Rajab & Shab E Meraj 2024: भारत में कब शुरू हो रहा है रज्जब एवं शब-ए-मेराज? जानें इसके बारे में विस्तार से!
इस्लामिक कैलेंडर के सातवें महीने को रज्जब का महीना कहा जाता है. अल्लाह ने तीन पवित्र महीनों (मुहर्रम, धू अल-कादा और धू अल-हिज्जाह) में से एक बताया है. मुसलमानों के अनुसार रज्जब वह महीना है, जिसमें चौथे रशीदुन खलीफा अली इब्न अबी तालिब का जन्म हुआ था.
इस्लामिक कैलेंडर के सातवें महीने को रज्जब का महीना कहा जाता है. अल्लाह ने तीन पवित्र महीनों (मुहर्रम, धू अल-कादा और धू अल-हिज्जाह) में से एक बताया है. मुसलमानों के अनुसार रज्जब वह महीना है, जिसमें चौथे रशीदुन खलीफा अली इब्न अबी तालिब का जन्म हुआ था. रज्जब वह माह भी है, जिसके दौरान इसरा और मेराज (मोहम्मद की मक्का से यरुशलम और सात स्वर्गों के माध्यम से यात्रा) हुई थी. यह महीना शाबान के महीने और रमजान के पवित्र महीने से पहले आता है. इस माह होने वाले इस्लामी कैलेंडर के कुछ सबसे कीमती दिनों के कारण इस्लाम धर्म में विश्वास रखने वालों के लिए इसे कई तरीके से पुण्यदायी लाभकारी माना जाता है. पैगंबर के अनुसार यह मोक्ष का महीना होता है.
बताया जा रहा है कि अगर 12 जनवरी 2024, शुक्रवार की शाम को रज्जब का चांद नजर आएगा, ऐसी स्थिति में 13 जनवरी 2024, शनिवार को रज्जब की पहली तारीख मानी जाएगी.
कब है शब ए मेराज 2024
शब ए मेराज 07 फरवरी, 2024 की शाम को शुरू होता है. इस्लामी आस्था और दुनिया भर के मुसलमानों के बीच यह दिन ‘द नाइट जर्नी’ के रूप में भी लोकप्रिय है, जबकि अरबी दुनिया में इसे लैलात अल मिराज भी कहा जाता है, जहां यह तारीख 7 फरवरी की शाम को शुरु होती है, पाकिस्तान, भारत, बांग्लादेश और दुनिया के कुछ हिस्सों में 27 रज्जब (शब ए मेराज) 7 फरवरी 2024 से शुरू होगा. सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कतर, बहरीन, ओमान और अन्य देश के मुसलमान 6 फरवरी 2024, शनिवार को शब ए मेराज मनाएंगे, जिसे लैलत अल मिराज एवं इसरा अल मिराज भी कहा जाता है. यह एक ऐतिहासिक रात होती है, जिसका इस्लामी इतिहास बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. मान्यता है कि इस्लाम के इतिहास में यह एक भौतिक और आध्यात्मिक यात्रा है. शब ए मेराज को दो भागों में विभाजित किया गया है, जिन्हें इसरा और मेराज कहा जाता है. यह भी पढ़ें : Pradosh Vrat 2023: सेहत, दाम्पत्य जीवन एवं आर्थिक लाभ में वृद्धि हेतु प्रदोष व्रत के साथ करें ये आसान उपाय!
कुंडे क्यों मनाए जाते हैं?
कुछ अहले सुन्नत के उलमा मानते हैं कि 22 रज्जब को हजरत इमाम जाफर सादिक की वफात हुई थी, इस लिहाज से 22 तारीख को हजरत इमाम जाफर सादिक का नियाज कराया जाता है, जिसे कुंडे के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन सभी मुसलमान अपने घर में खीर बनाते हैं और हजरत इमाम जाफर सादिक के नाम से फातिहा कराते हैं, तथा अन्य मुसलमानों को घर पर बुलाकर नियाज की खीर पूरी और खस्ता खिलाते हैं. हालांकि बहुत से लोग इस अवसर पर मिठाई से भी काम चला लेते हैं. अगर आपके पास पैसे नहीं हैं तो आप सिर्फ हजरत जफर के नाम से फातिहा पढ़ लेने से भी सवाब मिल जाएगा.