Lalita panchami 2020: कब है ललिता पंचमी? कौन हैं ललिता देवी तथा क्या है पूजा-विधान और इससे जुड़ी पौराणिक कथा
शारदीय नवरात्रि के पांचवें दिन श्री उपांग ललिता पंचमी व्रत अथवा ललिता जयंती मनायी जाती है. मां ललिता देवी 'त्रिपुर सुन्दरी' के नाम से भी लोकप्रिय हैं. ये दस महाविद्याओं में से एक हैं. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष 21 अक्टूबर (बुधवार) को ललिता पंचमी मनाई जायेगी. नवरात्र काल में पड़ने के कारण ललिता पंचमी का विशेष महात्म्य है.
Lalita panchami 2020: शारदीय नवरात्रि (Sharad Navratri) के पांचवें दिन श्री उपांग ललिता पंचमी (Lalita Panchami) व्रत अथवा ललिता जयंती (Lalita Jayanti) मनायी जाती है. मां ललिता देवी 'त्रिपुर सुन्दरी' के नाम से भी लोकप्रिय हैं. ये दस महाविद्याओं में से एक हैं. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष 21 अक्टूबर (बुधवार) को ललिता पंचमी मनाई जायेगी. नवरात्र काल में पड़ने के कारण ललिता पंचमी का विशेष महात्म्य है. इस दिन जो भी व्यक्ति माता ललिता (Maa Lalita) का व्रत एवं शास्त्र सम्मत से पूजा-अर्चना करता है, उनकी कथा सुनता और सुनाता है, उस पर देवी की विशेष कृपा होती है. यह व्रत सुख, संपत्ति, योग, संतान प्रदान करता है. माएं भी संतान-सुख एवं उसकी लंबी आयु की कामना हेतु यह व्रत करती हैं. आइए जानें कौन हैं ललिता देवी, और कैसे करते हैं इनकी पूजा-अर्चना तथा क्या है ललिता पंचमी की पौराणिक कथा.
क्यों कहते हैं त्रिपुर सुंदरी?
देवी ललिता को त्रिपुर सुंदरी भी कहते हैं. ये षोडशी माहेश्वरी शक्ति की विग्रह वाली शक्ति हैं. इनकी चार भुजाएं एवं तीन नेत्र हैं. माता ललिता देवी षोडश कलाओं से युक्त हैं, इसलिए इन्हें षोडशी के नाम से भी जाना जाता है. उल्लेखनीय है कि महाविद्या समुदाय में त्रिपुरा नाम की अनेक देवियां हैं, जिनमें त्रिपुरा-भैरवी, त्रिपुरा और त्रिपुर सुंदरी विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं.
क्या है व्रत एवं पूजन-विधान?
आश्विन शुक्लपक्ष की पंचमी के दिन व्रती प्रातःकाल उठकर स्नान-ध्यान से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र पहनें और ललिता देवी का ध्यान कर व्रत एवं पूजन का संकल्प लें. घर के मंदिर के पास ईशान कोण में पूर्व अथवा उत्तर दिशा में आसन पर बैठे. एक स्वच्छ चौकी पर लाल आसन बिछाकर उस पर शालिग्राम जी, कार्तिकेय जी, माता गौरी और भगवान शिव की प्रतिमा स्थापित करें. सर्वप्रथम सभी देवी देवता को गंगाजल से स्नान करायें. प्रतिमा के सामने धूप एवं दीप प्रज्जवलित करें. पूजा की शुरुआत श्रीगणेश जी से करें.
अब चौकी पर स्थापित सभी देवी देवता का ध्यान करते हुए उन्हें रोली, अक्षत, मौली अबीर, गुलाल, इत्र तथा मिष्ठान अर्पित करें. अब माता ललिता देवी का ध्यान कर रुद्राक्ष की माला के साथ उनके मंत्रों का जाप करें. इसके बाद माता के समक्ष हाथ जोड़कर जो भी मनोकामना हो उसके लिए प्रार्थना करें. देवी की कृपा से पुत्र, धन सुख, शांति और समृद्धि प्राप्त होती है. किसी काम में बाधा आ रही है तो वह दूर होती है. प्रसाद में मेवा-मिष्ठान एवं मालपूआ एवं खीर चढ़ायें. नवरात्रि की इस पंचमी के दिन परंपरास्वरूप से स्कंद माता और भोलेनाथ की पूजा करने का विधान है. यह भी पढ़ें: Navratri 2020: शारदीय नवरात्रि पर मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए करें इन मंत्रों का जप, जीवन में आएगी सुख-समृद्धि और खुशहाली
ललिता देवी के दो मंत्र
- 'ऐ ह्नीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नम:'
- 'ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौ: ॐ ह्रीं श्रीं क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं सकल ह्रीं सौ: ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं नम:।'
पारंपरिक कथा
अपने पिता दक्ष द्वारा भगवान शिव एवं खुद का अपमान किये जाने से दुःखी होकर देवी सती यज्ञकुण्ड में कूदकर प्राण त्याग देती हैं. उनकी मृत्यु से दुःखी एवं क्रोधित होकर भगवान शिव राजा दक्ष समेत यज्ञ में उपस्थित सभी का संहार कर माता सती का मृत शरीर लेकर ब्रह्माण्ड में विचरण करने लगते हैं. इससे सृष्टि की गति ठप्प पड़ जाती है. आकाश, पाताल एवं पृथ्वी समेत देवलोक में हाहाकार मच जाता है. तब देवों के अनुनय-विनय पर भगवान विष्णु अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर को खंडित-खंडित कर भगवान शिव की चेतना को जागृत करते हैं. भगवान शिव को हृदय में धारण करने के कारण उन्हें ललिता के नाम से जाना जाता है.
एक अन्य कथा अनुसार ललिता देवी का प्रादुर्भाव उस समय होता है, जब श्री विष्णु द्वारा छोड़े गए सुदर्शन चक्र से पाताल का अस्तित्व मिटने लगता है और संपूर्ण पृथ्वी धीरे-धीरे जलमग्न होने लगती है. इससे चिंतित होकर सभी ऋषि-मुनि घबराकर माता ललिता की उपासना करते हैं. उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर ललिता देवी प्रकट होती हैं तथा इस विनाशकारी चक्र को थाम लेती हैं. इस तरह सृष्टि पुन: नवजीवन प्राप्त करती है.