Vivasvat Saptami 2019: विवस्वत सप्तमी पर ऐसे करें भगवान सूर्य की उपासना, पूरी होगी हर मनोकामना

आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को विवस्वत सप्तमी का पर्व मनाया जाता है. विवस्वत नव ग्रहों के राजा सूर्यदेव का ही नाम है, इसलिए इस दिन व्रत रखकर उनकी उपासना की जाती है. कहा जाता है कि सूर्यदेव की उपासना से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

भगवान सूर्य (Photo Credits: Facebook)

Vaivasvata Saptami Vrat 2019: हिंदू धर्म में नव ग्रहों के राजा सूर्य देव की उपासना की परंपरा काफी पुरानी रही है. वैसे तो रविवार का दिन भगवान सूर्यदेव (Bhagwan Surya) को समर्पित होता है, लेकिन आज (8 जुलाई 2019) आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि है और आज विवस्वत सप्तमी (Vivasvat Saptami) मनाई जा रही है. आज के दिन सूर्य देव की उपासना का विशेष महत्व बताया जाता है. प्रचलित मान्यताओं के अनुसार, सूर्यदेव की पूजा करने से व्यक्ति को लंबी आयु, अच्छा आरोग्य, धन-धान्य में बढ़ोत्तरी, यश-कीर्ति, विद्या, भाग्य और पुत्र, मित्र व पत्नी का सहयोग प्राप्त होता है. कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति सच्ची निष्ठा और श्रद्धाभाव से व्रत रखकर भगवान सूर्य की पूजा करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

खासकर विवस्वत सप्तमी के दिन भगवान सूर्य (Surya Dev) की पूजा करने से जीवन की सारी परेशानियों से छुटकारा पाया जा सकता है. विवस्वत सप्तमी के इस खास मौके पर चलिए जानते हैं इस दिन का महत्व और पूजा विधि.

विवस्वत सप्तमी का महत्व

कहा जाता है कि आज के दिन सूर्यदेव की पूजा करने से जीवन की दुख, परेशानियां दूर होती हैं. इससे स्वास्थ्य बेहतर होता है और भूमि-भवन की परेशानियों से छुटकारा मिलता है. आज के दिन सूर्य की उपासना करने से दूसरों के बीच यश-कीर्ति बढ़ती है. किसी भी कार्य में आनेवाली बाधा दूर होती है और भाग्य का साथ मिलता है. इससे आयु लंबी होती है और घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है. बच्चे पढ़ाई-लिखाई में तेज होते हैं और खुशहाल दांपत्य जीवन के साथ-साथ बच्चों का भविष्य भी उज्जवल होता है. यह भी पढ़ें: सूर्योपासना से ऐसे चमकाएं अपनी किस्मत, हो जाएगा सभी समस्याओं का समाधान

पूजा विधि-

गौरतलब है कि इस विधि से भगवान सूर्य की उपासना करने से व्यक्ति की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं. इसके अलावा सूर्यदेव को प्रसन्न करने के लिए आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करना चाहिए. यह दिव्य भजन वाल्मीकि के शुद्धा कांड का हिस्सा है और इसमें 31 श्लोक हैं. ऐसा माना जाता है कि आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ स्वयं भगवान राम ने रावण से युद्ध करने से पहले किया था.

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