Vat Savitri 2019: अपने पति की लंबी उम्र के लिए पत्नियां रखती हैं वट सावित्री का व्रत, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और इससे जुड़ी मान्यताएं

विद्वानों के अनुसार, इस ज्येष्ठ मास के वट सावित्री का व्रत सोमवती अमावस्या, सर्वार्थसिद्ध योग के साथ आ रहा है, जिसे काफी शुभ बताया जा रहा है. मान्यता है कि इसी दिन शनिदेव भगवान का भी जन्म हुआ था. इसलिए इसी दिन वट और पीपल की पूजा करके शनिदेव को प्रसन्न किया जाता है.

वट सावित्री व्रत 2019 (Photo Credits: Facebook)

Vat Savitri 2019: हिंदू धर्म में ज्येष्ठ माह (Jyestha Month) के वट अमावस्या (Vat Amavasya) का व्रत किसी भी महिला के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. खासकर सुहागन स्त्रियों के लिए, जो अपने पति की दीर्घायु एवं उसके सुख एवं समृद्धि की कामना करती हैं. इस दिन सुहागन स्त्रियां अपने पूरे सोलह श्रृंगार के साथ दिन भर उपवास रखते हुए सिंदूर, धूप, रोली, दीप एवं प्रसाद आदि के साथ वट-वृक्ष की पूजा करती हैं. पूजा अर्पण के पश्चात महिलाएं वट-वृक्ष की परिक्रमा करते हुए वट वृक्ष (Banyan Tree) में कलावा बांधती हुई पति के दीर्घायु जीवन की प्रार्थना करती हैं. उसके लिए सुख-समृद्धि की कामना करती हैं. इस वर्ष वट सावित्री व्रत 3 जून सोमवार को ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष अमावस्या के दिन मनाया जायेगा.

विद्वानों के अनुसार, इस ज्येष्ठ मास के वट सावित्री का व्रत (Vat Savitri Vrat) सोमवती अमावस्या (Somvati Amavasya), सर्वार्थसिद्ध योग के साथ आ रहा है, जिसे काफी शुभ बताया जा रहा है. मान्यता है कि इसी दिन शनिदेव भगवान का भी जन्म हुआ था. इसलिए इसी दिन वट और पीपल की पूजा करके शनिदेव को प्रसन्न किया जाता है. कहा जाता है कि जो व्रती महिलाएं वट-वृक्ष की 108 परिक्रमा करती हैं, उन्हें विशेष सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद प्राप्त होता है.

वट (बरगद) की ही पूजा क्यों?

वट सावित्री व्रत में वट यानी बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है, क्योंकि वट वृक्ष ने ही सावित्री के पति सत्यवान के मृत शरीर को अपनी जटाओं के घेरे में सुरक्षित रखा था, ताकि जंगली जानवर सत्यवान के शरीर को नुकसान नहीं पहुंचा सके. ज्योतिषों के अनुसार, वट वृक्ष में ब्रह्मा, बिष्णु और महेश तीनों का वास होता है. इसलिए भी महिलाएं इस वृक्ष की पूजा करती हैं.

पूजा का शुभ मुहूर्त

अमावस्या प्रारंभ- 2 जून रविवार को शाम 04:39 बजे.

अमावस्या समाप्त- 3 जून सोमवार अपराह्न 03:31 बजे तक

यहां देखें पूजा विधि का वीडियो 

 

इस तरह करें वट-वृक्ष की पूजा

प्रातःकाल उठकर स्नान-ध्यान कर नया वस्त्र पहनें. तत्पश्चात वट-वृक्ष के नीचे गंगाजल का छिड़काव करें. अब एक टोकरी में सात किस्म का अनाज लें. इसके ऊपर ब्रह्माजी, सावित्री और सत्यवान की प्रतीक मूर्त स्थापित करें. ब्रह्मा जी के बाईं ओर सत्यवान और दाईं ओर सावित्री की मूर्ति स्थापित करें. इसके पश्चात वट वृक्ष पर जल चढ़ाने के बाद फल-फूल, चने की दाल, सूत, धूप-दीप, अक्षत और रोली आदि वट वृक्ष की पूजा करें. तत्पचात वट वृक्ष के नीचे बैठकर प्रचलित कथाएं सुनें.

अच्छा होगा कि कथा बांचने का काम कोई पुरोहित करे. कथा सुनने के पश्चात अखंड सुहाग की कामना करते हुए सूत के धागे से वट वृक्ष की 3, 5, 11, 21, 51 अथवा 108 बार परिक्रमा करें. बहुत सी महिलाएं मन्नत के अनुसार भी परिक्रमा करती हैं. अब बांस के पंखे से ब्रह्मा, सत्यवान और सावित्री को हवा करें. इसके बाद पत्तल में चने की दाल, फल, फूल, प्रसाद और यथाशक्ति दक्षिणा रखकर पुरोहित को दान कर दें. पूजा सम्पन्न होने के पश्चात उसी बांस के पंखे से पति को हवा करें और चढ़ा हुआ प्रसाद सबको वितरित कर, मिष्ठान से उपवास तोड़ें. यह भी पढ़ें: Shani Jayanti 2019: शनि जयंती पर जरूर करें ये उपाय, शनिदेव होंगे प्रसन्न और दिलाएंगे जीवन की सारी परेशानियों से मुक्ति

प्रचलित मान्यताएं

मान्यता है कि वट सावित्री के दिन व्रती स्त्रियों द्वारा बरगद के पेड़ की पूजा-पाठ करने और सत्यवान-सावित्री की कथा सुनने से व्रती की सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. प्रचलित कथा के अनुसार इसी वट-वृक्ष के नीचे बैठकर सावित्री ने अपने कठिन पतिव्रता का पालन करते हुए अपने पति सत्यवान को यमराज के मौत के पाश से वापस ले आई थीं.

एक अन्य कथा के अनुसार महर्षि मार्कण्डेय जी को भगवान शिव जी के वरदान स्वरूप वट-वृक्ष के पत्ते में पैर का अंगूठा चूसते हुए बाल मुकुंद के दर्शन हुए. इसके पश्चात से ही वट-वृक्ष की पूजा की परंपरा चली आ रही है. वट-वृक्ष की पूजा से घर में सुख-शांति के साथ धनलक्ष्मी का भी वास होता है. इसके अलावा वट-वृक्ष रोग नाशक भी है. वट का दूध कई बीमारियों से मानव शरीर की रक्षा करता है.

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