सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत की अगुवाई में उत्तराखंड को मिला एक और तमगा, देहरादून बना 100% साक्षरता वाला राज्य का पहला जिला
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत (Trivendra Singh Rawat) की अगुवाई में उत्तराखंड (Uttarakhand) को एक और तमगा मिलने वाला है. कोरोना वायरस महामारी को एक अवसर में बदलते हुए देहरादून (Dehradun) को राज्य का पहला 100 फीसदी साक्षरता वाला जिला बनाने में सफलता हासिल हुई है.
देहरादून: मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत (Trivendra Singh Rawat) की अगुवाई में उत्तराखंड (Uttarakhand) को एक और तमगा मिलने वाला है. कोरोना वायरस महामारी को एक अवसर में बदलते हुए देहरादून (Dehradun) को राज्य का पहला 100 फीसदी साक्षरता वाला जिला बनाने में सफलता हासिल हुई है. उत्तराखंड में हर्षोल्लास से मनाया गया गणतंत्र दिवस
त्रिवेंद्र सिंह रावत ने एक ट्वीट में कहा कि कोविड-19 के दौरान देहरादून जिले में 30,207 निरक्षरों को साक्षर बनाने के साथ ही जनपद ने 100 फीसदी साक्षरता हासिल कर ली है. स्थानीय निकायों के जनप्रतिनिधियों के सत्यापन के आधार पर थर्ड पार्टी ऑडिट के बाद देहरादून को संपूर्ण साक्षर जिला घोषित कर दिया जाएगा. उन्होंने इस उपलब्धि के लिए सभी को बधाई दी है.
देहरादून के जिला मजिस्ट्रेट आशीष कुमार श्रीवास्तव (Ashish Kumar Srivastava) ने रविवार को जिला प्रशासन द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में देहरादून के सिर बड़ी उपलब्धि सजने की जानकारी दी. उन्होंने इस अभियान में लगी पूरी टीम की सराहना की है. इस दौरान उन्होंने परामर्शदाताओं, शिक्षा अधिकारियों और स्वयंसेवी संगठनों के प्रतिनिधियों को पढ़ो दून बढ़ो दून कैंपेन (Padho Doon Badho Doon campaign) में योगदान देने के लिए सम्मानित किया.
इस अभियान की अगुवाई कर रही मुख्य विकास अधिकारी (सीडीओ) नितिका खंडेलवाल (Nitika Khandelwal) ने कहा कि अभियान के तहत छह साल से 85 साल से अधिक उम्र के स्थानीय निवासियों को इस अभियान के तहत शिक्षित किया गया. उन्होंने कहा कि शिक्षा प्राप्त करने के प्रति वरिष्ठ नागरिकों का उत्साह बहुत प्रेरणादायक और प्रशंसनीय है.
अभियान के बारे में जानकारी देते हुए खंडेलवाल ने कहा कि आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा किए गए सर्वेक्षण के माध्यम से कुल 35,261 लोगों को निरक्षर के रूप में पंजीकृत किया गया था, जिसमें से 30,207 स्थानीय लोगों को शिक्षित किया गया है, जबकि शेष 5,054 स्थानीय लोगों को कोई शिक्षा नहीं मिली है. दरअसल इन बचे हुए स्थानीय लोगों में वे लोग शामिल हैं, जो मानसिक रूप से अस्थिर हैं, मर चुके हैं, अन्य स्थानों पर चले गए हैं या उनके नाम सर्वेक्षण के दौरान दो बार दर्ज किए गए थे.