इस वर्ष, दत्तात्रेय जयंती 2023 26 दिसंबर, (मंगलवार) को मनाई जाएगी. यह पूर्णिमा तिथि 26 दिसंबर की सुबह 05.46 बजे शुरू होकर 27 दिसंबर 2023 की सुबह 06.02 बजे समाप्त होगी.
मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को दत्तात्रेय जयंती मनाई जाती है. इस दिन को दत्त जयंती के नाम से भी जाना जाता है. मान्यता है कि इसी दिन दत्तात्रेय प्रकट हुए थे, जिन्हें: ब्रह्मा, विष्णु और शिव का संयुक्त रूप माना है. यानि इस दिन दत्तात्रेय की पूजा अनुष्ठान करने से ब्रह्मा विष्णु महेश (शिवजी) की पूजा होने से इनका संयुक्त आशीर्वाद प्राप्त कर लेते हैं. इस वर्ष दत्तात्रेय जयंती 26 दिसंबर 2023 को मनाई जाएगी. आइये जानते हैं, क्या है इस जयंती का महात्म्य, मुहूर्त, एवं पूजा-अनुष्ठान के नियम इत्यादि.
दत्तात्रेय जयंती शुभ समय एवं तिथि
पूर्णिमा प्रारंभ: 05.46 AM (26 दिसंबर 2023, मंगलवार)
पूर्णिमा समाप्त: 06.02 AM (27 दिसंबर 2023, बुधवार)
उदया तिथि के अनुसार 26 दिसंबर 2023 को दत्तात्रेय जयंती मनाई जाएगी.
दत्त जयंती महत्व
दत्तात्रेय जयंती संपूर्ण भारत में, विशेषकर महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के कुछ हहिस्सो में बड़ी श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाई जाती है. यद्यपि हिंदू धर्म शास्त्रों में दत्तात्रेय में त्रिदेव को समाहित बताया गया है, लेकिन उन्हें विशेष रूप से विष्णु का अवतार माना जाता है. इस दिन श्रद्धालु परमपूज्य वासुदेवानंद सरस्वती द्वारा लिखित दत्तात्रेय के जीवन पर आधारित, दत्त महात्म्य जैसे पवित्र ग्रंथों का पाठ करते हैं. इस दिन भगवान दत्तात्रेय की विधि-विधान के साथ पूजा करने से त्रिदेव की विशेष कृपा प्राप्त होती है. जिसकी वजह से घर में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है. बुरी शक्तियां और दुश्मनों का नाश होता है. यह भी पढ़ें : Datta Jayanti 2023 Greetings: हैप्पी दत्त जयंती! प्रियजनों संग शेयर करें ये मनमोहक WhatsApp Stickers, GIF Images, HD Wallpapers और Photo SMS
दत्त जयंती पूजा-अनुष्ठान के नियम!
दत्तात्रेय जयंती के दिन क्षद्धालु गंगा, यमुना अथवा नर्मदा समान पवित्र नदियों में स्नान-ध्यान करते हैं. इसके पश्चात दत्तात्रेय (त्रिदेव) का स्मरण करते हुए व्रत एवं पूजा का संकल्प करते हैं. घर के मंदिर में गंगाजल छिड़क कर भगवान दत्तात्रेय की मूर्ति अथवा तस्वीर स्थापित कर धूप दीप प्रज्ज्वलित करें. अब पुष्प, सुगंध, रोली, पान, सुपारी, तुलसी अर्पित करें.
दत्तात्रेय पर लिखी रचनाएँ अवधूत गीता अथवा जीवनमुक्त गीता पढ़ें, जिनमें भगवान का प्रवचन है. भगवान विष्णु की विशेष पूजा-अर्चना करें. भोग में पंचामृत, हलवा और फल चढ़कर आरती उतारें. अगले दिन प्रातः स्नान कर व्रत का पारण करें.