हिंदू धर्म शास्त्रों में फाल्गुन मास कृष्णपक्ष की संकष्टी चतुर्थी का विशेष महत्व वर्णित है. इसे द्विजप्रिय संकष्टी के नाम से भी जाना जाता है. मान्यता है कि इस दिन प्रथम आराध्य भगवान श्रीगणेश जी का व्रत एवं पूजा-अर्चना करने तथा चंद्रमा को अर्घ्य देने वालों के सारे संकट एवं पाप नष्ट हो जाते हैं, तथा भगवान श्रीगणेश का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है. इस वर्ष यह द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी 20 फरवरी 2022 रविवार के दिन मनाया जायेगा. आइये जानें क्या है इस व्रत का महात्म्य एवं कैसे करते हैं गणेश जी की पूजा-अर्चना और क्या है चंद्रोदय का समय?
द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का महात्म्य
इस दिन भगवान श्रीगणपति का नियमबद्ध व्रत एवं पूजा-अर्चना करके उन्हें प्रसन्न करते हैं ताकि आपको आपकी मनोकामनाओं की पूर्ति का वरदान प्राप्त हो. इस दिन भगवान श्रीगणेश के 32 रूपों में से छठे स्वरूप की पूजा की जाती है. ज्योतिषियों के अनुसार इस बार की संकष्टी सर्वार्थ सिद्धी योग में पड़ रहा है, साथ ही अमृत योग भी बन रहा है. मान्यता है कि योगों के इस संयोग में गणेश जी का व्रत एवं पूजा सच्ची आस्था के साथ करने पर सेहत संबंधी विकारों से हमेशा के लिए मुक्ति पाई जा सकती है.
द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी व्रत एवं पूजा-अर्चना के नियम!
फाल्गुन मास कृष्णपक्ष की चतुर्थी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि से निवृत्ति होकर स्वच्छ एवं लाल रंग का वस्त्र पहनें और भगवान श्रीगणेश का ध्यान करते हुए संकष्टी व्रत-पूजा का संकल्प लेते हुए अपनी मनोकामनाओं को मन ही मन व्यक्त करें. मंदिर के आसपास की सफाई करें. एक छोटी चौकी लेकर उस पर गंगाजल छिड़क कर उसे शुद्ध करें. चौकी पर लाल रंग का आसन बिछाकर पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर मुंह करके पूजा प्रारंभ करें. सर्वप्रथम भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराने के बाद चौकी पर स्थापित करें. धूप एवं दीप प्रज्वलित कर गणेश जी के इस मंत्र का जाप करते हुए गणेश जी का आह्वान करें. यह भी पढ़ें : Shivaji Maharaj Jayanti 2022: शिवाजी महाराज ने किया था अनुशासित और कुशल सेना का गठन, ऐसी थी उनकी सैन्य रणनीति (Watch Video)
गणेशजी का आह्वान मंत्र
गजाननं भूतगणादिवेसितम् कपित्थजम्बू फल चारु भक्षणम्
उमासुतम शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्
आगच्छ भगवन्देव स्थाने चात्र स्थिरो भव
अब ‘ऊँ गणेशाय नमः’ का जाप करते हुए गणेशजी को दूर्वा, लाल रंग का फूल, लाल चंदन, सुपारी, पान, अक्षत, रोली एवं मोदक अर्पित करें. पीतल की एक थाली में रोली से त्रिकोण बनायें. इसके अग्र भाग पर दीप प्रज्जवलित कर गणेशजी को यह दीप अर्पित करें. पूजा की समाप्ति गणेश जी की आरती उतारकर करें. इसके बाद पूरे दिन फलाहार रहते हुए व्रत के सभी नियमों का पालन करें. शाम को सूर्यास्त से पूर्व एक बार पुनः गणेश जी की विधिवत् पूजा करें. संकष्टि व्रत की कथा सुनें अथवा सुनाएं. चंद्रोदय होने पर चंद्रमा के सामने धूप-दीप अर्पित कर, दूध, रोली और शहद मिश्रित जल से उन्हें अर्घ्य दें. इसके बाद ब्राह्मण को अन्न दान कर पूजा पूरी करें.
द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी (20 फरवरी, रविवार 2022) का शुभ मुहूर्त
चतुर्थी प्रारंभः 09.56 PM (19 फरवरी 2022) से
चतुर्थी समाप्तः 09.05 PM (20 फरवरी 2022) तक