Gayatri Jayanti 2019: भगवान ब्रह्मा के मुख से हुआ था गायत्री मंत्र का प्राकट्य, इसके नियमित जप से मिलती है हर कार्य में सफलता

गायत्री जयंती का यह पर्व गंगा दशहरा के दूसरे दिन मनाया जाता है, लेकिन एक अन्य मान्यता के अनुसार, इसे श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन भी मनाया जाता है.

भगवान ब्रह्मा और माता गायत्री (Photo Credits: Facebook)

Gayatri Jayanti 2019: हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, गायत्री देवी (Gayatri Devi) से ही चारों वेद, पुराण और श्रुतियों की उत्पत्ति हुई है, इसलिए उन्हें वेदमाता (Vedmata) भी कहा जाता है. उन्हें ब्रह्मा, विष्णु, महेश के बराबर माना जाता है और त्रिमूर्ति मानकर उनकी उपासना की जाती है. उन्हें देवी सरस्वती, पार्वती और माता लक्ष्मी का अवतार भी माना जाता है. शास्त्रों के मुताबिक गायत्री जयंती (Gayatri Jayanti) ज्येष्ठ महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है और यह तिथि 13 जून 2019 को पड़ रही है.

कहा जाता है कि महागुरु विश्वमित्र ने पहली बार गायत्री मंत्र (Gayatri Mantra) को ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की ग्यारस को बोला था, जिसके बाद इस दिन को गायत्री जयंती के रूप में मनाया जाने लगा. गायत्री जयंती का यह पर्व गंगा दशहरा (Ganga Dussehra) के दूसरे दिन मनाया जाता है, लेकिन एक अन्य मान्यता के अनुसार, इसे श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन भी मनाया जाता है. यह भी पढ़ें: Ganga Dussehra 2019: गंगा दशहरा पर स्नान करने से मिलती है 10 पापों से मुक्ति, 75 साल बाद इस पर्व पर बन रहे हैं ये दस शुभ संयोग

ऐसा है माता गायत्री का स्वरूप

गायत्री माता के 5 सिर और 10 हाथ हैं. उनके चार सिर चारों वेदों का प्रतीक माने जाते हैं और उनका पांचवां सिर सर्वशक्तिमान शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है. उनके 10 हाथ भगवान विष्णु के प्रतीक हैं और वे सदा कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं. गायत्री माता को समस्त देवी-देवताओं की देवी कहा जाता है और उन्हें भगवान ब्रह्मा की दूसरी पत्नी भी माना जाता है.

भगवान ब्रह्मा की हैं दूसरी पत्नी

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार ब्रह्माजी ने यज्ञ का आयोजन किया था. हालांकि परंपरा के मुताबिक यज्ञ में उन्हें अपनी पत्नी के साथ ही बैठना था, लेकिन किसी वजह से उनकी पत्नी सावित्री को यज्ञ में पहुंचने में देरी हो गई. यज्ञ का मुहूर्त निकला जा रहा था, इसलिए भगवान ब्रह्मा ने वहां मौजूद माता गायत्री से विवाह कर लिया और उन्हें अपनी पत्नी के स्थान पर बिठाकर यज्ञ प्रारंभ किया.

ब्रह्मा जी के मुख से हुआ था प्राकट्य

मान्यताओं के अनुसार, गायत्री मंत्र का प्राकट्य भगवान ब्रह्मा के मुख से हुआ था. मां गायत्री की कृपा से ही ब्रह्मा जी ने गायत्री मंत्र की व्याख्या अपने चारों मुखों से चार वेदों के रूप में की थी. कहा जाता है कि आरंभ में देवी गायत्री की महिमा सिर्फ देवताओं तक ही सीमित थी, लेकिन महर्षि विश्वामित्र ने अपनी कठोर तपस्या से गायत्री माता यानी गायत्री मंत्र की महिमा को जन-जन तक पहुंचाया. यह भी पढ़ें: रोजाना करें गायत्री मंत्र का जाप, मिलेंगे ये दिव्य और चमत्कारी फायदे

गायत्री मंत्र के फायदे

गायत्री देवी समस्त वेदों का सार हैं. अगर किसी साधक ने गायत्री मंत्र को सिद्ध कर लिया तो उसके लिए कोई भी कार्य असंभव नहीं रह जाता है. यह समस्त इच्छाओं को पूरी करने वाली कामधेनु गाय के समान है. इसके नियमित जप से आध्यात्मिक चेतना का विकास होता है और व्यक्ति के समस्त कष्टों का निवारण होता है. मां गायत्री को आयु, प्राण, शक्ति, कीर्ति, धन-ऐश्वर्य प्रदान करने वाली देवी कहा गया है.

नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.

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