Pitru Paksha 2018: अगर आप भी कर रहे हैं श्राद्धकर्म तो रखें इन बातों का ध्यान
हर साल पितृपक्ष भाद्रपद के शुक्लपक्ष पूर्णिमा से प्रारंभ होकर अश्विन कृष्णपक्ष की अमावस्या तक रहता है. साल के इन 16 दिनों में लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी मृत्यु तिथि पर श्राद्ध करते हैं और श्राद्धकर्म के द्वारा पितरों का ऋण चुकाया जाता है.
हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसाल, साल के 16 दिन ऐसे होते हैं जब लोग अपने पूर्वजों का ऋण यानी कर्ज उतारने के लिए श्राद्ध, तर्पण जैसे कर्मकांड करते हैं. मान्यता है कि किसी भी व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात उसका श्राद्ध करना बेहद जरूरी होता है और पितृपक्ष के दौरान जो श्राद्ध कर्म किए जाते हैं उसका विशेष महत्व होता है. हर साल पितृपक्ष भाद्रपद के शुक्लपक्ष पूर्णिमा से प्रारंभ होकर अश्विन कृष्णपक्ष की अमावस्या तक रहता है. साल के इन 16 दिनों में लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी मृत्यु तिथि पर श्राद्ध करते हैं और श्राद्धकर्म के द्वारा पितरों का ऋण चुकाया जाता है.
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, पितृपक्ष में किया जाने वाला पिंडदान सीधे परिवार के मृत पूर्वजों तक पहुंचता है और उनकी कृपा प्राप्त होती है. अगर आप भी पितृपक्ष के दौरान श्राद्धकर्म करते हैं तो आपको इन बातों का खास तौर पर ख्याल रखना चाहिए.
तर्पण का है खास महत्व
पितृपक्ष में पितरों को प्रसन्न करने के लिए तर्पण किया जाता है. इसमें दूध, तिल, कुशा, पुष्प, गंध मिश्रित जल पितरों को तृप्त करने के लिए अर्पित किया जाता है.
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पितरों के लिए करें पिंडदान
पितरों की आत्मा की शांति के लिए उनकी मृत्यु की तिथि पर उनके निमित्त पिंडदान किया जाता है. इस दौरान चावल या जौ के पिंडदान किए जाते हैं.
दान-दक्षिणा है जरूरी
भोजन कराने के बाद ब्राह्मणों को दक्षिणा या फिर वस्त्र दान करना चाहिए. ऐसा न करने पर इसका पूरा फल नहीं मिलता है.
ब्राह्मण से कराएं श्राद्धकर्म
मान्यता है कि जो व्यक्ति बिना ब्राह्मण के श्राद्धकर्म करता है, उसके घर में पितर भोजन नहीं करते और श्राप देकर लौट जाते हैं. इसलिए ब्राह्मण से श्राद्धकर्म कराएं और इस बात का ख्याल रखें कि श्राद्धकर्म के बाद ब्राह्मण मौन रहकर भोजन करे.
खाली हाथ न लौटे भीखारी
कहा जाता है कि पितर अपने परिजनों के बीच किसी भी रूप में श्राद्ध ग्रहण करने के लिए आ सकते हैं. ऐसे में अगर आपके घर पर कोई भिखारी आता है तो उसे खाली हाथ न जाने दें. उसे आदरपूर्वक भोजन कराएं और दक्षिणा भी दें.
नदी या मंदिर के पास कराएं श्राद्ध
कहा जाता है कि श्राद्धकर्म हमेशा अपनी ही भूमि पर कराना चाहिए. अगर यह मुमकिन न हो तो ऐसे में आप किसी तीर्थस्थल, मंदिर और नदी के किनारे श्राद्धकर्म करा सकते हैं, क्योंकि इन जगहों पर किसी का स्वामित्व नहीं होता है.
भोजन का एक हिस्सा इन्हें करें अर्पित
श्राद्धपक्ष के दौरान आप जो भी भोजन बनाते हैं उसमें से एक हिस्सा निकालकर कौए, कुत्ते, चींटी और गाय को खिलाएं. मान्यता है कि ऐसा करने से पितर प्रसन्न होते हैं.
कौन कर सकता है श्राद्धकर्म?
हालांकि पिता का श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए, लेकिन अगर पुत्र न हो तो मृतक की पत्नी, उसका सगा भाई या फिर परिवार का कोई सदस्य श्राद्धकर्म कर सकता है. अगर मृतक के एक से अधिक पुत्र हैं तो सबसे बड़े पुत्र को श्राद्धकर्म करना चाहिए.
पितृपक्ष में न पकाएं ये चीजें
पितृपक्ष के दौरान चना, मसूर, उड़द, कुलथी, सत्तू, मूली, काला जीरा, खीरा, काला नमक, लौकी, बड़ी सरसों, सरसों का साग नहीं पकाना चाहिए. इसके अलावा इस दौरान अपवित्र फल और बासी खाना नहीं खाना चाहिए.
तुलसी का करें इस्तेमाल
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितृपक्ष के दौरान श्राद्धकर्म और भोजन में तुलसी के पत्तों का इस्तेमाल करने से पितृगण प्रसन्न होते हैं और पितृगण गरुण पर सवार होकर विष्णु लोक चले जाते हैं. मान्यता तो यह भी है कि तुलसी से पिंड की पूजा करने से पितर प्रलयकाल तक संतुष्ट रहते हैं.
इस समय न करें श्राद्ध
शुक्लपक्ष में, रात में, एक ही दिन दो तिथियों का योग होने पर और अपने जन्मदिन पर कभी श्राद्धकर्म नहीं करना चाहिए. पुराणों के अनुसार, शाम और रात के समय किए जाने वाले श्राद्धकर्म का फल राक्षस ले जाते हैं, इसलिए शाम और रात में श्राद्ध कर्म नहीं करना चाहिए. कहा जाता है कि दिन के आठवें मुहूर्त में पितरों के लिए दिया गया दान अक्षय होता है.