प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)
संसद के बजट सत्र में संविधान की मूल प्रति में अंकित कुछ चित्रों को लेकर विवाद हो गया. जानते हैं, संविधान की मूल प्रति में कौन से चित्र हैं, इन्हें किसने बनाया और विवाद की वजह क्या है?संसद के बजट सत्र के दौरान पिछले दिनों बीजेपी के सांसद राधामोहन दास अग्रवाल ने राज्यसभा में संविधान की प्रतियों से इलस्ट्रेशन्स यानी उन चित्रों को हटाए जाने का मुद्दा उठाया जो संविधान के हर अध्याय की शुरुआत में बने हुए हैं.
राज्यसभा में नेता सदन और केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा ने भी राधामोहन दास अग्रवाल का समर्थन करते हुए कहा कि सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि जो प्रकाशक संविधान की प्रति छाप रहे हैं, वो इन इलस्ट्रेशन्स और संविधान की मूल भावना के साथ इन प्रतियों को छापें.
नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस मुद्दे को अनावश्यक विवाद में लाने और बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर को बदनाम करने की कोशिश का आरोप लगाया. हालांकि राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने सत्ता पक्ष का साथ देते हुए कहा कि जो विषय राधामोहन दास अग्रवाल ने उठाए हैं, वो बहुत महत्वपूर्ण हैं.
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जगदीप धनखड़ ने संविधान की मूल प्रति दिखाते हुए कहा, "भारत के संविधान की जो मूल प्रति है, जिस पर संविधान निर्माताओं ने हस्ताक्षर किए हैं, उसका अभिन्न अंग हैं कलाकृतियां, संविधान में जो संशोधन हुए हैं, वही संविधान है और उनके साथ ही संविधान प्रचारित-प्रसारित होना चाहिए. आजकल जो लोग संविधान की प्रतियां लेकर चल रहे हैं, उनमें वो 22 कृतियां नहीं दिखाई देती हैं. संविधान निर्माताओं की हस्ताक्षरित प्रति ही असली है और जो संशोधन किए गए हैं संविधान में, इसके अलावा अगर कोई बदलाव कर संविधान प्रचारित-प्रसारित किया जाए तो उस पर सरकार एक्शन ले.”
संविधान की मूल प्रति में कितने चित्र हैं?
दरअसल, संविधान की मूल प्रति में जिन 22 चित्रों को उकेरा गया है उनके जरिए भारत की महान परंपरा की कहानी बयां की गई है और इसकी भी एक दिलचस्प कहानी है. इन चित्रों में राम, कृष्ण, हनुमान, बुद्ध, महावीर, विक्रमादित्य से लेकर अकबर, टीपू सुल्तान, रानी लक्ष्मीबाई, महात्मा गांधी और सुभाषचंद्र बोस के अलावा देश की भौगोलिक सांस्कृतिक विरासत को बताते हुए कई दूसरे चित्र भी हैं.
यह बात यूं तो ज्यादातर लोगों को मालूम है कि संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉक्टर भीमराव आंबेडकर थे और उन्हीं के निर्देशन में भारत का संविधान लिखा गया लेकिन संविधान को जिन चित्रों से सजाया गया है और उन्हें किसके निर्देशन में तैयार किया गया है यह जानना भी जरूरी और दिलचस्प है.
जब संविधान निर्माण की प्रक्रिया चल रही थी उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू संविधान की प्रति को चित्रों के जरिए सजाने वाले किसी कलाकार की खोज कर रहे थे और यह खोज उनकी पूरी हुई पश्चिम बंगाल के शांतिनिकेतन में. महान चित्रकार नंदलाल बोस यहां कलाभवन के प्राध्यापक के तौर पर काम कर रहे थे. जवाहरलाल नेहरू की मुलाकात उनसे हुई. पंडित नेहरू ने उनसे संविधान को भारतीय संस्कृति और सभ्यता से जुड़े चित्रों से सजाने का आग्रह किया और नंदलाल बोस इसके लिए तुरंत तैयार हो गए.
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संविधान में लिखावट किसकी है?
भारत के संविधान में 22 भाग हैं और हर भाग की शुरुआत में 8 गुना 13 इंच के चित्र बनाए गए हैं. इन 22 चित्रों को बनाने में करीब चार साल लगे. संसदीय प्रक्रिया और संसद से जुड़ी खबरों पर नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार अरविंद कुमार सिंह बताते हैं, "संविधान की मूल प्रति टाइपिंग या प्रिंट में उपलब्ध नहीं है बल्कि यह हिन्दी और अंग्रेजी भाषाओं में हाथ से लिखी गई है. इसे प्रेम बिहारी रायजादा ने लिखा है. रायजादा ने पेन होल्डर निब से संविधान के हर पन्ने को बहुत ही खूबसूरत इटैलिक यानी तिरछे अक्षरों में लिखा है. प्रेमबिहारी रायजादा उस परिवार से आते थे जो पुश्तैनी कैलिग्राफी का काम करते थे और उनका शौक भी था.”
भारत के संविधान को नंदलाल बोस के निर्देशन में राममनोहर सिन्हा और शांतिनिकेतन के कुछ अन्य कलाकारों ने अपने अद्भुत चित्रों से सजाए हैं. इनमें सैंधव सभ्यता से जुड़े स्थल मोहनजोदड़ो, वैदिक काल, रामायण, महाभारत, बुद्ध के उपदेश, महावीर के जीवन, मौर्य काल, गुप्त काल और मुगल काल के अलावा गांधी, सुभाष तक के चित्र हैं. इसके अलावा हिमालय से लेकर समुद्र के भी बेहद सुंदर चित्र बनाए गए हैं.
