Coronavirus Vaccine Update: आने वाले समय में बार-बार लेनी पड़ सकती है कोरोना वायरस की वैक्सीन, मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग सहित सभी दिशा-निर्देशों का रखें ध्यान
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credits: Facebook)

Coronavirus Vaccine Update: भारत समेत कई देशों में वैक्सीन को लेकर तमाम शोध जारी हैं. कई वैक्‍सीन अंडर ट्रायल हैं तो कई का दो से तीन फेज का ट्रायल पूरा हो चुका है. वैक्सीन (Vaccine) को लेकर एक खास बात सामने आयी है, वो यह कि इसके आने पर हो सकता है लोगों को एक बार नहीं बार-बार वैक्सीन लेनी पड़े. ऐसा इसलिए क्योंकि कोरोना वायरस (Coronavirus) से लड़ने वाले एंटीबॉडी 3 से 6 महीने बाद कमजोर पड़ने लगते हैं. आईसीएमआर के पूर्व वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. रमन आर गंगाखेडकर ने इस संदर्भ में बताया कि दो शोध आए हैं, जिनके मुताबिक कोविड से ठीक हुए लोगों में एंटीबॉडी 3-6 महीने के बाद कम होने लगते हैं यानी उतनी मात्रा में नहीं रहते.

इसका असर ये यह होगा कि जो लोग एक बार संक्रमित होकर ठीक हो गए, वो 3 से 6 महीने बाद फिर संक्रमित हो सकते हैं. यानी अगर वैक्सीन आ जाती है, तो उसे केवल एक बार नहीं बल्कि एक निश्चित अंतराल पर बार-बार लेनी होगी. दूसरी बात यह पता चली है कि जब एंटीबॉडी का लेवल कम होता है तो एक पी सेल (P-Cell) होती है वो शरीर में इम्यूनिटी बढ़ाती है और वायरस से लड़ती है. ये पी सेल जानते हैं कि पहले की उस इम्यूनिटी ने कैसे वायरस से शरीर को बचाया था. इसलिए माना जा रहा है कि पी सेल का भी महत्वपूर्ण रोल है. लेकिन ये वायरस नया है इसलिए अभी कई और रिसर्च आएंगे, जिसके बाद ही कुछ स्थाई रूप से कह सकेंगे.

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स्वस्थ लोगों के लिए वैक्सीन

डॉ. गंगाखेडकर ने प्रसार भारती से बातचीत में कहा कि कई देशों में वैक्सीन का ट्रायल चल रहा है. कई वैक्सीन तीसरे चरण में हैं. ऐसे में भारत में वैक्सीन के उत्पादन की क्षमता दुनिया में सबसे ज्यादा है. इसलिए वैक्सीन बनाने में सफल कोई भी देश हो, उत्पादन करने की क्षमता भारत में है और ऐसे में हमारे देशवासियों को वैक्सीन बाकियों की तुलना में जल्दी मिलेगी. इसलिए परेशान होने की जरूरत नहीं है. लेकिन इस बात का ध्यान रखना है कि वैक्सीन स्वस्थ लोगों के लिए ही है.

कहने का तात्पर्य यह है कि वैक्सीन का असर स्वस्थ लोगों पर ज्यादा होगा, अगर आप पहले से बीमार हैं या किसी लंबी बीमारी से जूझ रहे हैं, तो हो सकता है वो वैक्सीन आप पर असर नहीं करे, इसलिए खुद को सुरक्षित रखें. दूसरों को भी सुरक्षित रहने के लिए कहें. मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग और हैंड सेनिटाइज का ध्यान रखें.

भारत में कम्यूनिटी ट्रांसमिशन और पीक नहीं

भारत में कम्यूनिटी ट्रांसमिशन यानी सामुदायिक संक्रमण और पीक पर डॉ. गंगाखेडकर ने कहा कि अभी कुछ नहीं मान सकते हैं, क्योंकि जो भी केस आ रहे हैं, वो बड़े शहरों के कुछ पॉकेट और ब्लॉक में ज्यादा आ रहे हैं, क्योंकि इन जगहों पर एक-एक घर में 7-8 लोग साथ रहते हैं. कोई एक भी संक्रमित हुआ तो अन्य लोग जल्दी संक्रमित हो जाते हैं. अगर पीक की बात करें तो जैसे दिल्ली में केस बढ़े, टेस्टिंग की गई, उन्हें आइसोलेट किया गया, उन्हें इलाज मिल गया.

अब इंफेक्शन का रेट कम हो गया. अब केस एक दम से कम हो गए. जब टेस्टेंसिंग ज्यादा होती है तो नंबर बढ़ेंगे ही तो इसे पीक नहीं कह सकते हैं और नंबर बढ़ने से डरना नहीं है. नंबर बढ़ेगा तो संक्रमितों को सही समय पर इलाज मिलेगा. इसी प्रकार पूरे देश में जिन लोगों से संक्रमण फैलने की आशंका है, उनको एक जगह आइसोलेट करके संक्रमण को रोकने के प्रयास जारी हैं. इसे पीक नहीं कहेंगे.

सभी नियमों का पालन करने पर भी क्यों हो रहे संक्रमित

देश के कई हिस्सों में कुछ कोविड संक्रमित मरीजों की कोई ट्रैवल हिस्ट्री नहीं होती और वो मास्क लगाने, सोशल डिस्टेंसिग जैसी सभी सावधानी का पालन करते हैं फिर भी संक्रमित हो रहे हैं. इस पर उन्होंने कहा कि लोग मास्क तो पहनते हैं लेकिन कोई आया तो मास्क नीचे करके बात करने लगते हैं, फिर पहन लेते हैं, यह गलत है. अगर कहीं गए और हाथ से दरवाजा या गेट खोला, तो तुरंत हाथ धोएं या सैनिटाइज करें, क्योंकि वहां कई अन्य लोग हाथ से दरवाजा खोल रहे हैं, वे संक्रमित हो सकते हैं.

कई बार लोग कुछ भी छूने के बाद मास्क को ऊपर-नीचे करते हैं. हाथ से वायरस मास्क पर चला जाता है और फिर मुह के अंदर. या फिर मास्क के बाहरी हिस्से पर भी वायरस बैठा हो सकता है. इससे साफ है कि कहीं न कहीं एक छोटी सी चूंक से संक्रमण हो सकता है. इसलिए अभी भी कहा जा रहा है कि जब तक कोई वैक्सीन नहीं आ जाती तब तक जरूरत पड़ने पर ही बाहर जाएं.