Guru Tegh Bahadur Punyatithi 2024: ‘सिर कटा सकते हैं लेकिन सिर झुका सकते नहीं’, जानें गुरु तेग बहादुर की वीरगाथा!
मुगलकाल में कई महापुरुषों ने अपने धर्म एवं हिंदुओं की रक्षार्थ अपना जीवन न्योछावर कर दिया था. ऐसे ही एक महान शासक और क्रांतिकारी महापुरुष थे, सिखों के नवें गुरू श्री गुरु तेग बहादुर जी. गुरु तेग बहादुर जी अपने शासनकाल में धार्मिक स्वतंत्रता के समर्थक थे, जब लोगों का जबरन धर्म परिवर्तन किया जा रहा था.
मुगलकाल में कई महापुरुषों ने अपने धर्म एवं हिंदुओं की रक्षार्थ अपना जीवन न्योछावर कर दिया था. ऐसे ही एक महान शासक और क्रांतिकारी महापुरुष थे, सिखों के नवें गुरू श्री गुरु तेग बहादुर जी. गुरु तेग बहादुर जी अपने शासनकाल में धार्मिक स्वतंत्रता के समर्थक थे, जब लोगों का जबरन धर्म परिवर्तन किया जा रहा था. गौरतलब है कि मुगल सम्राट औरंगजेब ने 24 नवंबर 1675 को दिल्ली में इसलिए फांसी पर चढ़ा दिया, क्योंकि उन्होंने इस्लाम धर्म स्वीकारने से इंकार कर दिया था. आज श्री गुरु तेग बहादुर सिंह की 349 वीं पुण्यतिथि के अवसर पर आइये जानते हैं, महान सिख गुरू के शौर्य एवं शहादत की रोमांचकारी गाथा के बारे में...
कौन थे गुरू गोविंद सिंह
साल 1621 में वैशाख कृष्ण पक्ष की पंचमी (21 अप्रैल 1621) को अमृतसर (पंजाब) में सिखों के छठवें गुरु हरगोबिंद साहिब और माता नानकी के घर में त्याग मल का जन्म हुआ था. त्याग मल बचपन से ही साहसी, शूरवीर और सभी धर्मों का सम्मान करते थे. साल 1632 में त्याग मल की शादी करतारपुर (जालंधर) में बीबी गुजरी से हुई. कुछ दिनों के बाद वे सपरिवार अमृतसर के निकट बकाला में आकर रहने लगे. सिखों के आठवें गुरु के निधन के पश्चात शिरोमणि गुरु तेग बहादुर जी साल 1665 से 1675 तक नौवें गुरू के रूप में गद्दी संभाली. यह भी पढ़ें : Aaj ka Panchang: आज 20 नवंबर, 2024 का पंचांग! जानें आज की तिथि एवं शुभ-अशुभ काल और राहुकाल की स्थिति!
उनका नाम तेग बहादुर क्यों रखा गया
गुरू गोविंद साहब और उनके पिता गुरू हरगोबिंद साहिब ने मुगलों से कई लड़ाइयां लड़ी, और विजयी हुए. एक बार गुरू हरगोबिंद करतारपुर में मुगलों से युद्ध करके फगवाड़ा के पास पलाही गांव से गुजर रहे थे, तभी मुगल सेना की एक टुकड़ी ने उन पर भीतरघात करते हुए हमला कर दिया. तब त्यागमल किशोर वय (14 वर्ष) के थे, लेकिन अंग्रेजी टुकड़ी के साथ त्यागमल ने जिस कुशलता और कौशल से युद्ध किया, अंग्रेज के सिपाही तो भागे ही, पिता हरगोबिंद साहिब भी उनकी युद्धकला से बहुत प्रभावित हुए, उन्होंने त्यागमल का नाम तेग बहादुर रख दिया, जिसका अर्थ है ‘बहादुर की तलवार’.
सिर कटना मंजूर था, औरंगजेब के आगे नतमस्तक होना स्वीकार्य नहीं
गुरु तेग बहादुर हर धर्म का सम्मान करते थे. मानवता को सभी धर्म से ऊपर और दुखियों की मदद करना वे अपना कर्तव्य मानते थे. उन दिनों कश्मीरी पंडितों पर मुगल सेना का अत्याचार चरम पर था. उन्हें जबरन मुसलमान बनाया जा रहा था. इंकार करने पर उनका कत्ल कर दिया जाता था. औरंगजेब की इस नीति का गुरु तेग बहादुर ने खुलकर विरोध किया. वे उनकी हर संभव मदद करते थे. यह खबर सुनकर औरंगजेब आग बबूला हो गया. उसने गुरु तेग बहादुर के परिवार का कत्लेआम करना शुरू किया. औरंगजेब को लगा कि इससे गुरु तेग बहादुर झुक जाएंगे, और इस्लाम धर्म स्वीकार कर लेंगे. लेकिन गुरु तेग बहादुर के इंकार पर औरंगजेब ने उन्हें गिरफ्तार करवा लिया. 24 नवंबर 1675 को औरंगजेब के आदेश पर दिल्ली में सरेआम चौराहे पर गुरु तेग बहादुर का सिर कलम करवा दिया. जहां पर उनका सिर गिरा, वहीं पर आज शीशगंज गुरुद्वारा बना है.