क्या है बहुविवाह प्रथा जिस पर रोक लगायेगी असम सरकार
पूर्वोत्तर राज्य असम में हिमंता बिस्वा सरमा की अगुवाई वाली बीजेपी सरकार बाल विवाह के खिलाफ बड़े पैमाने पर अभियान चलाने के बाद अब बहुविवाह प्रथा पर अंकुश लगाने की तैयारी में है.
पूर्वोत्तर राज्य असम में हिमंता बिस्वा सरमा की अगुवाई वाली बीजेपी सरकार बाल विवाह के खिलाफ बड़े पैमाने पर अभियान चलाने के बाद अब बहुविवाह प्रथा पर अंकुश लगाने की तैयारी में है. क्या है बहुविवाह की प्रथा?सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में बहुविवाह की प्रथा भले पहले के मुकाबले घटी हो लेकिन अब भी ऐसे मामले सामने आते रहे हैं. खासकर आदिवासियों और अल्पसंख्यक तबके में. बहुविवाह की वैधता पर बहस भी पुरानी है और बीते साल रेशमा नाम की एक महिला ने इस मुद्दे पर दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका भी दायर की है. सुप्रीम कोर्ट ने बहुविवाह और निकाह हलाला जैसे प्रथा की संवैधानिक वैधता पर विचार के लिए बीते साल एक पांच-सदस्यों वाली संवैधानिक पीठ का भी गठन किया था.
भारत में बहुविवाह
भारत की 1961 की जनगणना में एक लाख विवाहों के नमूने लेकर किए गए एक सर्वेक्षण में बताया गया था कि मुसलमानों में बहुविवाह का प्रतिशत महज 5.7 फीसदी था, जो दूसरे धर्म के समुदायों में सबसे कम था. हालांकि उसके बाद हुई जनगणना में इस मुद्दे पर आंकड़े नहीं जुटाये गये.
बीते साल आये राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के 2019-2020 के आंकड़ों में बताया गया था कि हिंदुओं की 1.3 फीसदी, मुसलमानों की 1.9 फीसदी और दूसरे धार्मिक समूहों की 1.6 फीसदी आबादी में अब भी बहुविवाह की प्रथा जारी है. एनएफएचएस के बीते 15 वर्षों के आंकड़ों के विश्लेषण के बाद मुंबई स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पॉपुलेशन स्टडीज ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि गरीब, अशिक्षित और ग्रामीण तबके में बहुविवाह प्रथा की दर ज्यादा है. ऐसे मामलों में क्षेत्र और धर्म के अलावा समाज-आर्थिक मुद्दों की भी भूमिका अहम है.
चार पत्नियों को कैसे खुश रखता है मूसा
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, देश में वर्ष 2005-06 के 1.9 फीसदी के मुकाबले वर्ष 2019-20 में बहुविवाह के मामले घट कर 1.4 फीसदी रह गये थे. पूर्वोत्तर राज्यों में यह दर ज्यादा रही है. मिसाल के तौर पर मेघालय में यह 6.1 फीसदी और त्रिपुरा में दो फीसदी है. बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में भी यह प्रथा जारी है. तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ के असावा बाकी जगह यह प्रथा हिंदुओं के मुकाबले मुसलमानों में ज्यादा प्रचलित है.
क्या हैं बहुविवाह के नियम?
भारत में मुसलमानों को एक से ज्यादा शादी करने की छूट है. आईपीसी की धारा 494 के तहत मुस्लिम पुरुष दूसरा निकाह कर सकते हैं. इसी तरह शरीयत कानून में भी बहुविवाह की अनुमति है. पहली पत्नी की सहमति से चार शादियां कर सकते हैं. हालांकि, इस कानून के तहत सिर्फ पुरुषों को दूसरी शादी करने की इजाजत है. मुस्लिम महिलाओं को मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) अधिनियम, 1937 के तहत दूसरी शादी की अनुमति नहीं है.
