Chanakya Neeti: आचार्य चाणक्य राम को मनुष्य क्यों नहीं मानते थे? जानें उनकी नीति में राम की 10 बातें
मनुष्य एवं प्रकृति पर अपनी बात बड़ी जीवंतता से कहने वाले आचार्य चाणक्य दशरथ पुत्र श्रीराम से अत्यंत प्रभावित लगते हैं, उन्होंने अपनी नीतियों में कई जगह श्रीराम के प्रति अपनी निष्ठा, विश्वास और प्रेम व्यक्त किया है.
मनुष्य एवं प्रकृति पर अपनी बात बड़ी जीवंतता से कहने वाले आचार्य चाणक्य दशरथ पुत्र श्रीराम से अत्यंत प्रभावित लगते हैं, उन्होंने अपनी नीतियों में कई जगह श्रीराम के प्रति अपनी निष्ठा, विश्वास और प्रेम व्यक्त किया है. यहां इस श्लोक में भी आचार्य के कहने का आशय यही है कि अयोध्यावासी श्रीराम इसलिए भगवान माने जाते हैं, क्योंकि उनमें जो दस गुण विद्यमान हैं, वह मानव में निहि नहीं हो सकते. यह भी पढ़ें: Krishna Janmashtami 2023 HD Images: शुभ कृष्ण जन्माष्टमी! इन मनमोहक WhatsApp Stickers, GIF Greetings, Photo SMS, Wallpapers के जरिए दें बधाई
धर्मे तत्परता मुखे मधुरता दाने समुत्साहतामित्रेऽवंचकता गुरौ विनयता चित्तेऽतिगम्भीरता ।आचारे शुचिता गुणे रसिकता शास्त्रेषु विज्ञातृतारूपे सुन्दरता शिवे भजनता त्वय्यस्तिभी राघवः ।।
अर्थात धर्म में तत्परता, मुख में मधुरता, दान में उत्साह, मित्रों के साथ निष्कपटता, गुरू के प्रति विनम्रता, चित्त में गंभीरता, आचरण में पवित्रता, गुरुओं के प्रति आदर, शास्त्रों का विशेष ज्ञान, रूप में सुंदरता तथा शिव में भक्ति ये सभी गुण एक साथ आप में ही है राघव. आप साधारण नहीं असाधारण हैं. उपरोक्त श्लोक में आचार्य चाणक्य ने प्रभु श्रीराम के बारे में विस्तार से अपने मन की बात कहने की कोशिश की है, -हे राम आप धर्म का बड़ी तत्परता से पालन करते हैं, अधर्म को दंड देने से नहीं चूकते. आपके कमल मुख में एक अनूठी मधुरता है, जो किसी को भी अपने वश में करने का सामर्थ्य रखती है.आपको दान में अत्यधिक रुचि रहती है.
आप मित्रों के लिए निष्कपट हैं, यानी आप सच्चे मित्र हैं. गुरुजनों का आपने सदा से सम्मान किया है, गुरुओं के लिए आप विनम्र हैं, आपका ह्रदय अत्यंत गंभीर और कोमल है, आपका आचरण पवित्र है, आप गुणों का आदर करते हैं, तथा सभी शास्त्र विद्याओं का आपको विशेष ज्ञान है. आप सौम्य हैं, सुंदर हैं, शालीनता की मूर्ति हैं, शब्दों में आपकी सुंदरता का वर्णन नहीं किया जा सकता. शिव के प्रति आपके मन में अत्यंत भक्ति है, ये सभी पृथ्वी पर अवतरित किसी और व्यक्ति में नहीं, केवल आप में है, इसीलिए आप राम हैं, आप भगवान हैं. आप मानव हो ही नहीं सकते.