Karva Chauth 2020 Katha In Hindi: करवा चौथ पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, व्रत कथा और चंद्र अर्ग का महत्व
करवा चौथ, पति और पत्नी के बीच समर्पण, प्रेम और अटूट विश्वास का त्योहार है, जिसे उत्तर भारत में लोकप्रिय रूप से मनाया जाता है. इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और भलाई के लिए व्रत रखती हैं. हिंदू धर्म में करवा चौथ व्रत का विशेष महत्व है. इस साल 4 नवंबर को करवा चौथ मनाया जाएगा.
करवा चौथ, पति और पत्नी के बीच समर्पण, प्रेम और अटूट विश्वास का त्योहार है, जिसे उत्तर भारत में लोकप्रिय रूप से मनाया जाता है. इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और भलाई के लिए व्रत रखती हैं. हिंदू धर्म में करवा चौथ व्रत का विशेष महत्व है. इस साल 4 नवंबर को करवा चौथ मनाया जाएगा. द्रिघपंचांग के अमंत कैलेंडर के अनुसार करवा चौथ का व्रत कृष्ण पक्ष चतुर्थी के दौरान गुजरात, महाराष्ट्र और दक्षिणी भारत में मनाया जाता है. करवा चौथ अलग अलग राज्यों में एक ही दिन मनाया जाता है. यह भी पढ़ें: Karwa Chauth 2020 Wishes: करवा चौथ पर हिंदी WhatsApp Stickers, Facebook Messages, GIF Images, SMS, Wallpapers भेजकर दें शुभकामनाएं
करवा चौथ क्या है?
करवा चौथ के दिन को करक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है. करवा या करक का अर्थ है मिट्टी का बर्तन, जिसके माध्यम से चन्द्रमा को अर्ग दिया जाता है. पूजा के दौरान करवा बहुत महत्वपूर्ण होता है और इसे ब्राह्मण या किसी योग्य महिला को दान के रूप में भी दिया जाता है.
करवा चौथ शुभ मुहूर्त:
इस साल करवा चौथ व्रत पर पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 5: बजकर 33 मिनट 28 सेकेंड से बजे से शाम 6 बजकर 39 मिनट 14 सेकेंड तक रहेगा.
पूजा विधि:
इस दिन व्रती स्त्रियों को प्रात: काल स्नानादि के बाद "मम् सुख सौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करत चतुर्थी व्रत महं करिष्ये" पति, पुत्र-पौत्र और सुख सौभाग्य की इच्छा का संकल्प लेकर यह व्रत करना चाहिए. इस व्रत में शिव-पार्वती, कार्तिकेय, गणेश और चन्द्रमा का पूजन करके अस्तेय देकर ही जल, भोजन ग्रहण करना चाहिए. चन्द्रोदय से पहले एक पटले पर कपड़ा बिछाकर उस पर मिट्टी से शिवजी, पार्वती जी, कार्तिकेय जी और चन्द्रमा की छोटी-छोटी मूर्तियां बनाकर या करवाचौथ की फोटो लगा कर पटले के पास पानी से भरे लोटा और करवा रख कर करवाचौथ की कथा सुनी जाता है, कथा सुनने से पूर्व करवे पर रोली से एक सतिया बना कर उस पर रोली से 13 बडियां लगाई जाती हैं, हाथ पर गेहूं के 13 दाने लेकर कथा सुनी जाती है और चांद निकल आने पर उसे अध्र्य देकर व्रत का पारण करना चाहिए.
व्रत कथा:
करवा चौथ के व्रत कथा के अनुसार, एक साहूकार के सात बेटे थे और उसकी करवा नाम की एक बेटी भी थी. एक बार करवा चौथ के दिन साहूकार के परिवार में व्रत रखा गया. रात को जब सब भोजन करने लगे तो करवा के भाइयों ने उसे भी भोजन करने के लिए कहा लेकिन उसने मना कर दिया. उसने कहा कि वह चांद को अर्घ्य देकर ही भोजन करेगी. सुबह से भूखी -प्यासी बहन की हालत भाइयों से देखी नहीं जा रही थी. इस कारण सबसे छोटा भाई दूर एक पीपल के पेड़ पर एक दीप प्रज्वलित कर आया और अपनी बहन से बोला- व्रत तोड़ लो चांद निकल आया है. बहन अपने भाई की चतुराई को भांप नहीं पाई और उसने खाने का निवाला मुंह में रख लिया. जैसे ही उसने निवाला खाया उसे उसके पति की मृत्यु की सूचना मिली. दुख के कारण वह अपने पति के शव को लेकर एक साल तक बैठी रही और उसके ऊपर उगने वाली घास को इकट्ठा करती रही. अगले साल कार्तिक कृष्ण चतुर्थी फिर से आने पर उसने पूरे विधि-विधान के साथ करवा चौथ माता का व्रत किया जिसके फलस्वरूप उसका पति जीवित हो उठा. तभी से हर सुहागिन महिला करवा चौथ का व्रत पूरे नियम के साथ रखती आ रही हैं.
चन्द्रोदय मुहूर्त:
इस दिन चन्द्रोदय रात्रि 8:16 बजे होगा. पंचांग के अनुसार, चतुर्थी तिथि 4 नवंबर को 03:24 पर शुरू होगी. चतुर्थी तिथि 5 नवंबर को शाम 5:14 बजे तक रहेगी.
करवा चौथ व्रत का समय
उपवास का समय सुबह 05.43 बजे से शुरू होता है और शाम 07.40 बजे समाप्त होगा.
सरगी क्या है?
सरगी व्रत रखने से पहले सास द्वारा दी जाती है. इसमें पका हुआ भोजन, ड्राई फ्रूट्स, मिठाइयाँ, दीया, मठरी, दही आदि शामिल हैं. अगर घर में व्रत रखने वाली महिला के पास उसकी सास है, तो सरगी को सास द्वारा पकाया जाता है.
यह त्योहार उन लोगों के दिलों में एक विशेष स्थान रखता है जो अपने पति से बहुत प्यार करते हैं और उन्हें हर समस्या से बचाना चाहते हैं. करवा चौथ अश्विन के हिंदू महीने में दिवाली से नौ दिन पहले मनाया जाता है. इस दिन, विशेष व्यंजन बनाए जाते हैं जिन्हें रात के खाने के दौरान परोसा जाता है और विवाहित महिलाओं के बीच आदान-प्रदान किया जाता है.