-साथ सेलिब्रिटी ट्रीटमेंट भी मिलता है. मॉर्डन युग के क्रिकेटरों को लीग क्रिकेट के जरिए बहुत जल्द लाइमलाइट भी मिल जाती है. यह भी पढ़ें: चेन्नई में खेला जाएगा भारत बनाम बांग्लादेश पहला टेस्ट, मैच से पहले जानें हेड टू हेड, मिनी बैटल और स्ट्रीमिंग समेत सभी डिटेल्स
इसके बाद रेड बॉल क्रिकेट तो बहुत दूर की बात है, खिलाड़ी घरेलू टूर्नामेंट से भी खुद को दूर रखने लगे हैं. इसका मुख्य कारण है व्यस्त शेड्यूल और चोट का हवाला देकर उपलब्ध नहीं रहना. हालांकि, लीग क्रिकेट के टाइम यह खिलाड़ी पूरी तरह फिट रहते हैं. इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) जैसे बड़े टूर्नामेंट में तो अक्सर यही देखा गया है कि सभी बड़े खिलाड़ी पूरे सीजन के लिए उपलब्ध रहते हैं.
सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि कई देशों के क्रिकेटरों में लीग क्रिकेट के प्रति बढ़ रही प्रवृति को देखा जा सकता है. इसके लिए भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) समेत दुनिया के बाकी क्रिकेट बोर्ड भी सचेत हुए हैं. बीसीसीआई ने तो खिलाड़ियों के सिर्फ लीग क्रिकेट पर ध्यान देने के रवैये के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया है. दुनिया का सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड यह साफ कर चुका है कि खिलाड़ियों को घरेलू प्रतियोगिताओं का भी हिस्सा बनना होगा.
इसके अलावा, फ्रेंचाइजी लीग की बढ़ती लोकप्रियता पर कई क्रिकेट विशेषज्ञ और दिग्गज क्रिकेटर अपनी चिंता जाहिर कर चुके हैं. खास तौर से टेस्ट क्रिकेट पर इसका दुष्प्रभाव पड़ा है. क्रिकेट फैंस का ध्यान भी अब शॉर्ट फॉर्मेट और फ्रेंचाइजी क्रिकेट पर ज्यादा जा रहा है, क्योंकि इन मैचों में पल-पल रोमांच से भरा होता है. गिल्लियां बिखरने, एलबीडब्ल्यू, रन-आउट, 22 यार्ड की दूरी के बीच तेज दौड़, थ्रो, कैच आउट या बाउंड्री का लुत्फ उठाने में ही फैंस को ज्यादा मजा आता है.
ऐसे में टेस्ट क्रिकेट काफी पहले ही खतरे में आ चुका है. हालांकि, बॉर्डर गावस्कर ट्रॉफी और एशेज सीरीज ने इसमें थोड़ी बहुत जान फूंक रखी है. जबकि वनडे का वर्चस्व विश्व कप तक ही सीमित हो चुका है.