Live-In Relationship में रहने वाली महिला के पार्टनर पर IPC की धारा 498A के तहत नहीं चलाया जा सकता मुकदमा: केरल HC
Kerala High Court (File Image)

केरल हाई कोर्ट ने माना है कि महिला का साथी जो कानूनी रूप से विवाहित नहीं है, उस पर क्रूरता के अपराध के लिए आईपीसी की धारा 498A के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता. न्यायालय ने स्पष्ट किया कि पति का अर्थ विवाहित पुरुष, विवाहित महिला का साथी है और आईपीसी की धारा 498A के तहत अभियोजन के लिए महिला का कानूनी रूप से विवाहित न होने वाला साथी भी इसमें शामिल नहीं है.

मामले में याचिकाकर्ता ने अपने खिलाफ लिव-इन पार्टनर महिला द्वारा दर्ज की गई आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था. आरोप यह था कि याचिकाकर्ता ने मार्च 2023 से अगस्त 2023 तक महिला को मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया, इस दौरान वे लिव-इन रिलेशनशिप में थे.

याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता और शिकायतकर्ता के बीच संबंध लिव-इन रिलेशनशिप था और उनके बीच कोई कानूनी विवाह नहीं था, जिससे धारा 498ए के तहत अपराध हो सके.

जस्टिस ए. बदरुद्दीन ने इस मामले में याचिकाकर्ता को राहत देते हुए उसके खिलाफ कार्यवाही को रद्द कर दिया क्यों कि शिकायतकर्ता महिला का लिव-इन पार्टनर था.

हाई कोर्ट ने शिवचरण लाल वर्मा और अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य (2002) का हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आईपीसी की धारा 498A के तहत मुकदमा चलाने के लिए वैध वैवाहिक संबंध होना चाहिए.

कोर्ट ने कहा कि धारा 498A के तहत अपराध को आकर्षित करने के लिए, क्रूरता का अपराध पति या पति के रिश्तेदारों द्वारा किया जाना चाहिए. इसमें कहा गया कि एक पुरुष जो कानूनी विवाह के बिना किसी महिला का साथी था, उस पर धारा 498A के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता.