Navratri 2018: भारत के इस मंदिर में होती है बिना सिर वाली देवी की पूजा, हर रोज चढ़ाई जाती है सैकड़ों बकरों की बलि

झारखंड की राजधानी रांची से करीब 80 किलोमीटर दूर रजरप्पा में स्थित छिन्नमस्तिका के मंदिर में बिना सिर वाली देवी की पूजा की जाती है. मां छिन्नमस्तिका का यह मंदिर शक्तिपीठों में से एक है.

मां छन्नमस्तिका (Photo Credits: Facebook)

नवरात्रि के दौरान भारत में स्थित देवी मां के कई मंदिरों में दर्शन करने के लिए भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है. खासकर नवरात्रि के दौरान देवी मां के शक्तिपीठों के दर्शन करने का अपना एक अलग ही महत्व होता है. कहा जाता है कि देवी सती के शरीर के अंग जहां-जहां गिरे थे, उन स्थानों को शक्तिपीठ के रूप में पूजा जाता है. अब जब बात माता रानी के शक्तिपीठों की हो रही है तो ऐसे में मां छिन्नमस्तिका के मंदिर का जिक्र भला कैसे न किया जाए? मां के विभिन्न रूपों में इस स्वरूप को सबसे ज्यादा पूजनीय माना जाता है. चलिए आपको बताते हैं देवी मां के इस शक्तिपीठ के बारे में जहां बिना सिर वाली देवी की पूजा की जाती है.

झारखंड की राजधानी रांची से करीब 80 किलोमीटर दूर रजरप्पा में स्थित छिन्नमस्तिका के मंदिर में बिना सिर वाली देवी की पूजा की जाती है. मां छिन्नमस्तिका का यह मंदिर शक्तिपीठों में से एक है. भक्तों का मानना है कि जो भी भक्त मां के दरबार में हाजिरी लगाता है,उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

ऐसा है मां छिन्नमस्ता का स्वरूप 

इस शक्तिपीठ में देवी छिन्नमस्तिका महाकाली के रूप में विराजमान है. उनके दाहिने हाथ में तलवार है जबकि बायें हाथ में उन्होंने अपना कटा हुआ सिर थामे रखा है. मां के तीन नेत्र हैं. मां के पैरों के नीच विपरित मुद्रा में कामदेव और रति शयनावस्था में हैं. उनके गले में सांपों और मुंडों की माला है. उनके केश बिखरे हुए हैं.  यह भी पढ़ें: Navratri 2018: कैसे हुई थी देवी दुर्गा की उत्पत्ति, जानें इससे जुड़ी दिलचस्प पौराणिक कथा

मां की इस प्रतिमा के अगल और बगल में डाकिनी-शाकिनी खड़ी हैं. मां उन्हें रक्तपान करा रही हैं. जहां से मां का सिर कटा है, वहां गले से रक्त की तीन धाराएं बह रही हैं. जिसके पीछे एक दिलचस्प पौराणिक कथा छुपी है.

ऐसी है इससे जुड़ी पौराणिक कथा

मां छिन्नमस्तिका से जुड़ी दिलचस्प पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार मां भवानी अपनी दो सहेलियों के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान करने के लिए आई थीं. स्नान करने के बाद उनकी सहेलियों को इतनी तेज भूख लग गई, जिससे उनका रंग काला पड़ने लगा. भूख से तड़पती सहेलियों के बार-बार आग्रह करने पर माता ने खड्ग से खुद अपना ही सिर काट लिया. कटा हुआ सिर मां के बायें हाथ में आ गिरा और उनके गले से रक्त की तीन धाराएं बहने लगीं. गले से निकली रक्त की दो धाराओं को मां ने अपने सहेलियों की तरफ मोड़ दिया और एक धारा से वह स्वयं रक्तपान करने लगीं. उसी दिन से मां के इस स्वरूप को छिन्नमस्तिका के रूप में पूजा जाने लगा.  यह भी पढ़ें: Navratri 2018: भारत के इस मंदिर में सदियों से रहस्यमय तरीके से जल रही है ज्वाला

सैकड़ों बकरों की दी जाती है बलि 

यहां के स्थानीय लोगों का मानना है कि हर साल भारी तादात में इस मंदिर में भक्तों की भीड़ उमड़ती है. इस मंदिर का मुख्य द्वार पूर्व दिशा की ओर खुलता है और इस मंदिर के सामने बकरे की बलि के लिए विशेष जगह बनाई गई है, जहां हर रोज सौ से दो सौ बकरों की बलि दी जाती है.  बता दें कि असम स्थित कामाख्या देवी मंदिर के बाद छिन्नमस्तिका मंदिर दूसरा सबसे बड़ा शक्तिपीठ है और यहां नवरात्रि के दौरान भक्तों की भीड़ देखने लायक होती है.

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