Balasaheb Thackeray Jayanti 2023: महाराष्ट्र के बेताज बादशाह बाला साहेब के जीवन की अविस्मरणीय स्मृतियां!

बालासाहेब ठाकरे अदम्य साहस, तेज-तर्रार एवं अपनी बातों को चुनौतियों के साथ कहने वाले राजनेता थे. हिंदूवादी सोच वाले उन्हें 'हिंदू ह्रदय सम्राट' कहते थे. उनकी लोकप्रियता इतनी थी कि वे देश के किसी भी हिस्से से चुनाव जीतने का दम-खम रखते थे, लेकिन उन्होंने कभी कोई चुनाव नहीं लड़ा.

Balasaheb Thackeray (Photo Credits FB)

बालासाहेब ठाकरे अदम्य साहस, तेज-तर्रार एवं अपनी बातों को चुनौतियों के साथ कहने वाले राजनेता थे. हिंदूवादी सोच वाले उन्हें 'हिंदू ह्रदय सम्राट' कहते थे. उनकी लोकप्रियता इतनी थी कि वे देश के किसी भी हिस्से से चुनाव जीतने का दम-खम रखते थे, लेकिन उन्होंने कभी कोई चुनाव नहीं लड़ा. इसके बावजूद महाराष्ट्र ही नहीं पूरे देश में उनका जबर्दस्त प्रभाव था. उनके एक इशारे पर पूरा महाराष्ट्र थम जाता था. 17 नवंबर 2012 को 86 वर्ष की आयु में हार्ट अटैक से उनका निधन हो गया. यहां बालासाहेब ठाकरे की 97वीं जयंती के अवसर पर प्रस्तुत है उनके जीवन, करियर, विचारधारा और व्यक्तित्व से संबंधित कुछ रोचक स्मृतियां..

प्रारंभिक जीवन

बाल केशव ठाकरे का जन्म 23 जनवरी 1926 को रमाबाई और केशव सीताराम के घर में हुआ था, जो समाज सुधारक और विपुल लेखक थे. केशव सीताराम ठाकरे प्रबोधनकार ठाकरे के नाम से भी लोकप्रिय हैं. बालासाहेब के पिता केशव ठाकरे तेज-तर्रार अंग्रेज उपन्यासकार विलियम मेकपीस थाकरे (William Makepeace Thackeray) के जबरदस्त प्रशंसक थे. उन्होंने ठाकरे सरनेम उन्हीं से लिया था. वे उनकी लेखन के जबर्दस्त दीवाने थे. बालासाहेब अपने नौ भाई-बहनों में सबसे बड़े थे. बालासाहेब ने अपने करियर की शुरुआत मुंबई से प्रकाशित दैनिक पत्र फ्री प्रेस जर्नल से की थी. 1960 में उन्होंने अपना व्यंगात्मक कार्टून साप्ताहिक ‘मार्मिक’ (मराठी में) अपने भाई के साथ शुरू किया. इसके बाद 23 फरवरी 1988 को दैनिक सामना (मराठी) और 23 फरवरी 1993 को दोपहर का सामना (हिंदी) शुरू किया. यह भी पढ़ें : Sthapana Diwas 2023: त्रिपुरा, मणिपुर और मेघालय का 51वां स्थापना दिवस! जानें कैसे बनें ये संघीय भारत का हिस्सा?

राजनीति में कदम

बालासाहेब ठाकरे ने 19 जून 1966 में मराठा सम्राट छत्रपति शिवाजी की सेना के नाम पर ‘शिवसेना’ की स्थापना की थी. इस संस्था को शुरू करने का मूल मकसद गुजरातियों एवं दक्षिण भारतीयों के विरुद्ध प्रतिस्पर्धा करते हुए मराठी मानुष (मूल मराठी) के लिए नौकरी एवं अन्य अधिकार सुनिश्चित करना था.

