भगवान श्रीहरि (विष्णु जी) सृष्टि के पालनकर्ता है. सृष्टि के सभी जीव-जंतुओं के पालन-पोषण का दायित्व श्रीहरि का है. भगवद् गीता में उल्लेखित है कि जब-जब पृथ्वी पर पाप बढ़ेगा, उसका नाश करने के लिए श्रीहरि अवतार लेंगे. गरुड़ पुराण (Garuda Puran) के अनुसार अब तक श्रीहरि पृथ्वी पर 9 अवतार ले चुके हैं. जबकि कुछ पौराणिक ग्रंथों में श्रीहरि के 10 अवतार की जानकारी वर्णित है. इन्हीं में एक है, वैशाख मास की पूर्णिमा (Purnima) के दिन श्रीहरि का कूर्मी यानी कच्छप अवतार. इस वर्ष 26 मई 2021 बुधवार को कूर्मी जयंती (Kurmi Jayanti) मनाई जायेगी. आइये जानें क्या है श्रीहरि के कच्छप अवतार की कहानी? एवं जानें कि विभिन्न पौराणिक ग्रंथ क्या कहते हैं.
क्यों लेना पड़ा श्रीहरि को कच्छप अवतार?
एक बार स्वर्ग में किसी कारणवश महर्षि दुर्वासा मुनि राजा इंद्र पर क्रोधित हो गये. उन्होंने इंद्र को श्रीहीन होने का शाप दे दिया. श्रीहीन होते ही इंद्र एवं सारे देवताओं की शक्तियां भी लुप्त हो गईं. इससे इंद्र एवं सारे देवतागण चिंतित हो गये. क्योंकि यह बात दानवों को पता चलेगी तो वे इंद्र से स्वर्ग को छीन लेंगे. इंद्र एवं सभी देवता श्रीहरि के पास पहुंचे. श्रीहरि समझ गये. उन्होंने इंद्र को समुद्र-मंथन करने की सलाह दी और कहा कि उनसे जो भी मदद की जरूरत होगी वे करेंगे. लेकिन समुद्र-मंथन के लिए देवताओं के साथ दानवों का साथ होना जरूरी था. दानवों ने जब अमृत कलश निकलने की बात सुनी तो तुरंत तैयार हो गये. समुद्र-मंथन के लिए नेती (रस्सी) बनने के लिए नागराज वासुकी को श्रीहरि ने तैयार किया. अब श्रीहरि के आदेश पर देव और दानव मंदराचल पर्वत को उखाड़ लाए. लेकिन पर्वत इतना भारी था कि देव और दानव उसे समुद्र तक नहीं ला सके. तब श्रीहरि ने एक विशालकाय कच्छप का अवतार लिया. उन्होंने अपनी पीठ पर मंदराचल पर्वत समुद्र के बीच में ले गये, और इस तरह श्रीहरि की पीठ पर मंदारचल पर्वत को नागराज वासुकी के सहयोग से समुद्र-मंथन का कार्य सम्पन्न हुआ, और उससे प्राप्त अमृत का पान कर इंद्र के साथ सभी देवों की खोई हुई शक्ति वापस आ गयी.
कूर्मी अवतार के संदर्भ विभिन्न मान्यताएं!
विभिन्न पौराणिक ग्रंथों में श्रीहरि के कूर्म अवतार की भिन्न-भिन्न कथाएं वर्णित हैं. लिंग पुराण में उल्लेखित है कि जब पृथ्वी रसातल में धंसने लगी, तब श्रीहरि ने कच्छप अवतार लेकर पृथ्वी को नष्ट होने से बचाया था. वहीं पद्म पुराण में उल्लेखित है कि मंदराचल पर्वत जब समुद्र मंथन के दौरान समुद्र की तलहटियों में धंसने लगा, तब श्रीहरि ने कच्छप अवतार लेकर मंदराचल पर्वत को संतुलन प्रदान किया था. कूर्म पुराण के अनुसार श्रीहरि ने कच्छप अवतार इसलिए लिया था ताकि वे साधु-संतों को जीवन के चार लक्ष्यों अर्थ, धर्म, काम तथा मोक्ष का ज्ञान दे सकें. नरसिंह और भागवद् पुराण में कूर्म अवतार को श्रीहरि का 10वां अवतार माना गया है, जबकि कुछ जगहों पर कूर्मी यानी कच्छप अवतार दूसरा अथवा तीसरा अवतार बताया गया है. इसीलिए श्रीहरि को दसावतार भी कहा जाता है.