दूसरी, तीसरी, चौथी शादियां कराने वाला ऐप
अगर कोई मुस्लिम महिला दूसरी शादी करना चाहती है तो उसे पहले अपने पति से तलाक लेना होगा. फिर वह दूसरी शादी कर सकती है. बहुविवाह के दौरान दिक्कत तब आती है, जब तकनीकी तौर पर दूसरा विवाह करने से पहले पुरुषों को पहली पत्नी से इजाजत लेनी पड़ती है. कई महिलाओं की शिकायत है कि उनसे इस बारे में कभी नहीं पूछा गया और वे इस कारण काफी अपमानित महसूस करती हैं. दोबारा शादी करने वाले मर्दों की पहली पत्नियों पर बच्चों के पालन-पोषण का बोझ पड़ जाता है. पति उनका ध्यान नहीं रखते क्योंकि वे दूसरे परिवार में व्यस्त हो जाते हैं. इस तरह के उन्हें कई कष्ट झेलने पड़ते हैं. फिर वो कानूनी सहारा लेती हैं.
हाईकोर्ट में याचिका
दिल्ली की रहने वाली रेशमा का मामला कुछ ऐसा ही है. बीते साल दिल्ली हाई कोर्ट में दायर याचिका में 28 साल की इस मुसलमान महिला ने मांग की है कि बिना उनकी लिखित सहमति के उनके पति को एक दूसरी महिला से निकाह करने से रोका जाए. यह मामला सामने आने के बाद भारत के मुसलमानों में कई विवाह करने के रिवाज (बहुविवाह) पर एक बार फिर ध्यान गया है.
रेशमा ने हाई कोर्ट से यह भी मांग की है कि वो सरकार को बहुविवाह के इस दकियानूसी रिवाज को नियंत्रित करने वाला एक कानून बनाने का भी निर्देश दे.
कोर्ट के दस्तावेजों के अनुसार, रेशमा की शादी जनवरी 2019 में मोहम्मद शोएब खान से हुई थी और अगले साल नवंबर में इस दंपती को एक बच्चा भी हुआ. रेशमा ने अपने पति पर घरेलू हिंसा, क्रूर व्यवहार और उत्पीड़न करने के साथ दहेज मांगने के भी आरोप लगाए हैं. उन्होंने आरोप लगाया है कि उनके पति ने उन्हें और उनके बच्चे को छोड़ दिया और अब दूसरा निकाह करने की योजना बना रहे हैं. उन्होंने कहा कि मुस्लिम महिलाओं के हितों की रक्षा के लिए बहुविवाह की रिवायतों पर लगाम लगानी चाहिए.
असम सरकार की पहल
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा है कि असम सरकार राज्य में बहुविवाह पर प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रही है. इसके लिए सरकार ने एक विशेषज्ञ समिति बनाने का फैसला किया है. यह समिति इस बात की जांच करेगी कि बहुविवाह पर पाबंदी लगाने का राज्य सरकार के पास अधिकार है या नहीं.
मुख्यमंत्री ने साथ ही असम में बाल विवाह के खिलाफ जारी अभियान को भी तेज करने की बात कही है. समिति कानूनी विशेषज्ञों की राय लेगी और संविधान के अनुच्छेद 25 में दिए गए मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) अधिनियम, 1937 के प्रावधानों की जांच करेगी, जो राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत हैं. समिति सभी पहलुओं पर संबंधित पक्षों के साथ गहनता से विचार-विमर्श करेगी.'
मुख्यमंत्री कहते हैं, "मुस्लिम समुदाय को छोड़कर भारत में बहुविवाह आमतौर पर सभी धार्मिक समुदायों में प्रतिबंधित है. भारत अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों और अनुबंधों का एक हस्ताक्षरकर्ता है. नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र की समिति का हिस्सा है. इसमें महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव को खत्म करने को कहा गया है. बहुविवाह महिलाओं की गरिमा का उल्लंघन करता है. यह प्रथा जहां भी मौजूद है, इसे खत्म किया जाना चाहिए."