वास्तव में संविधान में दिए गए ये 22 चित्र भारतीय इतिहास की विकास यात्रा और भारतीय सांस्कृतिक विरासत का संदेश देते हैं. इनमें भगवान श्रीराम के अलावा गीता का उपदेश देते श्रीकृष्ण के साथ अर्जुन, टीपू सुल्तान, नटराज, भगवान बुद्ध, शिवाजी, मुगल सम्राट अकबर, गुरुगोविंद सिंह के साथ ही गंगा मैया और इसे धरती पर लाने वाले भगीरथ को भी स्थान दिया गया है.
इनकी शुरुआत होती है भारत के राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ के शेर से. अगले भाग में भारत की प्रस्तावना लिखी है, जिसे सुनहरे बार्डर से घेरा गया है. और फिर हर भाग यानी अध्याय की शुरुआत में एक विशेष चित्र अंकित है. जैसे संविधान के तीसरे भाग जो मौलिक अधिकारों से जुड़ा अध्याय है, उसकी शुरुआत में राम, सीता और लक्ष्मण का स्केच है. यह तस्वीर लंका में रावण पर विजय प्राप्त कर अयोध्या वापसी के वक्त की है.
कहां और कैसे रखी हुई है संविधान की मूल प्रति?
भारतीय संविधान हाथ से बने कागज यानी लुगदी पर हाथ से ही लिखा हुआ है. देश के संविधान की मूल प्रति के हर पन्ने पर सोने की पत्तियों के फ्रेम बने हैं. हर अध्याय के आरंभिक पृष्ठ पर एक कलाकृति भी बनाई गई है.
लुगदी पर हाथ से ही लिखे संविधान को संजोकर रखने के भी खास इंतजाम किए गए हैं. अरविंद कुमार सिंह बताते हैं कि संविधान की मूल प्रति को फलालेन के कपड़े में लपेटकर नेफ्थलीन बॉल्स के साथ रखा गया था.
उनके मुताबिक, "पहले फलालेन के कपड़े में रखा गया था. फिर बाद में यह पता किया गया कि और सुरक्षित तरीका क्या हो सकता है. इसके बाद वैज्ञानिकों ने साल 1994 में संसद भवन के पुस्तकालय में एक चैंबर तैयार कराया, जिसे और सुरक्षित बनाने के लिए ऐसी गैस का इस्तेमाल किया गया जो कागज और स्याही पर असर ना डाले. इसके लिए चैंबर में नाइट्रोजन गैस का प्रयोग किया गया."
सिंह बताते हैं कि सुरक्षा के लिए हर साल चैंबर की नाइट्रोजन गैस खाली की जाती है और अच्छे से जांच परख होती है. इसके अलावा, सीसीटीवी कैमरों से लगातार निगरानी की जाती है. संसद के नई इमारत में आने के बाद संविधान की मूल प्रति भी यहां लाई गई है.
मूल प्रति और प्रकाशित कॉपियों में अंतर क्यों?
अब यह सवाल उठ रहा है कि संविधान की यही मूल प्रति आम लोगों के हाथ में क्यों नहीं है जो संसद भवन में सहेजकर रखी गई है. इस सवाल का जवाब कांग्रेस नेता और राज्यसभा टीवी के सीईओ रहे गुरदीप सप्पल ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर विस्तार से दिया है.
उनके मुताबिक, "साल 1950 में जब संविधान लागू हुआ, तब तक आधुनिक लिथोमेन वेब ऑफसेट प्रिंटिंग का अविष्कार ही नहीं हुआ था. तब जो लिथोग्राफिक ऑफसेट मशीन चित्रों की प्रिंटिंग कर सकती थी, उस पर विश्व युद्ध के कारण प्रतिबंध था. ये मशीनें केवल सैन्य उपयोग के लिए थीं जो नक्शे, टैंक, सैन्य उपकरण, हवाई जहाज़ के डिजाइन छापने के लिए इस्तेमाल होती थीं. ब्रिटिश भारत में ये मशीन सर्वे ऑफ इंडिया के पास थी. इस संस्थान के पास जो मशीनें थीं वो संविधान पर की गई महीन चित्रकारी को अच्छी तरह छाप सकती थीं. इसीलिए, तत्कालीन कानून मंत्री बाबा साहब अंबेडकर ने सर्वे ऑफ इंडिया की इस ब्रांच को संविधान की मूल प्रति की एक हजार कॉपियां छापने का निर्देश दिया. इन्हीं में से एक कॉपी पिछले साल 48 लाख रुपये में बिकी है.”
गुरदीप सप्पल आगे लिखते हैं, "महंगी लिथोग्राफिक प्रिंटिंग से हजारों कॉपी छापना ना तो तुरंत संभव था और न ही सभी लोग वो महंगी कॉपी खरीद सकते थे. इसीलिए डॉक्टर अंबेडकर के मंत्रालय ने ही उसी समय संविधान के सस्ते टेक्स्ट एडिशन छापने का फैसला किया, जो उस समय के आम प्रिंटिंग प्रेस में आसानी से छाप सकते थे. लोगों को संविधान की कॉपी सुलभ करने के लिए ही बिना चित्र वाली कॉपियों का चलन शुरू किया गया.”