बेंगलुरु, 6 जुलाई: कर्नाटक उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि जब एक विवाहित महिला काम करने में सक्षम है, तो वह अपने पति से भारी-भरकम मुआवजे की उम्मीद नहीं कर सकती है न्यायमूर्ति राजेंद्र बदामीकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने बुधवार को एक तलाकशुदा महिला द्वारा प्रस्तुत आपराधिक समीक्षा याचिका पर विचार करते हुए यह फैसला दिया अदालत ने सत्र अदालत के फैसले को भी बरकरार रखा, जिसमें मासिक गुजारा भत्ता राशि 10,000 रुपये से घटाकर 5,000 रुपये और मुआवजा तीन लाख रुपये से घटाकर दो लाख रुपये कर दिया गया. यह भी पढ़े: Karnataka HC: मोबाइल फोन के साथ बेचे जाने वाले वाले चार्जर पर अलग से नहीं लगाया जा सकता टैक्स
पीठ ने कहा कि शादी से पहले काम करने वाली महिला के लिए शादी के बाद घर बैठने के लिए पर्याप्त आधार नहीं हैं पीठ ने कहा, "काम करने की क्षमता होने के बावजूद वह बेकार नहीं रह सकती और पति से मुआवजे की मांग नहीं कर सकती वह केवल आजीविका के लिए गुजारा भत्ता मांग सकती है याचिकाकर्ता का पूर्व पति एक प्रोविजन स्टोर चलाता है और अपनी मां और अविवाहित बहन की देखभाल कर रहा हैपति के साथ रहने में असमर्थ होने पर महिला ने तलाक मांगा याचिकाकर्ता ने तीन लाख रुपये मुआवजा और 10,000 रुपये मासिक गुजारा भत्ता की मांग की थीसत्र अदालत ने दो लाख रुपये मुआवजा और 5,000 रुपये गुजारा भत्ता दिया था याचिकाकर्ता ने आदेश पर सवाल उठाया था और उच्च न्यायालय के समक्ष अपील दायर की थी उसने दावा किया कि उसे दिया गया मुआवजा कम है और वह अपना जीवन नहीं जी सकेगी.