जर्मन तानाशाह एडोल्फ हिटलर और इंदिरा गांधी को प्रशंसक थे

बालासाहेब ठाकरे जिस तेज-तर्रार व्यक्ति वाले इंसान थे, वैसे ही किस्म के लोगों के वह प्रशंसक भी थे. जिसमें जर्मन तानाशाह एडॉल्फ हिटलर एवं श्रीमती इंदिरा गांधी प्रमुख थीं. बालासाहेब हिटलर के वक्तव्यों एवं संगठनात्मक कौशल से बहुत प्रभावित थे, उनका मानना भी था कि भारत को एक उदार तानाशाह की जरूरत है. इसी तरह वे स्व. प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को भी पसंद करते थे. बालासाहेब अकेले शख्सियत थे, जिन्होंने श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा लगाये इमर्जेंसी की प्रशंसा करते हुए उन्हें उस समय का सर्वश्रेष्ठ प्रधानमंत्री बताया था.

स्पेशल शौक

बालासाहेब को कुछ चीजों के प्रति गहरा शौक रहा है. उन्हें चांदी के सिंहासन पर बैठना बहुत पसंद रहा है. इसके अलावा उन्हें व्हाइट वाइन और सिगार या पाइप पीने का बहुत शौक रहा है. 1995 में हार्ट अटैक के पश्चात पाइप पीना तो छोड़ दिया था, लेकिन सिगार वे जीवन के अंतिम क्षणों तक प्रयोग करते रहे हैं.

स्वाभिमानी शख्सियत!

बाला साहेब ठाकरे की एक खासियत यह थी कि वह स्वयं कभी किसी शख्सियत से मिलने नहीं गए, जिसने भी उनसे मिलने की ख्वाहिश की, उसे उनके मातोश्री भवन तक आना पड़ा. फिर वह चाहे वह माइकल जैक्सन हों, तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी हों, अथवा फिल्म इंडस्ट्री के दिग्गज कलाकार हों.

अमिताभ बच्चन से था खास लगाव!

फिल्म कुली की शूटिंग के दौरान जब अमिताभ बच्चन बुरी तरह से घायल हो गये थे, तब खराब मौसम के कारण उनके लिए एंबुलेंस की व्यवस्था नहीं हो रही थी, तब बालासाहेब के आदेश पर शिवसेना के एंबुलेंस ने उन्हें अस्पताल तक पहुंचाया. यह बात एक इंटरव्यू में स्वयं अमिताभ बच्चन ने बताया था. नेता और अभिनेता और भी अवसरों पर उनसे बात-मुलाकात करते थे.

आरोपोॆ एवं प्रतिबंधों के बीच बालासाहेब

साल 1992 में भारत सरकार ने बालासाहेब पर मुंबई दंगों में प्रमुख भूमिका होने और मुस्लिम समुदायों के बीच तनाव भड़काने का आरोप लगाया था, जिसमें कहा जाता है कि 900 से ज्यादा लोग मारे गए थे. हालांकि दंगों के संबंध में बालासाहेब पर किसी तरह का दोषी नहीं ठहराया गया. 28 जुलाई 1999 में चुनाव आयोग ने उन्हें धर्म के नाम पर वोट मांगने के लिए मतदान करने और 6 साल तक चुनाव लड़ने पर प्रतिबंधित कर दिया था. 2005 में मतदान का प्रतिबंध हटने पर बीएमसी के चुनाव में बाल ठाकरे ने मतदान में हिस्सा लिया था.

जादुई व्यक्तित्व

बालासाहेब ठाकरे देश के अकेली ऐसी शख्सियत थे, जो कभी किसी आधिकारिक पद पर नहीं थे, कट्टर हिंदुत्व का रुख रखने के कारण उनके प्रशंसक उन्हें हिंदू ह्रदय सम्राट मानते थे. 17 नवंबर 2012 को बालासाहेब ठाकरे का हार्ट अटैक के कारण निधन हो गया. उनके अंतिम संस्कार के समय उन्हें 21 तोपों की सलामी दी गई थी. उनके अंतिम संस्कार में लाखों प्रशंसक उपस्थित थे.

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