World Heart Day 2019: दिल की फिटनेस बेहद जरुरी, आयुर्वेद से हार्ट की बिमारियों को रखें दूर

आयुर्वेद बिना किसी साइड इफेक्ट के रोग को जड़ से समाप्त करता है. आइए जानें ह्दय रोग एवं उपचार के संदर्भ में सुविख्याद आयुर्वेदाचार्य सोम जी शास्त्री क्या कहते हैं.

प्रतीकात्मक तस्वीर Photo Credits: Pixabay)

World Heart Day 2019: ऐलोपैथी चिकित्सा से पूर्व प्रत्येक रोगों का इलाज आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति से किया जाता था. यह चिकित्सा पद्धति आज भी अपने अकाट्य इलाज के लिए मशहूर है. आयुर्वेद बिना किसी साइड इफेक्ट के रोग को जड़ से समाप्त करता है. आइए जानें ह्दय रोग एवं उपचार के संदर्भ में सुविख्याद आयुर्वेदाचार्य सोम जी शास्त्री क्या कहते हैं. हमारा ह्रदय पोला पेशीय कोष्टांग है. जो दो ह्रदयावरण (पेरिकार्डियम) स्थित रहता है. एक वयस्क व्यक्ति के ह्रदय की लंबाई 12 सेमी, चौड़ाई 8 सेमी और मोटाई होती है. सामान्य स्थिति में पुरुषों का ह्रदय 280 से 340 ग्राम और महिलाओं का 230 से 280 ग्राम के लगभग होता है.

हृदय शरीर का वह अवयव है जो अपने संकोचन व फैलाव की अनवरत क्रिया से रक्त को सदैव गतिमान रखता है. इससे संपूर्ण शरीर को प्राण देने वाली वाहिनियां संबंधित रहती हैं. हृदय की इसी क्रियाओं के द्वारा शरीर का पोषण व कोशिकाओं को चैतन्य सजीवता मिलती है. हृदय अधोमुख लाल कमल के नीचे की ओर नुकीला और ऊपर मोटा मांसपेशी से निमित्त एक पोला अंग होता है.

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हृदय रोगोत्पत्ति व लक्षण

हृदय रोग किन्हीं विशेष दोषों के कारण, कुछ खाद्य-पदार्थ के दोषों के कारण अथवा किसी मानसिक उद्वेगता के कारण उत्पन्न होता है. आयुर्वेद में हृदय रोगों को पांच भागों में विभक्त किया जा सकता है. ये हैं वातज, पित्तज, कफज, त्रिदोषज एवं क्रिमिज

कृमिज हृदय रोग विशेषकर विचारणीय है. हृदय में कृमि उत्पन्न हो जाए यह तो संभव नहीं है. किंतु शुष्क कृमियों के आक्रमण से हृदय में गांठ जैसा अथवा सूजन हो जाए, इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता.

कोलेस्ट्राल क्या है?

कोलेस्ट्राल एक चर्बी सरीखा पदार्थ होता है, जो श्रक्त में पाया जाता है. यह तत्व प्रत्येक प्रकार की चर्बी, अंडे की चर्बी शरीर के विभिन्न हिस्सों में पाया जाता है. जब खाई हुई खुराक पूर्णतया विपचित नहीं हो पाती, तब उसमें से वसामय चिकना अंश रक्त प्रवाह में शामिल हो जाता है. यही कोलेस्ट्राल कहलाता है.

वनस्पति तेल, मक्खन, मलाई, भैंस का घी, भैंस का दूध, वेजीटेबल घी, अंडे की पीली जर्दी में इसकी मात्रा ज्यादा पाई जाती है. आयुर्वेदिक दृष्टि से ये सभी पदार्थ भारी, चिकने एवं कफ को बढ़ाने वाले होते हैं. इसकी वृद्धि से रक्त वाहिनियां अवरुद्ध हो जाती हैं. इस वजह से आर्टिरियो स्केलेरोसिस, कोरोनरी थ्रंबोसिस, हार्ट फेलियर के चांस बढ़ जाते हैं.

हृदय रोगों में पथ्यापथ्य व्यवस्था

ह‌दय हमारे शरीर का सर्वाधिक महत्वपूर्ण अवयव होता है. चेतना घिष्ठानुभूत, प्राण एवं रसवह स्त्रोत का मूल है. इसे स्वस्थ रखने के लिए विशेष ध्यान रखना चाहिए. चर्बीयुक्त मांस, अडा, नमक एवं वसायुक्त पदार्थों का कम से कम सेवन करें. हल्का फुल्का व्यायाम नियमित रूप से करें. धूम्रपान, काफी, चाय एवं मदिरा आदि का सेवन ना करें तो बेहतर होगा, साथ ही विषाद, चिंता एवं तनाव से दूर रहें.

हृदय रोग में आयुर्वेदिक चिकित्सा

हृदय रोग में परीक्षण के अनुसार दवा लेनी चाहिए. हृदय शुलांतक वटी, जवाहर मोहरा, हृदयराज, शंकरवटी, हृदय चिंतामणि याकूति, हृदयश्वराम्र, चंदनावलेह, स्वर्णभस्म, हृदयर्णवरस, खमीरागाजवां, आरोग्यवर्धिनी वटी, सिलाजीत, अश्वगंधा चूर्ण, आंवला मुरब्बा, छोटी इलायची, चांदी वक्र, गुलकंद, सेब का मुरब्बा, हरड का मुरब्बा, मुक्तापिष्टी, प्रवालमूंगा पिष्टी, गिलोयसत्व इत्यादि.

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